मतदाता वशीकरण यज्ञ और अन्य बातें

मौसम सुधर गया है थोड़ी लम्बी साइकिल सैर के लिये। कल साथी (साइकिल) को ले कर साइकिल के बड़े डाक्टर के यहां गया था, सुधरवाने। अस्सी रुपये लगे और घण्टा भर माता जी का फुल वाल्यूम पर भजन गायन सुनना पड़ा। आप कितने भी मौन धार्मिक हों, ये लाउड स्पीकर आपको मुखर धार्मिक बना देते हैं। और कुछ भी तीखा कहने लिखने पर बहुत से लोगों को तुरंत मस्जिद पर लगे लाउड स्पीकर याद आने लगते हैं। मानो वे अगर लाउड स्पीकर लगाते हैं तो हमें अपने धर्म को प्रदर्शित करने की अनिवार्यता है। खैर, साथी ठीक हो गया। आज सोचा कि प्रेमसागर प्रकरण को विराम दे कर अपनी खुद की कुछ साइकिल यात्रा कर ली जाये – नेशनल हाईवे से अलग, गांव की सड़कों पर।

और देखा कि गांव की सड़कें जो योगी सरकार ने आते ही ठीक करवाई थीं, अब साढ़े चार साल में उधड़ गयी हैं। उनपर सवार हो कर वोट नहीं खींचे जा सकते। सो बारिश का मौसम बीतते ही वोट-खींचक यज्ञ (या मतदाता वशीकरण यज्ञ) प्रारम्भ कर दिया गया है। सड़क किनारे अलकतरा के ड्रम सीधे खड़े कर उन्हें गरम किया जा रहा है। मेरे सामने आग इतनी तेज लगी कि वस्तुत यज्ञ की अनुभूति हुई!

आगे बढ़ कर देखा कि बड़ी गिट्टी डाल कर सड़क के बड़े क्रेटर – जो उसे चांद की जमीन होने का अहसास दे रहे थे – भरे जा चुके हैं। सवेरे सवेरे सामुदायिक भवन के ओसारे में ठहरे ठेकेदार के डामर बिछाने वाले कर्मी जाग चुके हैं। एक दो उनमें से एक मेक-शिफ्ट चूल्हे पर बटुली चढ़ा कर कुछ बनाने में लगे हैं और शेष काम प्रारम्भ कर चुके हैं। इस यज्ञ में ज्यादा टण्ट-घण्ट वाली प्रेपरेशन नहीं करनी पड़ती। आठ बजे तक सड़क पर महीन गिट्टी भरी डामर युक्त जीरी बिछने लगती है। पीडब्यूडी देवायै नम:! एक जगह यह भी देखा कि सड़क की ब्रांच लाइन में खड़ा रोड रोलर भी चालू हो गया था।

इधर सड़क बनेगी, उधर हम जैसे फेंस सिटर मतदाता; जिनकी साइकिल भ्रमण में मार्गकण्टक दूर होंगे, वे वशीकृत हो कर भाजपा के खेमे में आने लगेंगे। उस हिसाब से भाजपा दूरदर्शी है। पिछ्ली समाजवादी सरकार ने तो चुनाव आसन्न होने पर भी सड़कें केवल कागज पर ही सुधारी थीं। इसलिये उन्हें ठेंगा मिला और वे ईवीएम को रोते रहे।

मुझे लगता है कि चुनाव आते आते, मैं नोटा से हट कर प्रो-भाजपाई बन जाऊंगा! 😆

वैसे भी और चीजें या तो भाजपा के पक्ष में हैं, या उनका प्रचारतंत्र के माध्यम से सही प्रचार प्रारम्भ हो गया है। मसलन चार पांच लड़के सवेरे कोचिंग से लौट रहे थे। अपनी साइकिल चलाते पिठ्ठू लादे, बात कर रहे थे भोजपुरी बनाम पंजाबी गानों की। एक भोजपुरवादी था तो दूसरे को फलानी पंजाबी गायिका का चेहरा पसंद था। जो उनमें तटस्थ टाइप था, वह एक केसरिया गमछा इस तरह मुंह पर लपेटे था कि वह उसे केसरिया मास्कवादी बना दे रहा था। मैंने पूछा – गमछा कोरोना से बचने के लिये लपेट रखा है? उसने उत्तर दिया – “नहीं कोरोना से बचाव तो हो जाता है, कोरोना तो खतम ही है। मेन फायदा सर्दी से बचाव का है। सेफ्टी ही सेफ्टी।”

