29 नवम्बर 21, रात्रि –
सवेरे वागड़ से निकलने के बाद प्रेमसागर को एक नहर दिखी। लगता है गुजरात की खुशहाली – जैसी भी है – का एक प्रमुख कारण इन नहरों का जाल है। पक्की नहर जिसमें पानी का रिसाव नहीं होता; उनसे पानी लेने के लिये भी पाइप और वाल्व जैसा कुछ देखा प्रेमसागर ने। उसका चित्र नहीं ले पाये। पर यह तो स्पष्ट हुआ कि जल किसान के पास बिना अपव्यय के पंहुच रहा है और उससे खुशहाली आ रही है। ऐसे में कुपोषण के डाटा जो दिखाये जाते हैं, उनको समझना कठिन होता है। शायद लोगों की भोजन की आदतों से जुड़ा हो वह मामला। बहरहाल, समृद्धि तो नजर आती है।

एक चाय की दुकान में बैठे प्रेमसागर। चायवाले भाई ने प्रेमसागर को देख कर उन्हें बुला कर चाय नाश्ता कराया। चाय की दुकान की फोटो में एक बच्चा भी दिखता है। मैंने उसके बारे में प्रेमसागर से पूछा। उन्होने कहा कि वह अपने घर से भाग कर भटकता हुआ यहां आ गया था। यहीं रह गया। मध्यप्रदेश का है वह। उसकी मां की अकाल मृत्यु हो गयी थी और विमाता उसे बहुत सताती थी। तो घर से भाग खड़ा हुआ। अब यहां रहता है और वापस नहीं जाना चाहता। उसका कोई कॉण्टेक्ट भी नहीं है अपने पैत्रिक स्थान से। प्रेमसागर ने उसका हाल पूछा तो वह प्रसन्नमन से बोला कि यहां वह बड़े अच्छे से है।

चाय वाले सज्जन के माता पिता भी आये प्रेमसागर से मिलने। उन्होने चरण छू कर उनको प्रणाम किया। मां ने आग्रह किया कि उनके यहां कुछ देर रुक कर वे स्नान-ध्यान-भोजन कर लें। पर प्रेमसागर ने बताया कि वह स्नान-पूजा वे सवेरे कर चुके हैं। उसके बाद ही यात्रा प्रारम्भ होती है।
सौराष्ट्र के बारे में बताते हुये प्रेमसागर के ऑब्जर्वेशन हैं – जमीन में बबूल बहुत हैं। उन्होने पता नहीं किया है पर बबूल का गोंद यहां सस्ता मिलना चाहिये। वे रात में बबूल का गोंद भिगो कर सवेरे उसका सेवन करते हैं। “पता करूंगा; अगर कहीं सस्ता मिला तो खरीद लूंगा।” बबूल के अलावा यहां कपास की खेती बहुत है। लोग बाजरे की रोटी का प्रयोग बहुत करते हैं। अतिथि सत्कार में दूध और मठ्ठा खूब परोसते हैं। मठ्ठा तो ऐसा होता है जैसे दही। “इसके अलावा खास बात यह है भईया कि यहां लोग दूध में पानी नहीं मिलाते। लोग सीधे सादे हैं। किसानी पर ज्यादा आश्रित हैं पर यहां किसान गरीब बहुत कम हैं। सौराष्ट्र का बच्चा बच्चा तक भक्ति भाव रखता है।” – प्रेमसागर ने कहा। एक स्थान पर प्रेमसागर को नागफनी के झाड़ भी दिखे। उससे सोरठ की भूमि और जलवायु की कल्पना की जा सकती है।



