05 नवम्बर 21, रात्रि –
प्रेमसागर 4 दिन से माहेश्वर में हैं। आज सवेरे उन्हें निकलना था, पर मौर्य जी, एसडीओ साहब ने उन्हें रोक लिया। दिवाली के बिहान पर सड़कें सुनसान रहती हैं, सो बेहतर है एक दिन बाद निकला जाये। कहां, किस रास्ते निकलना है यह वे अंतिम क्षण तय करेंगे। सम्भव है, चोरल – बड़वाह के बीच की घटना के बाद कुछ नये प्रकार से यात्रा की योजना हो, मैंने ज्यादा तहकीकात नहीं की। उन्हें कुल बारह ज्योतिर्लिंग दर्शन करने हैं। मैं इनको नक्शे पर मैप कर सबसे कम दूरी चलने के आधार पर मार्ग तय करना उचित समझता था, पर यात्रा करते समय अन्य सुविधायें शायद ज्यादा महत्व रखती हैं। और फिर महादेव क्या चाहते हैं, उसपर ही सब निर्भर करता है। महादेव मुझ अकेले, की-बोर्ड के साथ बैठे, के साथ तो हैं नहीं। वैसे भी वे मुझे यात्रा मार्ग तय करने के लिये उपयुक्त पात्र पाते नहीं होंगे। मैंने तो जीवन में केवल छोटी और लम्बी दूरी की ट्रेनों को चलाने की योजना बनाई या उसको मूर्त रूप दिया है। यात्री और मुख्यत: तीर्थयात्री की सोच और जरूरतें ट्रेन यात्रा की जरूरतों से अलग होती हैं। … तीर्थयात्रायें की-बोर्ड पर जन्म नहीं लेतीं। मैंने जो ट्रेवलॉग पढ़े हैं वे अधिकतर खोजी लोगों के हैं, तीर्थ श्रद्धालुओं के नहीं। सो पढ़ने में भी प्रेमसागर जैसे लोगों की समझ नहीं आयी है मुझमें।
यात्रानुशासन क्या है? यात्रा घर में आराम से बैठने की आसक्ति या राग का त्याग – विराग ही है। अपना बिस्तर, अपनी कुर्सी, अपना कमोड, अपना स्नानघर, अपनी बगिया, अपना आंगन-ओसारा छोड़ कर निकल पड़ना एक प्रकार का वैराज्ञ ही हो है। वह जो प्रेमसागर करने में सक्षम हैं और ज्ञानदत्त उसके लिये निहायत अक्षम/लद्धड़।
मुझे रामकृष्ण परमहंस जी की एक लघु कथा याद आती है। उसमें पत्नी अपने पति को कह रही थी कि उसका भाई वैराज्ञ लेने की बहुत तैयारी कर रहा है। बहुत गहन तैयारी। जल्दी ही वह वैराज्ञ ले लेगा। उसने पति ने कहा कि वैराज्ञ ऐसे थोड़े ही लिया जाता है। पत्नी ने अपने प्रिय भाई के बारे में ऐसी टिप्पणी सुन तुनक कर पूछा – तो कैसे लिया जाता है? इसके उत्तर में आदमी उठा और घर से निकलते हुये बोला – “ऐसे लिया जाता है”। और वह चलता चला गया। वापस नहीं आया। वैराज्ञ या यात्रा – कुछ ऐसे ही लिये-किये जाते हैं।
लम्बी चौड़ी योजना बनाने वाला (पढ़ें – मेरे जैसा व्यक्ति) यात्रा पर नहीं निकलता। यात्रा पर प्रेमसागर जैसा व्यक्ति निकलता है जो मन बनने पर निकल पड़ता है। सो, प्रेमसागर मन बनने के साथ ही आगे की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ेंगे। माहेश्वर और नर्मदा का आसक्ति-राग लम्बा चलने वाला तो है नहीं। वह विराग ही तय करेगा कि उन्हें किस ओर निकलना है। यात्रा यूं होगी।
प्रेमसागर माहेश्वर घूमे। एक दिन उन्होने मुझे 100 से अधिक चित्र भेज दिये। सुंदर चित्र पर किसी पर कोई विवरण नहीं। एक एक चित्र के आधार पर उन्हें फोन कर विवरण पूछ्ना बहुत कठिन तो नहीं था, पर वह पूछ कर नोट्स बनाने का धैर्य मैंने नहीं दिखाया। मैंने देखा है कि किसी भी घूमने की जगह – अमरकण्टक, जबलपुर, भोपाल आदि के बारे में लिखने में मुझे यही दिक्कत हुई है। प्रेमसागर ने देखा बहुत है; चित्र भी खूब खींचे हैं, पर मेरा विवरण उनके साथ न्याय नहीं कर पाया। वही हाल मण्डलेश्वर-माहेश्वर के साथ है।
