30 नवम्बर रात्रि –
सवेरे राणपुर के आगे रामदेव पीर बाबा के बन रहे मंदिर के टिन शेड में रात गुजारने के बाद प्रेमसागर रवाना हुये। उनका इरादा पालीयाड के आस पास किसी स्थान पर आज रात गुजारने का स्थान तलाशना था। पर वैसा कोई स्थान उन्हें वहां मिला नहीं। उन्हे लगभग दस किमी और चलना पड़ा। अंतत: एक और रामदेव पीर बाबा के मंदिर में उन्हे स्थान मिला। यह स्थान सरवा गांव में है। नक्शे में यह गांव एक नीचाई की जमीन पर दिखता है। बारिश के मौसम में इसके उत्तर में जल का बड़ा तालाब या मार्श-लैण्ड बन जाता होगा। फिलहाल तो प्रेमसागर को वहां बबूल के झाड़ दिखे।

पालियाड के पहले प्रेमसागार का जूता जवाब दे गया। मध्य प्रदेश में ॐकारेश्वर के बाद उन्होने यह जूता खरीदा था। उसने यहां गुजरात में सौराष्ट में प्रवेश तक साथ निभाया। “फट गया था बेचारा। कितना चला मेरे साथ।” प्रेमसागर ने उसे श्रद्धांजलि दी। उसके बाद करीब बारह किलोमीटर वे पुराने अंदाज में नंगे पांव चले। रास्ते में कोई बड़ी जगह नहीं पड़ी जहां नया जूता लिया जा सकता।


पालियाड के चौराहे का चित्र भेजा है प्रेमसागर ने। यह स्थान बीच में पड़ा था। चौराहे पर गदा और धनुष की मूर्ति आकर्षक है। प्रेमसागर ने बताया कि इलाके में हिंदू, जैन के अलावा मुस्लिम जनसंख्या भी दिखती है पर कहीं कोई बहुत अलगाव या वैमनस्य जैसा नहीं नजर आता। पालियाड बड़ा कस्बा है। यहां आसपास रात्रि विश्राम की जगह न मिल पाना कुछ अजीब लगता है। यह भी सम्भव है कि प्रेमसागर थोड़ा ठीक होने पर थोड़ा और चल लेने का एडवेंचर करने लगे हों। अगर वैसा है तो वह निश्चय ही सही नहीं है। उन्हे मान कर चलना चाहिये कि वे समय के साथ प्रतिस्पर्द्धा में नहीं हैं। उन्हे अपने दम खम को बचाये रखने की कवायद करनी चाहिये।
सरवा में रामदेव पीर बाबा के आज के मुकाम पर पंहुचने के पहले बुरा हुआ उनके साथ। रास्ता खराब था। सड़क पर गिट्टी उधड़ी हुई थी और बबूल के कांटे भी थे। एक जगह बबूल के कांटे चुभ गये पैर में। मुकाम लगभग सौ मीटर दूर था। पर चला नहीं जा रहा था। अंतत: उन्हें साथ चल रहे लोगों ने वाहन पर पीर बाबा के स्थान पर पंहुचाया।
प्रेमसागर का जूता चला गया। उनका बैग भी जवाब दे रहा है। उनको नये जूते और बैग की जरूरत है। लोग उनके यूपीआई पते पर उन्हे थोड़ी-बहुत रकम दे सकते हैं उन्हे; मौके पर काम आयेगी।


ये साथ चल रहे लोगों की भी रोचक दास्तान है जिन्होने अंतिम सौ मीटर में प्रेमसागर को वाहन पर बिठा कर रामदेव बाबा के मंदिर पंहुचाया। एक पचास लोगों का जत्था ग्वालियर से गोण्डल की पदयात्रा कर रहा है। उनके साथ कुछ वाहन भी हैं। महिलायें हैं जो वाहनो में चल रही हैं और पुरुष पैदल। वे लोग स्वामीनारायण स्वामी के मंदिर जा रहे हैं। इस मास की पंचमी को वहां स्वामीनारायण स्वामी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। वे लोग हर वर्ष यह पदयात्रा करते हैं। करीब बारह सौ किलोमीटर की सामुहिक उत्सव-पदयात्रा! भारत वर्ष में धर्म आर्धारित पद यात्रा के भी कितने स्वरूप हैं! कितने प्रकार! और वे यात्रायें भी कितनी लम्बी होती हैं!

उनके बैनर से स्पष्ट होता है कि उनके सूत्र अमेरिका में प्रवास कर रहे एन आर आई भारतीयों से भी हैं।
गोण्डल के ये यात्री प्रेमसागर को रास्ते में मिल गये। वे लोग जसदण तक प्रेमसागार के साथ साथ चलेंगे। उसके बाद प्रेमसागर सोमनाथ की ओर निकलेंगे और वे गोण्डल की ओर। चित्रों से लगता है कि वे सम्पन्न व्यवसायी हैं। उनके साथ कुछ किसान भी हैं। उनके बैनर से स्पष्ट होता है कि उनके सूत्र अमेरिका में प्रवास कर रहे एन आर आई भारतीयों से भी हैं। शायद कुछ एन आर आई भी इस यात्रा में शामिल हों। रामदेव पीर बाबा के सरवा वाले स्थान पर रात के सामुहिक भोजन में उन्होने प्रेमसागर को भी शामिल कर लिया है। वे लोग प्रेमसागर की एकाकी और दुरूह यात्रा पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे।