“कल दो धोती मैंने निकाल कर दान कर दिया भईया। अब अपने साथ काम से कम सामान ले कर यात्रा करूंगा। कांवर में तो सामान नहीं रहेगा। केवल जल ही जल रहेगा। किसी ने बताया है कि सोमनाथ (वेरावल) में लोटा सस्ता मिलता है। वहां दो बड़े लोटे खरीद कर जल उनमें रखूंगा। अभी बैग (पिठ्ठू) खरीदना है। यात्रा के दौरान यह तीसरा बैग होगा। पीठ पर पसीने से बैग खराब हो जाता है। अभी वाला बैग फट गया है।” प्रेमसागर फ्र्यूगल ट्रेवल की ओर उन्मुख हैं उत्तरोत्तर! उन्हें यह यकीन हो गया है कि लोग सहायक हो ही जा रहे हैं यात्रा के दौरान और बहुत ज्यादा संग्रह कर चलने की जरूरत नहीं है।
प्रेमसागर के पास प्रयागराज (संगम) का जल है। उन्होने अमरकण्टक से नर्मदा के उद्गम स्थल से भी जल लिया है। ॐकारेश्वर में नर्मदा की एक धारा कावेरी हैं। उनका जल भी उनके संग्रह में है। यह सभी जल मिला कर चढ़ाया जायेगा आगे के ज्योतिर्लिंगों पर। और रास्ते में बड़ी महत्व वाली नदियों – गोदावरी, कावेरी आदि का जल भी संग्रह में जुड़ेगा। … पता नहीं जल के इस मिलान को वे किस भाव से लेते हैं। पर भारतवर्ष के एक होने का वह जल बड़ा प्रमाण होगा!
रास्ते में एक जगह पथरीली भूमि को तोड़ कर गिट्टी बनाने का उपक्रम हो रहा था। प्रेमसागर ने उसका चित्र भी भेजा। “इलाके में कहीं कहीं छोटे पहाड़ जैसे भी हैं भईया”।
“आज मैंने एक अच्छा काम किया। एक सांप का बच्चा, करीब डेढ़ बित्ते का सड़क पर था। चिकनी सड़क पर चल नहीं पा रहा था। भूरे रंग का था। बहुत पतला। शायद हाल ही में जन्म हुआ होगा उसका। मैंने अपने पास कांवर में खोंसे मोर पंख से उसे सरका सरका कर किनारे के खेत में छोड़ दिया। अब उसकी जान बच जायेगी। वर्ना वह किसी वाहन के नीचे आ कर मर ही जाता। था वह कोई विष वाली प्रजाति का। मोर पंख से छूने पर अपना फन ऊपर करता था। करीब एक इंच उठा ले रहा था। उसे बचा कर मुझे आत्मिक संतोष हुआ भईया।” प्रेमसागर ने दिन की यात्रा का विवरण देते बताया।

शाम के समय जब मैंने पांच बजे उनसे बात की तो वे राणपुर से तीन किलोमीटर आगे निकल आये थे। अभी तक वे बीस किलोमीटर चल चुके थे और रुकने के लिये कोई मुकम्मल जगह नहीं मिल पायी थी। “अभी एक देसराज भईया के पास बैठा हूं। इन्होने चाय भी पिलाई है और बताया है कि आगे पांच सौ मीटर पर रहने का इंतजाम हो जायेगा।” प्रेमसागर ने देसराज जी का चित्र भी भेजा। उसके बाद जब वे उस स्थान पर – रामदेव बाबा के बन रहे मंदिर पर पंहुचे तो उन्हें अलग ही अनुभव हुआ!

रामदेव पीर बाबा का मंदिर पहले वहां हुआ करता था। सड़क के चौड़ा करने में वह मंदिर/आश्रम तोड़ना पड़ा। अब सड़क का ही ठेकेदार मंदिर का बगल में निर्माण करवा रहा है। आश्रम के संत/पुजारी रामगिरि हैं। अभी टीन के शेड़ के नीचे वे रह रहे हैं। उन्होने और उनकी पत्नीजी ने प्रेमसागर का स्वागत किया। पत्नीजी ने कहा कि कोई भी अतिथि का वहां स्वागत है। उनके पास जो भी रूखा-सूखा होगा, वह अतिथि के साथ बांट कर प्रसाद के रूप में लिया जायेगा। उसी टिन के शेड के नीचे रात्रि विश्राम किया प्रेमसागर ने।

रामगिरि बाबा से देर रात तक चर्चा हुई। इग्यारह बज गये। प्रेमसागर को यह सत्संग अनूठा और अच्छा लगा। “सबसे अलग तरह का अनुभव था भईया!” रामगिरि बाबा के पास दो घोड़े हैं। रामदेव बाबा के सभी स्थानों, मंदिरों में घोड़े पाले जाते हैं। उसका कारण है कि रामदेव पीर बाबा घोड़े पर ही सवारी किया करते थे। बाबा रामदेव के सभी चित्र घोड़े के साथ ही हैं। जब भी विशेष अवसर होता है तब घोड़े को अच्छे से सजाया जाता है – यह प्रेमसागर ने मुझे बताया।