जो उनमें तटस्थ टाइप था, वह एक केसरिया गमछा इस तरह मुंह पर लपेटे था कि वह उसे केसरिया मास्कवादी बना दे रहा था।

मैंने उससे रुकने का आग्रह किया कि उसका एक चित्र ले लूं। वह सहर्ष तैयार हो गया। फोटो खिंचा कर बोला – “फेसबुक पर तो नहीं डाल देंगे न?”… अंदाज यह था कि डाल दीजियेगा। अपने मित्र से बोलने लगा – अब मैं फेमस हो रहा हूं!

ट्विटर तो अभी गांवदेहात की चीज नहीं है, पर फेसबुक और यू-ट्यूब तो यूं हो गये हैं जैसे लहसुन की चटनी या लाल मिर्च का अचार! 🙂

खराब सड़क और सवेरे की गुनगुनी ठण्डी हवा को चीरते हुये करीब आठ किलोमीटर साइकिल चला कर गंगा किनारे पंहुचा तो मायूसी हुई। पूरा घाट खाली था। एक भी नाव नहीं। कोई मछेरा नहीं। कोई मछली खरीदने वाले नहीं। गंगाजी में पानी बहुत था। पर मछली पकड़ने और खरीद फरोख्त का कारोबार शांत था।

सवेरे की गुनगुनी ठण्डी हवा को चीरते हुये करीब आठ किलोमीटर साइकिल चला कर गंगा किनारे पंहुचा तो मायूसी हुई। पूरा घाट खाली था। एक भी नाव नहीं। कोई मछेरा नहीं। कोई मछली खरीदने वाले नहीं।

असल में पानी इतना बरसा है कि हर पोखर और यहां तक कि खेत भी मछलियों से भरे हैं। एक ओर पानी भरे खेतों में धान की कटाई चल रही है दूसरी ओर उन्हीं खेतों से हाथ में ही मछलियां पकड़ी जा रही हैं। आजकल गेंहू चावल मोदी सरकार फ्री में दे रही है और खेत मछलियां दे रहा है पौष्टिकता बढ़ाने के लिये। इसलिये मछली का मार्केट नहीं बन पा रहा। यह मेरी आज का दृश्य देखने के बाद की अटकल है।

आज बहुत अर्से बाद कुल अठारह किलोमीटर साइकिल चलाई। प्रेमसागर 30-35 किलोमीटर कांवर ले कर चल लेते हैं। लगभग उतनी दूरी मैं साइकिल से तो तय कर ही पाऊंगा। शायद कभी साइकिल-कांवरिया बन कर भारत भ्रमण कर सकूं। अपनी शेखचिल्ली वाली विशफुल थिंकिंग में साइकिल-कांवर भी जोड़ लेता हूं! 😆


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “मतदाता वशीकरण यज्ञ और अन्य बातें

  1. एक उम्र के बाद पैदल यात्रा कठिन हो जाती है। घुटने बागी हो जाते हैं। ऐसे मे साइकिल का साथ होना बहुत काम आता है। इससे आस-पास का भ्रमण तो आसान होता ही है, घुटनों की मालिश भी होती रहती है। साइकिल हो तो बाहर निकलने में आलस्य भी नहीं लगता। प्रदूषण फैलाने का दोष भी इस वाहन पर नहीं लग सकता। आपकी सड़क का लेपन कार्य हो रहा है तो आपका साथी भी प्रसन्न हो रहा होगा।

    दीप पर्व की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. जय हो सिद्धार्थ! दिवाली आपकी और आपके परिवार के लिए मंगल मय हो! शुभकामनायें!

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