मण्डलेश्वर के साथ नाम जुड़ा है मण्डन मिश्र का। वे महान मीमांसक थे जो शास्त्रार्थ में आदिशंकर से पराजित हो कर उनके शिष्य बने। माहेश्वर प्राचीन काल में (जिसका इतिहास केवल ग्रंथों में मिथकीय उल्लेख में मिलता है) कार्तवीर्य अर्जुन या सहस्त्रबाहु अर्जुन (या मात्र अर्जुन नाम में ही); हैयय वंश के प्रतापी राजा की राजधानी माहिष्मती थी। अर्थात माहेश्वर वैसा ही प्राचीन स्थल/नगर है जैसा उज्जैन या वाराणसी। सहस्त्रबाहु अर्जुन के बारे में प्रसिद्ध है कि उसने अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा के जल को रोक दिया था। अब शायद उस युग में सहस्त्रार्जुन ने बांध जैसा कुछ बनाया हो अपने कुल की रानियों के स्नान – विहार के लिये।
रामायण में सहस्त्रबाहु अर्जुन का कई बार उल्लेख होता है। तुलसीदास जी ने रावण की महिमा घटाने के लिये दो बार उनका उल्लेख किया है। रावण की सभा में हनूमान और अंगद जब दूत बन कर जाते हैं, तो रावण का उपहास करने के लिये यह उल्लेख करना नहीं भूलते कि उसे सहस्त्रार्जुन ने बांध कर अपने किले के कोने में कैद कर लिया था और फिर पुलस्त्य ऋषि के आग्रह पर छोड़ा था। एक बार परशुराम जनक की सभा में कहते हैं कि उन्होने सहस्त्रार्जुन का वध किया था, और वे यहां भी उनका नाश करने से चूकेंगे नहीं, अगर उन्हें यह नहीं बताया गया कि पिनाक किसने तोड़ा है। कुल मिला कर रावण के संदर्भ में और परशुराम के संदर्भ में सहस्त्रबाहु अर्जुन का बार बार उल्लेख मिलता है। प्रेमसागर ने राजराजेश्वरी मंदिर घूमते समय सहस्त्रार्जुन की प्रतिमा का भी चित्र भेजा। वह माहेश्वर की प्राचीनता का सबसे बड़ा हस्ताक्षर है। हैहय सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रार्जुन) के बारे में अनेक प्राचीन महाभारतकालीन या उससे पहले के काल को दर्शाते हुये उपन्यासों में बार बार पढ़ा था, वह माहेश्वर का था और प्रेमसागर वहांं आजकल डेरा डाले हैं – यह अनुभूति रोमांचक है।

सहस्त्रार्जुन के अलावा अधिकांश चित्र होल्कर वंश के मराठा स्थापत्य और अहिल्याबाई होल्कर के हैं। उज्जैन के महाकाल मंदिर का (इस्लामी अतिक्रमण के बाद) पुनरोद्धार का कार्य, मुझे वहां एक ब्राह्मण ने बताया था कि रानी अहिल्याबाई ने ही कराया था। वाराणसी के भी कई मंदिरों का पुन: उद्धार रानी अहिल्याबाई द्वारा कराया गया था। सम्भवत: काशी विश्वनाथ मंदिर का भी। उनका नाम आदर से लिया जाता है हिदू मंदिरों के पुनर्स्थापन के लिये।

वहां के म्यूजियम और आसपास के कई चित्र प्रेमसागर ने भेजे हैं। सभी अच्छे हैं। उनमें तोप, पालकी, तलवारें, संदूक, मूर्तियां, नर्मदा किनारे घाट और इमारतेंं- बहुत कुछ हैं। उनके बारे में मैं विस्तार से लिख पाता अगर मैंने वह स्थान देखे होते या प्रेमसागर से विस्तृत बातचीत हुई होती। इस कोण से यह ट्रेवलॉग – अगर इसे ट्रेवलॉग माना जाये तो – कमजोर प्रतीत होता है। मैं केवल चुने हुये चित्र नीचे स्लाइड-शो में लगा दे रहा हूं।
(प्रेमसागर के माहेश्वर भ्रमण के चित्र)
