5 दिसम्बर 21, रात्रि –
खराब अनुभव था आज का। प्रेमसागर घोघावदर से समय से निकल लिये थे। सवेरे सात बजे मुझसे बात किया तो सड़क किनारे चाय वाले की टेबल के पास बैठे थे। दिन की पहली चाय होगी। यह भी सम्भव है दूसरी हो। सवेरे के दो ढाई घण्टे में सिगरेट पीने वाला कितनी सिगरेट पीता है, या सुरती खाने वाला कितनी सुरती ठोंकता है? उतनी चाय प्रेमसागर की होती होगी। महादेव का भगत चाय के अलावा और कोई नशा न करे; यह देख कर महादेव खूब कोसते (?) होंगे। नाम खराब करता है यह भगत शैव सम्प्रदाय का।
शंकर जी खुद नशा नहीं करते थे, यह प्रेमसागर की थ्योरी है जो रामदेव पीर बाबा के पहले आश्रम में रामगिरी बाबा को सुना रहे थे। कोई शिवपुराण का उद्धरण। मुझे भी बताया उन्होने। पर पुराण-उराण में मेरी अंधश्रद्धा नहीं है। मुझे लगता है उसमें जनता को पटाने-भरमाने के लिये ब्राह्मणों ने जम कर कहानियाँ बना बना कर ठेल रखी हैं। उसमें से तत्वज्ञान का नवनीत निकालने के लिये उतनी मशक्कत करनी पड़ती है जितना सर्दी के मौसम में मथनी ले कर महिलायें दूध के साथ करती हैं। लेकिन मैं प्रेमसागर का पक्ष लेते हुये यह मान लेता हूं कि आम धारणा के विपरीत शंकर भगवान नशा नहीं करते होंगे। हां, सती की देह ले कर वे पूरे देश भर में घूमे तो असम में, कामाख्या में, चाय जरूर पीना शुरू कर दिये होंगे। वही अनुशासन प्रेमसागर पालन कर रहे हैं।

सड़क किनारे की चाय की टेबल का एक चित्र भेजा। वह फोटो मुझे बढ़िया लगा। सवेरे की सूरज की रोशनी का पूरा लाभ लेते हुये खींचा होता तो और शानदार होता। गुज्जू रोडसाइड ऑन्त्रेपिन्योरशिप का बढ़िया आईकॉन है यह! और चाय की दुकान का सभी जरूरी सामान है टेबल पर या टेबल के नीचे। एक फोटो उस चायवाले की भी आ जाती अगर उलटी ओर से सड़क की तरफ से चित्र खींचे होते प्रेमसागर!

प्रेमसागर को गोण्डल पंहुचने में ज्यादा समय नहीं लगा होगा। वहां के पांजरापोल (गौशाला) के चित्र का टाइम स्टैम्प 08:34 बजे का है। गोण्डल में घुसते समय उन्होने भादर नदी का पुल पार किया। यूं लगता है पूरे इलाके, राजकोट-बोटाड में भादर ही नदी है। वही घूम फिर कर जहां तहां मिलती दिखती है। नदी का पाट यहां काफी है और उसके हिसाब से पानी कम। भादर पर दो जलाशय भी बने हुये हैं। उनमें जल संचय किया जाता होगा और सिंचाई के काम आता होगा। सौराष्ट्र की गंगा लगती है भादर नदी। ॐ नमो भादरायै नम:!

नदियों में जल है और जल में देसी-प्रवासी पक्षी भी खूब दिखते हैं। हंस, जिन्हें प्रेमसागर अपने इलाके में गरुण जी कहते हैं भी दिखे। पक्षी यहां – लोगों की सहिष्णु प्रकृति के कारण निर्भय लगते हैं। प्रेमसागर ने बताया कि एक तोता तो उनके कंधे पर बड़ी सहजता से आ कर बैठ गया था। यह प्रेमसागर की प्रकृति पहचान कर हुआ या सामान्य मानव स्वभाव पर पक्षियों की धारणा – कहा नहीं जा सकता। विचित्र तो लगा कि कोई पक्षी अपने से कंधे पर आ कर बैठ जाये।

