बडवाह से माहेश्वर

प्रेमसागर 1 नवम्बर को बड़वाह से माहेश्वर के लिये रवाना हुये। रास्ता लगभग नर्मदा के उत्तरी भाग के समांतर चलता है। सवेरे साढ़े पांच बजे निकले। उन्हें छोड़ने के लिये वन कर्मी – भगवान जी केवट और एक अन्य आये। चित्र देख कर लगता है कि हल्की सर्दी प्रारम्भ हो गयी है। एक नदी के चित्र से भी लगता है कि सवेरे सवेरे नदी के जल के समीप ठण्डी हवा भाप की तरह उड़ती नजर आ रही है। नवम्बर का महीना और नदी घाटी का इलाका; कुछ सर्दी तो हो ही गयी होगी। आसपास को देखते हुये प्रेमसागर ने बताया कि दोनो ओर उन्हें खेती नजर आती है। जंगल नहीं हैं। गांव और घर भी बहुत हैं। लोग भी दिखाई देते हैं। रास्ता वीरान नहीं है। भय की कोई बात ही नहीं। … भय की बात उन्होने इसलिये की कि चोरल-बड़वाह के बीच सुनसान जंगल में उनके साथ लूट का हादसा हो चुका था।

एक नदी के चित्र से भी लगता है कि सवेरे सवेरे नदी के जल के समीप ठण्डी हवा भाप की तरह उड़ती नजर आ रही है।

प्रवीण जी से इस इलाके के बारे में बात की तो उन्होने बताया कि अगर प्रेमसागर त्र्यंबकेश्वर के लिये निकलते हैं तो माहेश्वर से सैंधवा पड़ेगा। और इस पूरे इलाके में वन नहीं है। आबादी अधिक है, और उसने खेती के लिये वन समाप्त कर दिये हैं। वन विभाग जो वन लगाने का काम भी करता है, उसे पशु चर जाते हैं। कुछ बड़े भी हो पाये तो लोग जलावन लकड़ी के लिये काट लेते हैं। यह आबादी और वन के बीच सतत जद्दोजहद है, जिसमें लोगों की बसावट हावी है। पर इलाके में हॉर्टीकल्चर के बहुत सफल प्रयोग हुये हैं। केला पपीता नींबू की खेती व्यापक पैमाने पर की जा रही है। टिश्यू कल्चर की इन फलदार वृक्षों की प्रजातियां लोग लगा रहे हैं और लाभ भी कमा रहे हैं।

प्रेमसागर ने रास्ते में केले की खेती देखी। केले के खेत कोई बाड़ लगा कर सिक्योर नहीं किये गये थे खुले में ही थे। केले के अलावा एक जगह पपीते के 10-15 पेड़ दिखे। किसी ने शुरुआती प्रयोग किया होगा। व्यापक तौर पर पपीता लगा नहीं दिखा। एक जगह 20-25 अमरूद के छोटे पेड़ थे, शायद कोई बौनी किस्म के होंगे। बैलगाड़ियों में कपास लदी जाती दिखी। एक जगह ट्रक में भी कपास लादी जा रही थी। लोगों ने बताया कि बड़वाह में कपास मण्डी है। इसके अलावा किसान छोटी छोटी दुकानों में भी ले जा कर अपनी कपास बेचते हैं। छोटी दुकानों वाले जमा कर बड़वाह मण्डी ले जाते होंगे। कपास की खेती किसानों को समृद्धि देती होगी। यह जानना अच्छा लगा कि गेंहू-धान की मोनो कल्चर की दकियानूसी खेती में ही नहीं फंसा है किसान। खेतों की जोत बड़ी है तो खेती सार्थक तरीके से हो रही है। नर्मदा घाटी होने के कारण जमीन उपजाऊ है ही और जल की भी समस्या नहीं।

रास्ते का खेत

जल की गुणवत्ता के बारे में कहा जा सकता है कि नर्मदा में जल पर्याप्त है और स्वच्छ भी है। प्रवीण जी ने बताया कि पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड नियमित गुणवत्ता के आंकड़े देता है। उसे देख कर नर्मदा के जल की गुणवत्ता के बारे में संतोष किया जा सकता है। अमरकण्टक से ले कर होशंगाबाद और उसके बाद भी पर्याप्त वन हैं। उस क्षेत्र से नर्मदा की ट्रिब्यूटरी नदियां पर्याप्त जल नर्मदा में लाती हैं। डैम बनने से ऐसा नहीं हुआ है कि नदी मरने लगी हो। हाइड्रो-बिजली उत्पादन के लिये नदी में जल छोड़ा ही जाता है। अतिरिक्त जल से नहरों के माध्यम से सिंचाई से भी समृद्धि आयी है। कुल मिला कर, प्रवीण जी के अनुसार, नर्मदा जल की दशा और मध्यप्रदेश की समृद्धि में सही तालमेल बना हुआ है।

