बोडेली में प्रेमसागर धनराज कोठारी जी के यहां ठहरे। धनराज कोठारी, उनकी पत्नी और उनके लड़के कैलाश जी के चित्र उन्होने भेजे हैं। अगर बोडेली को एक बड़ा गांव माना जाये और कोठारी परिवार को किसान नहीं, व्यवसायी माना जाये, तो उत्तरप्रदेश और गुजरात के समकक्ष कस्बाई व्यवसायी परिवार की समृद्धि का अंतर उन चित्रों से साफ नजर आता है। सुरुचिपूर्ण ड्रॉइंग कक्ष और उसमें सुविधायें यहां के बेतरतीब कमरों जिनमें रिहायश के सभी अंगों – अतिथि, बिस्तर, भोजन कक्ष और ओसार – सब गड्ड-मड्ड होता है – की बजाय बहुत ही अलग दिखती है। यहां के समृद्ध से समृद्ध परिवारों के घर भी बड़े लदर फदर होते हैं। सोफा या खिड़कियों पर पर्दों का प्रयोग नहीं दिखता। उसकी बजाय प्लास्टिक की कुर्सियाँ दिखती हैं। कमरों में रोज साफ सफाई, डस्टिंग और पोछा लगाना भी नहीं होता।

धनराज जी के परिवार के अलावा प्रेमसागर से मिलने के लिये घर में कई लोग आये। लोगों की धर्मपरायणता, प्रेमसागर की कांवर यात्रा की दुरुहता और और एक सहज कौतूहल ने उन्हें प्रेमसागर से मिलने को आकर्षित किया होगा। धनराज जी के ड्रॉइंग रूम में बैठे कई लोगों के कई चित्र प्रेमसागर ने मेरे पास भेजे हैं। इसके अलावा उन्होने बताया कि अगले दिन जब वे बोडेली से डभोई के लिये निकले तो सड़क पर करीब पचास लोग उन्हें विदा करने के लिये जमा थे। कोई उन्हें फूल माला पहना कर विदा कर रहे थे और किसी ने तो उनकी आरती भी की। प्रेमसागर से यह सुन कर मैंने तुरंत उन्हे कहा कि सत्कार-फूलमाला-आरती को वे अपने बाबाजी बन जाने का मुगालता न पालें। यही मान कर चलें कि वे एक संकल्पबद्ध साधारण कांवर यात्री हैं। ये सत्कार या उपेक्षा (या लूट की घटना भी) तो यात्रा के सहज अंग हैं। उन्हें अपनी ईगो बूस्टर के रूप में कत्तई नहीं लेना चाहिये। पर यह अच्छा लगा कि लोग प्रेमसागर को जान रहे हैं और यात्रा में सहायता कर रहे हैं। इससे यात्रा में एक साधन हीन को साधन मिल रहे होंगे।

एक से एक कर लोग जुड़ रहे हैं। रतलाम-उज्जैन के शेखर व्यास जी के माध्यम से अलीराजपुर के कमलेश जोशी, आशुतोष पंचोली और उनके माध्यम से गुजरात में ये सज्जन लोग… इनके माध्यम से आगे भी लोग मिलते रहेंगे। प्रेमसागर के लिये एक बिस्तर और सादे भोजन का जुगाड़ होता चलेगा। महादेव के इस भक्त की जरूरतें बहुत नहीं हैं। वे पूरी होती रहेंगी; आशा की जानी चाहिये। पर, और यह एक अनिवार्य ‘परंतु’ लगाना है – कि प्रेमसागर को गाहे बगाहे पीपल के पेड़ के नीचे रात गुजारने को भी तैयार रहना चाहिये।
बोडेली से डभोई के रास्ते के चित्रों में एक बड़ी नहर, केले की खेती और लम्बी सींग वाले गाय-बैलों के चित्र हैं। गाय की नस्ल उत्तर प्रदेश की छोटे साइज वाली गाय से अलग लगती है। प्रेमसागर ने अलीराजपुर से भेजी भास्कर में छपी उनपर पांच कॉलम की रिपोर्ट की कटिंग भी मुझे फारवर्ड की है।