भादर नदी के पुल पर वे चढ़ ही रहे थे कि दूसरी ओर से आता एक आदमी उनसे बोला कि उसे दस रुपये चाहियें। उसने कुछ खाया नहीं है और बहुत तेज भूख लगी है। उसे दस रुपये देते समय प्रेमसागर ने पूछा कि और चाहिये तो बोलो। पर आदमी दस रुपये से ही संतुष्ट था। कहा कि उतने से ही उसका काम चल जायेगा। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसी घटनाओं को मैं सामान्य बुद्धि से लूं और उनका विश्लेषण करूं या उन्हें धर्म और महादेव से जोड़ूं। इस पूरी यात्रा को मैं बहुत भक्ति भाव से या मिराकेल की दृष्टि से नहीं ले रहा हूं। पर कई घटनायें सामान्य अनास्था से नहीं समझी जा सकतीं; वैसा भी लगता है। यह भी लगता है कि त्वरित विचार बना लेना या व्यक्त कर देना अधिक सही नहीं होगा। यात्रा की समप्ति – तार्किक समाप्ति पर आकस्मिक पूरा होने पर – समग्रता में जो विचार बनेंगे, वे ज्यादा ठोस होंगे। बीच बीच में निष्कर्ष अधपके हो सकते हैं। बीच में जो जैसे घटित हो रहा है उसे वैसे ही इस ट्रेवल-ब्लॉग में रख देना ज्यादा सही होगा।
जल की बात की जाये। सौराष्ट्र की जो भी नदियां हैं उनके जल का जितना सम्भव हुआ, दोहन किया गया है समाज और खेती तो जीवन देने में। सौराष्ट्र में नर्मदा माई का जल भी आया है, नहरों के माध्यम से। जल से समृद्धि आयी है या समृद्धि से जल को खींच लाने की जुगत बनी है यह कैच-22 टाइप सवाल हो सकता है। पर जल का किफायती प्रयोग, जल की इज्जत और समृद्धि साथ साथ हैं – इसको नकारा नहीं जा सकता।
गोण्डल बड़ी जगह है। उसे पार करने में प्रेमसागर को घण्टा भर लगा होगा। पर केवल भादर या पिंजरापोल के चित्र के अलावा कोई चित्र प्रेमसागर ने नहीं लिये। मैंने उनसे पूछा कि वहां रुके नहीं क्या चाय के लिये?
“नहीं भईया। काहे कि वह जगह गंदी थी। सड़क किनारे कचरा फेंका हुआ था। उसी में दो तीन मरे कुत्ते की लाशें भी फेंकी हुई थीं। कचरे के ढेर पर लोग अपना कचरा भी फेंकते हुये दिखे। जो जगह साफ न हो, वहां बैठने का मन नहीं हुआ।” – प्रेमसागर ने बताया।
गोण्डल रियासत थी। बड़ी रियासत। नगरपालिका है यहां पर और जैसा प्रेमसागर ने बताया कि अक्षम नगरपालिका होगी। गुजरात के नरेंद्रभाई मोदी जो पूरे भारत में स्वच्छ भारत का संदेश पंहुचा रहे हैं; उन्हीं के गोण्डल में सड़क किनारे मरे कुत्ते और कचरा फैंका है। प्रेमसागर से यह सुन कर मन खराब हुआ। पर प्रेमसागर ने यह जरूर कहा कि उन्होने गोण्डल के अलावा किसी जगह पर ऐसी गंदगी नहीं दिखी। पूरे गोण्डल शहर में, जहां से प्रेमसागर गुजरे, सफाई का स्तर अच्छा नहीं था।

शाम के समय वीरपुर पंहुचने के पहले ही प्रेमसागर रात गुजारने का ठिकाना तलाशने लगे थे। पर कहीं कोई मंदिर-धर्मशाला में स्थान नहीं मिला। जलाराम बापा का मंदिर था, पर वहां भी रहने की व्यवस्था नहीं हुई। अंतत: एक गेस्ट हाउस में 400 रुपये में कमरा मिला। बाहर वे भोजन कर आये और गेस्ट हाउस में दूध मंगाया। “कभी कभी खर्चा भी करना चाहिये, भईया।”; प्रेमसागर ने कहा। पर उनके कहे से यह जरूर लगता था कि इस तरह खर्च कर यात्रा करने को रोज रोज सम्भाल पाना कठिन होगा।
“पोरबंदर से दिलीप जी का फोन था। वे ट्विटर के जरीये जानते हैं। उन्होने पैसे भेजने की बात कही। मैंने मना किया। मेन बात है भईया कि पैसा मांगने से अपने को भिक्षुक के स्तर पर उतारना पड़ता है। वह ठीक नहीं लगता।” – प्रेमसागर ने अपना पक्ष रखा। वे कांवर यात्रा में सहायता स्वीकार कर रहे हैं। सहर्ष। कृतज्ञ भी होंगे लोगों के। पर मांगने में जो अपने को दयनीय बनाना होता है, वह वे नहीं चाहते। कुछ लोगों को यह अटपटा लग सकता है या इसे हिपोक्रसी या पाखण्ड मानते हों; पर मुझे यह सही, सहज और स्वीकार्य व्यवहार लगता है।
6 दिसम्बर 21, रात्रि –