दिन में मैंने सौराष्ट्र के बारे में जानकारी के लिये अपने ब्लॉग मित्र संजय बेंगानी जी के माध्यम से एक सज्जन रवि पटेल जी से बात की। आगे भी जानकारी लेने के लिये रवि जी का फोन नम्बर ले लिया है। सोमनाथ तक के क्षेत्र के बारे में वे इनपुट्स दे सकेंगे। आगे की यात्रा के बारे में भी और लोगों के सम्पर्कसूत्र बता सकेंगे, जो आगे के इलाके की जानकारी रखते हों।

रवि पटेल जी ने संघ के प्रचारक के रूप में इस इलाके में काफी कार्य किया है। वे सौराष्ट्र के इस भाग के बारे में बताते हैं कि दो महान विभूतियां – द्वापर के श्री कृष्ण और वर्तमान युग के स्वामीनारायण पैदा उत्तर प्रदेश में हुये पर उनकी कर्म भूमि सौराष्ट्र ही रही। दोनो को प्रतिष्ठा और देवत्व यहां की धरती पर मिला। कृष्ण के बारे में तो सब जानते हैं कि उनका जन्म मथुरा में हुआ। स्वामीनारायण जी के बारे में मैं बता दूं कि उनका जन्म छपिया में हुआ था जो गोण्डा के समीप उत्तर में एक रेलवे स्टेशन भी है। मुझे याद है कि हम उस खण्ड के वार्षिक निरीक्षण पर निकले थे तो “स्वामीनारायण छपिया” रेलवे स्टेशन पर सम्प्रदाय के प्रमुख जी महाप्रबंधक महोदय से मुलाकात करने हमारी स्पेशल रेलगाड़ी पर भी आये थे और उन्होने हमारा स्वागत भी किया था। वे वास्तव में सरल संत लग रहे थे। शांत और उद्वेग रहित! … प्रेमसागर को इस पदयात्री जत्थे का साथ मिला है, यह मुझे अभूतपूर्व लग रहा है!
आज की इस पोस्ट को गिन कर अब तक प्रेमसागर की कांवर यात्रा पर 75 पोस्टें हो गयी हैं। जितनी मेहनत, जितना संकल्प, जितना जुनून प्रेमसागर का होगा, उसका चार आना भर मेरा भी होगा। मेरी पत्नीजी और मेरी बिटिया इस जुनून पर झुंझलाते भी हैं और जिज्ञासा भी रखते हैं कि प्रेमसागर का क्या हुआ। … यह बड़ा खट्टा-मीठा ब्लॉगानुभव है! 🙂
आज अपने नियत कोटा से ज्यादा ही चले हैं प्रेमसागर। दूसरे, अंतिम छोर पर उनके पैर में कांटा भी चुभा है जो तकलीफ दे रहा है। निकालने की कोशिश में कुछ निकला और कुछ बाकी है। “पैर धो कर इत्मीनान से निकालूंगा भईया।” मेरी पत्नी जी का विचार है कि निकाल जरूर लेना चाहिये। न निकल पाये तो डाक्टर को दिखाना चाहिये। अन्यथा गड़ा हुआ कांटा पक कर बहुत पीड़ा दायक हो जायेगा और यात्रा में बड़ा अवरोधक होगा।
प्रेमसागर आज थके ज्यादा हैं। जल्दी जल्दी में मुझे दिन भर का विवरण दे कर सोने जाने की बात करने लगे। आज इतना ही।
हर हर महादेव।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
Sudhir Khatri फेसबुक पेज पर –
बाबा रामदेव राजस्थान के संत है जिनके मेला में सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा भक्त सावन,भादों मास में करते हैं।
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Girish Joshi फेसबुक पेज पर –
रामदेव पीर जिन्हें राजस्थान में बाबा ही कहते हैं, का जन्म स्थान मेरे गांव से 15 किमी पर ही है, उनके भक्त राजस्थान गुजरात मध्यप्रदेश आदि में बहुतायत से पाये जाते हैं, वे श्री कृष्ण का ही अवतार माने जाते हैं, मक्का से आये हुए पीरों ने उनका अध्यात्मिक सामर्थ्य देखने के लिए उन्हें वही कटोरा मक्का से पोकरण लाने को कहा जिसमें वो भोजन करते थे, रामदेव जी ने वंही रामदेवरा पोकरण में बैठे बैठे मक्का से कटोरा मंगा कर पीरों को दिया तब से पीरों ने उनको रामदेव पीर की पदवी दी. हमारे यंहा प्यार से उनका जयकारा लगता हैं ” जय बाबे री”
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Time और Space से संबंधित चमत्कार हम तीन डायमेंशन के प्राणियों को हमेशा चमत्कार लगते रहे हैं. अगर चार डायमेंशन के प्राणी की कल्पना की जाए तो यह सब सहज लगेगा. ये चमत्कार शायद उसी के एक हिस्सा हों. शायद.
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अश्विन पंड्या फेसबुक पेज पर –
पालीयादमें तो बहुत बड़ा आश्रम है जहाॅ रोजाना सैंकड़ो लोग फ्री खाना खाते है और रुकते है।
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लगता है प्रेम सागर जी ने ठीक से पता नहीं किया होगा… 🤔
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