आज दिन भर में नक्शे के हिसाब से प्रेमसागर बीस किलोमीटर चले। स्वास्थ्य सुधार, ज्यादा दूर चलने पर अंकुश लगाने और मौसम की ऊष्णता कम होने का फायदा यह है कि प्रेमसागर अब यात्रा विवरण बेहतर बता पा रहे हैं। अन्यथा वे थक कर चूर होते थे और मात्र चित्र भर भेज पाते थे। बीच में तो चित्र लेना भी लगभग नहीं के बराबर हो रहा था। उनके यात्रा विवरण लिखना कठिन हो रहा था और मैं इस ट्रेवल-ब्लॉग को त्यागने की सोचने लगा था। अभी लगता है प्रेमसागर के साथ कुछ और यात्रा की जा सकती है; बावजूद इसके कि पढ़ने वाले ऊब से रहे होंगे प्रेमसागर-सेण्ट्रिक-ब्लॉग देख कर।
आज इतना ही।
हर हर महादेव।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
I have just read 7 posts of this travelogue. Splendid.
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जय हो, जय हो 🙏🏻
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🙏🏻
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अंजनी कुमार सिंह, ट्विटर पर –
प्रेम सागर जी की कांवर यात्रा वृतांत आपने फिर शुरू कर नेक काम किया है । बीच मे बन्द हो गया था तो उनके अपडेट नही आ रहे थे । हम सब पढ़ते है इसलिए उत्सुकता बनी रहती है ।आगे ऐसे ही चलते रहे महादेव की कृपा से ।
#हर_हर_महादेव 🙏🚩
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राणपुर सही नाम , झवेरचन्द मेघाणी की जन्मभूमि।
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मैं इसे सही कर देता हूं. धन्यवाद जी.
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आपकी जानकारी के तौर पे , अंगुली निर्देश नहीं था।
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अच्छा लगता है प्रेमसागरजी पहले से ज्यादा खुले हैं और ये आपके नए पोस्ट का हम हररोज बेसब्री से इंतेजार करते है, कृपा बनाये रखें ताकि मेरे जैसे लोगों को लिए ये बहुत अप्रतिम अनुभव है।
नागफनी को सौराष्ट्र में थोर कहते है, कम पानी के इलाकों में बबूल की प्रजाति(विदेशी प्रजाति-कम ऊंचाई व नीचे से फैलने वाली हरे कंटक के साथ) ज़्यादातर पनपती है। वनीकरण के योजनाओं में सबसे ज्यादा 70 के दशक में बहुत बोया गया था।
नागफनी जैसे ही थोर में एक तीखे लंबे कंटक व लाल मधुर फल वाली प्रजाति भी मिलती है ये दोनों सौराष्ट्र में खेतों की पशुओं से रक्षा के लिए बाड़ की तरह आमतौर पर बोया जाता है।
नहरे पिछले दशक से आयी । समृद्धि गुजरात की उससे पुरानी है व उसकी ज़्यादातर वजह खेती में पहेले से प्रयोगशीलता है, व्यापार में तो अनुवांशिक प्रवीणता सिद्ध है।
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धन्यवाद बंधुवर! आपने अच्छा बताया. 🙏🏻
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अरुण कुमार तिवारी, ट्विटर पर –
ना जी ना हम लोग ऊबे नही है बल्कि इन्तेजार रहता है पूर्ण विवरण पढ़ने का।
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ऊब नहीं रहे -आनंदित हो रहे हैं
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सुधीर खत्री फेसबुक पेज पर –
नहीं सर, आपके लेख के मेरे जैसे अनेक पाठक है हम लोग भी घर बैठे महादेव यात्रा का पुण्य प्राप्त कर रहे हैं,
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दिनेश कुमार शुक्ल जी, फेसबुक पेज पर –
यह यात्रा वृत्तांत अद्भुत चल रहा है। भाई ज्ञानदत्त जी आप इसे बंद करने की सोचिए भी नहीं।हर हर महादेव।
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काका ट्विटर पर –
अरे ब्लॉग बहुत ही उम्दा है ज्ञान दादा।
कितने अच्छे तरीके से लिख रहे हो आप। मैने तो इतना अच्छा वर्णन पहले कभी नही देखा। Pls Carry On.
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Sir, we look forward to your post on Sri Premsagar Jee with much eagerness, anticipation and excitement. There is no question of monotony even remotely creeping in. Please continue with it till he completes the Yatra.
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धन्यवाद मनीष जी! मैं पूरा प्रयास करूंगा…
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Sir Premsagar ji ka utsah vardhan karne m apka bhi bada yogdan h avam hum logo tak unke yatra anubhav share karke hum log bhi nahi jankari pa rahe h
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धन्यवाद शर्मा जी निरंतर प्रेम सागर में आपकी जिज्ञासा बने रहने के लिए!
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