सवेरे समय पर – पांच बजे निकल लिये प्रेमसागर। जेतपुर 13-14 किमी दूर था और जेतलसर 20 किलोमीटर के आसपास। मैंने उन्हें सुझाया कि जेतपुर के बाद से ही वे देखना शुरू कर दें कि कौन सी जगह पर रुका जा सकता है। रास्ते के सभी मंदिर और धर्मशालायें टटोलना प्ररम्भ कर दें। जेतलसर तक तो कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जायेगा। जेतलसर बड़ी जगह है। रेलवे का जन्क्शन भी है। शायद अश्विनी पण्ड्या जी, जो इस क्षेत्र के रेल मण्डल परिचालन प्रबंधक रह चुके हैं, वे भी सहायता कर सकें।
और अश्विनी जी सहायता करने में समर्थ निकले। उन्होने जेतलसर के आगे एक आश्रम में रहने और भोजन का इन्तजाम कर दिया। जेतलसर के लिये प्रेमसागार को बीस-इक्कीस किलोमीटर चलना था; पर आगे आश्रम तक जाने के लिये उन्हें 28 किलोमीटर चलना पड़ा। साढ़े पांच बजे शाम के समय वे आश्रम पर पंहुचे।
यह आश्रम कोई गंगा अमर आश्रम, सतगुरु धाम है। चित्रों में परिसर बहुत बड़ा लगता है। सीताराम बापू की स्मृति में बना भवन है। प्रेमसागर के एक चित्र में वे आश्रम मंदिर के सामने कुर्सी पर पालथी मार कर बैठे हैं।
[गंगामाँ अमर आश्रम के चित्र]
रास्ते में चार लेन की सड़क थी और बीच में डिवाइडर पर कनेर और अलमाण्डा के फूलोंं के झाड़िया भी लगी थीं। पूरे भारत वर्ष की तरह यहां भी सड़क के चौड़ा किये जाने में पेड़ कटे होंगे और जो लगाये गये हैं वे कनेर और अलमाण्डा के बौने झाड़ ही हैं। गिनती में वृक्षारोपण पहले जितना हो गया है पर बड़े पेड़ गायब हो गये हैं।

आज रास्ते में प्रेमसागर को पांच छ लोगों का जत्था मिला जो किसी माता जी के दर्शन के लिये पदयात्रा कर रहा था। अकेले प्रेमसागार को पा कर वे चंदे के लिये ज्यादा ही नीछने लगे। प्रेमसागर ने उन्हे 50 रुपये दिये पर पचास रुपये पा कर वे और भी देने की जिद करने लगे। “भईया, मुझे जोर दे कर कहना पड़ा कि मांगने के लिये पीछे पड़ गये हैं तब आप तीर्थ यात्री कम हैं, भिखमंगे ज्यादा हैं।”उसके बाद प्रेमसागर ने मौन धारण कर लिया और मुश्किल से उन तंग करने वाले धर्म ध्वजा धारियों से पीछा छुड़ाया।
गोण्डल की गंदगी और इन तीर्थ पदयात्रियों की तंग करने की प्रवृत्ति ने सौराष्ट्र में जो सुखद अनुभवों का गुलदस्ता बन रहा था और जिसे ले कर प्रेमसागर खूब मगन थे, उसमें से कुछ पुष्प नोच लिये।
आगे लगभग 100 किलोमीटर और बचे हैं वेरावल/सोमनाथ पंहुचने में। देखें आगे क्या अनुभव होते हैं। अभी तक ‘मोटामोटी’ सब ठीक ठाक चलता आया है। महादेव चाहेंगे तो आगे भी होगा। बीच बीच में कभी कभी महादेव लोड टेस्ट करेंगे प्रेमसागर की आस्था और संकल्प दृढ़ता का। पर यहां इस भाग में इतने शुभचिंतक हो गये हैं प्रेमसागर के कि उनका काम चलता जायेगा।
हर हर महादेव। जय सोमनाथ।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
बढ़िया है ! यात्रा के अनुभव शानदार हैं !
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शेखर व्यास फेसबुक पर
पाने वाला जलाराम ,देने वाला जलाराम 🙏🏻
जय जय श्री जलाराम , वीरपुर में दर्शन भी किए या नहीं संत श्री जलाराम मंदिर में जहां श्री हनुमान जी का झोली झंडा रखा हुआ है ।
श्री सीताराम बापू के आश्रम की श्रृंखला आगे तक विस्तारित है , श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से मात्र 250 मीटर दूर समुद्र तट पर भी ।अपनी रामेश्वरम यात्रा में मै वहां ठहरा था लगभग 22 वर्ष हुए । वहां जाने पर उस का लाभ ले सकते हैं ,पर पहले पुराणोक्त प्रथम ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ के दर्शन लाभ लें लें 🙏🏻
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तीर्थ यात्रा तभी सभी संपूर्ण मानी जाती है जब रास्ते में कुछ तीखा और कड़वा भी मिले।
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9वीं में थे जब परिवार सहित गुजरात यात्रा पर गए थे। तब वीरपुर जलाराम बापा के आश्रम में उबला हुआ भोजन प्रसाद पाया था। जगह का नाम भूल गया था लेकिन जलाराम बापा याद थे।
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जलाराम बापा का अच्छा प्रभाव है गुजरात और मालवा में। रतलाम में तो मैंने कई दुकानें जला राम के नाम और चित्रों के साथ पाई. बेचारे प्रेम सागर को वहां जगह नहीं मिल पाई यह जमा नहीं.
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तीर्थ यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब रास्ते में कुछ तीखा कड़वा भी मिले।
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जी. और लेखन भी वही जो उसे बिना लाग लपेट रखे.. 😊
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