अलीराजपुर के आशुतोष पंचोली जी ने अपने ‘अलीराजपुर न्यूज’ यू-ट्यूब चैनल के लिये एक वीडियो भी बनाया है। उसका लिंक भी भेजा। कुल मिला कर प्रेमसागर के सेलिब्रटीत्व का खासा मसाला बन रहा है। प्रेम सागर ने बताया कि फोन पर उन्हें सूचना मिली है कि असम में कोई लोग उनकी यात्रा की सफलता की कामना के लिये शिवपुराण श्रवण का अनुष्ठान भी कर रहे हैं।
डभोई पंहुच कर प्रेमसागर ने पांच-साढ़े पांच बजे फोन किया – “भईया आज तो गजबै हो गया। लोगों ने आगे व्यवस्था के लिये कहा होगा और यहां दो जगहों से रात्रि में रुकने के लिये आग्रह के फोन आने लगे। यहां के बद्रीनारायन मंदिर के कई लोग तो रास्ते में आ कर कई किलोमीटर पहले मुझे मिले और मेरा सामान मंदिर में ले आये। मेरे साथ कुछ लोग पैदल भी आये मंदिर तक। मुझे दूसरे वाले लोगों को फोन कर बताना पड़ा कि उनके यहां रुकना नहीं हो पायेगा।”
बद्रीनारयण मंदिर से मुझे याद आया उत्तरप्रदेश मेंं मिर्जापुर जिले में एक मंदिर का हाल। वहां भी विष्णु भगवान का मंदिर था। प्रेमसागर रुकना चाहते थे पर मंदिर के लोगों ने कहा कि वहां बिजली कम ही आती है, मच्छर बहुत हैं। इसलिये बाबा जी आप कहीं आगे जा कर रुकने का स्थान तलाशो! उत्तर प्रदेश से गुजरात तक में यह फर्क पड़ा है कि महादेव ने बद्रीनारायण को अपने भगत के लिये साध लिया है! वैष्णव इस शैव भक्त को मनुहार कर अपने यहां ठहरा रहे हैं। 😆
रात आठ बजे मैंने प्रेमसागर से बात की तो वे देवोत्थानी एकादशी की शाम के विष्णु भगवान के तुलसी विवाह के कार्यक्रम में बैठे थे। पूछा पछोरा नहीं उनसे, पर तुलसी विवाह के उपरांत प्रसाद बढ़िया ही लहा होगा!
डभोई में तो प्रेमसागर का ठौर-ठांव बढ़िया जम गया। कल उन्हें वडोदरा के लिये निकलना है। नक्शे के हिसाब से वडोदरा तैंतीस किलोमीटर दूर है। आशा की जानी चाहिये कि वहां भी प्रेमसागर के रुकने का इंतजाम हो ही जायेगा।
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
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Sir Gujarat ke log avam apki I T yah sab Mahadev ji k gan sidh ho rahe h apne bhakt ka khayal swayam Mahadev kinhi madhyam se kara rahe h Jai Bholenath
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🙏🏻
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मुंद्रा, कच्छ, गुजरात में जब नौकरी करता था तो पास की एक गौशाला में डिस्प्ले में बैल के सींग रखे थे। सबसे बड़े सींग वाला बैल। सामान्यतः गुजरात में गाय बैल अच्छी कद काठी के ही देखे हैं।
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गिर की गाय की मांग ज्यादा है. यहां उसे बड़े इज़्ज़त से देखा जाता है.
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गुजरात ने पिछले दो दशक में संवर्धन के लिए काफी काम हुआ है पर ब्राजील ने 90 के दशक में गीर नस्ल में काफी इन्वेस्ट किया है। शुद्व गीर नस्ल की गाय आज भी दूध उत्पादन में अव्वल है पर दुनिया मे उसकी महत्ता इनकी नेचरल इम्युनिटी की वजह से ज्यादा है।
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बढ़िया! बंधुवर यदि आप वर्तमान में क्षेत्र से जुड़े हुए हैं तो आपसे दैनिक संपर्क इस ब्लॉग लेखन के लिए अच्छे इनपुट्स दे सकता है। प्रेम सागर जी तो मात्र तीर्थ यात्री की तरह चल रहे हैं, प्रांत के पर्यावरण और दशा तो आप बेहतर बता सकते हैं.
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जितना बन पड़ेगा व जानकारी है वह जरूर ही साजा करूँगा।
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सर, 40-50 किलोमीटर में तो जिसके यहां रुके हैं या जिनसे मिले हैं उनके परिचित या रिश्तेदार मिल ही जाते हैं। सम्भवतः प्रेमसागर जी के रुकने में कम ही समस्या आये। वैसे भी गुजरात के लोग बहुत मिलनसार और भगवतभक्त होते हैं।
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हाँ, मुझे आशंका थी कि कैसे इंतजाम होगा पर वह निर्मूल साबित हो रही है…
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कांकरेजी नस्ल है बैल की। गुजरात मे पायी जाने वाली अपनी ऊंची व छरहरी कद काठी व तेज चाल के लिए ये बैल जाने जाते है।
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धन्यवाद इनपुट के लिए! 🙏🏻
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