प्रेमसागर को खूब सहयोग मिला है वन विभाग के लोगों का; इतना की उन्हें या मुझे कल्पना भी नहीं थी। उनके साथ भ्रमण पर गये कई लोगों के साथ उनके चित्र हैं। मैंने प्रेमसागर को कहा कि वे लोगों के नाम – बांये से दांये के क्रम में लिख कर भेज दें। पर वह वे यह पोस्ट लिखने तक नहीं कर पाये। लोगों के नाम और नामों के सही सही हिज्जे लेना और याद रखना प्रेमसागर का प्लस प्वाइण्ट नहीं है। मेरा भी, मेरे जीवन के पूर्वार्ध में, नहीं था। पर मैंने लोगों से उनका नाम बार बार सही उच्चारण के साथ पूछना, उनके सामने बोलना और मौका पाते ही उसे नोटबुक में दर्ज करना सीखा। उससे मेरी यह कमजोरी कुछ सीमा तक दूर हुई और मैं कुछ बेहतर ब्लॉग लिख पाया। वैसे अभी भी मेरी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। अभी भी किसी किताब के बीस तीस पन्ने पढ़ जाने के बाद ही लगता है कि यह किताब तो शायद पहले पढ़ रखी है। और कई बार अपना खुद का पुराना लिखा पढ़ने पर सोचता हूं कि किसने लिखा होगा! 😆
खैर उन वन विभाग के बंधुओं का चित्र मैं नीचे लगा दे रहा हूं। उनके नाम मिले तो कैप्शन में सम्पादित कर जोड़ दूंगा। उसके इंतजार में पोस्ट रोके रखना उचित नहीं लगता।

प्रेमसागर को अगले दिन भी भ्रमण का प्लान बताते समय मैंने उन्हे कहा कि एक दो दिन जो माहेश्वर में गुजारने हैं, उनका प्रयोग वे घूमने में नहीं चुपचाप बैठ आराम करने, शरीर को विराम देने और मनन करने में लगायें। आगे मध्यप्रदेश के पश्चात उनकी यात्रा किस स्वरूप में होने जा रही है, उसपर विचार करें। सामने नर्मदा तट पर पैदल हो आया करें और अगर उनके जल में सूर्योदय-सूर्यास्त दिखता है, उसे निहारें। मेरे ख्याल से प्रेमसागर ने वही किया। अपने आराम का बैकलॉग पूरा किया। अपनी टांगों को वांछित विश्राम दिया। आगे किन किन चीजों की जरूरत होगी, उनका इंतजाम किया। दो-तीन दिन इस प्रकार व्यतीत किये। यूं कहें तो अपने शरीर की बैटरी री-चार्ज की। अब आगे की यात्रा के लिये वे तैयार हैं।

कल देखते हैं उनकी आगे की यात्रा कहां की और कैसे होती है। आगे की यात्रा में मैं राग से नहीं, विराग से जुड़ूंगा; या कम से कम वैसा प्रयास करूंगा। उनके लोकेशन शेयर करने में देर करने पर खीझना, उनके फीडबैक में कमी-बेसी पर अप्रसन्नता व्यक्त करना, उनके डिजिटल माध्यम के प्रयोग में कमी पर बार बार टोकना आदि बंद करूंगा। वह मेरा बहुत समय और ऊर्जा लेता है। इससे सम्भव है कि ब्लॉग पोस्टों का स्वरूप भी बदले और आवृति भी। यह भी सम्भव है कि कुछ बेहतर होने और लिखा जाने लगे।
हर हर महादेव।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
आप प्रेमशंकर जी से बोलिये कि वे फोटो लेने के पश्चात् व्हाट्सप्प पर उनके बारे में साउंड को रिकॉर्ड कर लिया करें. अगर वे ऐसा कर पाएं तो बेहतर होगा. हो सकता है कि आप उनको ये पहले ही बता चुके हों.
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यह उन्हें कई बार कह कर हार चुका. 😔
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सोचता हूँ कि यदि को यात्रासूत्र लिखेगा तो उसका पहला सूत्र क्या होता। अथातो घुमक्कड़ी जिज्ञासा या अथ यात्रानुशासनम्? निर्भर करता है कि किस प्रकार से हम इस प्रकरण को लेते हैं।
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यात्रानुशासन बढ़िया शब्द है. उपनिषद टाइप. 😁
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ये सत्य ही कहा सर आपने कि योजना बनाने वाले निकल नहीं पाते। मैं भी उसी श्रेणी में हूँ। और जितनी भी महत्वपूर्ण यात्राएं हुई हैं वो लगभग सभी अप्रत्याशित या अनियोजित ही हुई। बस निकल पड़े।
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