रास्ते में मिली नहर या नदी

प्रेमसागर को रास्ते में गाडुलिये लोहार भी दिखे। वे घुमंतू लोग ऊंट के काफिले में जा रहे थे। मैंने यहां भदोही में उन घुमंतू लोगों से जो बातचीत की है, उसके अनुसार वे गुना, मध्यप्रदेश में बसाये गये हैं। वहां से वे देश के भिन्न भिन्न भागों में यात्रा करते रहते हैं। उन घुमंतू लोगों पर लिखना-कहना तो एक पुस्तक/अध्ययन का विषय है। कोई अच्छी पुस्तक उनपर लिखी हाथ नहीं लगी मुझे!

प्रेमसागर को रास्ते में गाडुलिये लोहार भी दिखे। वे घुमंतू लोग ऊंट के काफिले में जा रहे थे।

माहेश्वर के पहले मण्डलेश्वर में नर्मदा किनारे रेस्ट हाउस है, वन विभाग का। बहुत रमणीय स्थान पर रेस्ट हाउस है। आगे की दुरुह यात्रा के पहले यह स्थान अच्छा है कुछ दिन रुक कर अपने शरीर की थकान दूर करने और अब तक की यात्रा पर मनन करने के लिये। मैंने प्रेमसागर को यही सलाह दी कि आसपास के स्थलों को ज्यादा देखने जाने का लालच छोड़ कर दो तीन दिन विशुद्ध आराम करें। तीन ज्योतिर्लिंगों की पैदल कांवर यात्रा अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। उससे उनमें पर्याप्त आत्मिक, आध्यात्मिक और लौकिक परिवर्तन हुये हैं। उन्हे बहुत सहायता भी मिली है और बहुत श्रम भी करना पड़ा है। उन्होने कई रूढ़ियों को तोड़ा भी है और कई नयी तकनीकें भी सीखी हैं।

प्रेमसागर के अनुभव और व्यक्तित्व विकास से मुझे ईर्ष्या होती है। उनके माध्यम से मैंने भी मानसिक यात्रा कर ली है इतनी सारी पोस्टों को लिखने के लिये। … मैं सोचता था कि मुझे भी समय चाहिये यह सब आत्मसात करने के लिये। यह तो तय किया है कि आगे की यात्रा का विवरण लिखना फिलहाल मैं जारी रखूंगा। पर उसे लिखने की प्रकृति और आवृति में कुछ परिवर्तन करना होगा। मुझे लगता है कि लेखन में प्रवाह ज्यादा होना चाहिये, जानकारी ज्यादा होनी चाहिये, पर व्यक्तिगत आसक्ति कम होनी चाहिये। पर यह सब कैसे होगा, अभी मुझे स्पष्ट नहीं है।

मण्डलेश्वर में रेस्ट हाउस से दिखता नर्मदा का दृश्य

फिलहाल अभी प्रेमसागर मण्डलेश्वर में ही हैं। सुबह शाम नर्मदा दर्शन और स्नान कर रहे हैं। उनके माहेश्वर-मण्डलेश्वर विश्राम के बारे में अगली पोस्ट में लिखूंगा।

हर हर महादेव! जय हो; नर्मदे हर!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “बडवाह से माहेश्वर

  1. खेती और फ़र्नीचर ने जंगल काट डाले। रहने के लिये एक मंज़िला और व्यक्तिगत फैलाव लिये मकान। समग्र सोच चाहिये कि मकान ऊँचे हों, सबके रहने के लिये, खेती यथावश्कता हो, फ़र्नीचर बाँस या लोहे के हों और शेष स्थानों पर वन लगे। तब जीवन की समग्रता आयेगी। जापान में भूमि की कमी है, वे जानते हैं कि कैसे उसका संदोहन करना चाहिये।

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    1. जंगल संवर्धन पर आम जनता को समझाते हुए लिखा जाना चाहिए. मैं प्रवीण (दुबे) जी से चर्चा करूंगा.

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  2. 👏🏻👏🏻
    सर्दियों का मौसम यात्रा हेतु अनुकूल ही रहेगा इधर। रात में थोड़ी परेशानी जरूर हो सकती हैं। पर दिन में आराम रहेगा।
    महेश्वर से धामनोद होते हुए आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पकड़ लेंगे। या कसरावद होते हुए जाएंगे?

    महेश्वर भी प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं।

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    1. अभी स्पष्ट नहीं कि कहां जाएंगे प्रेम सागर. शायद कल रवानगी हो तो अंदाज लगे. अभी विकल्पों पर मंथन कर रहे हैं.

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