12 दिसम्बर रात्रि –
जब शुरू किया था तो अपेक्षा नहीं थी कि इतनी पोस्टें हो जायेंगी इस कांवरिया पर। लेकिन अभी तक न प्रेमसागर आउट हुये हैं न मैं। फर्क इतना पड़ा है कि मेरे आसपास इतना कुछ है जिसपर मानसिक हलचल होती है। अब उत्तर प्रदेश चुनाव का हल्ला शुरू हो रहा है। गांव की राजनीति अलग है। गौ गंगा गौरीशंकर पर दो तीन अधलिखी पोस्टें ड्राफ्ट में पड़ी हैं। पर सारा लेखन समय प्रेमसागर के खाते जा रहा है। यह भी नहीं है कि प्रेमसागर विषय की विविधता दे रहे हों। वे अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं; पर यात्रा में देखने के नजरिये में वैविध्य लाना सरल काम नहीं है।
मैं इंतजार करता हूं कि प्रेमसागर उदासीनता दिखायें बताने में तो मैं लेखन की आवृति कम करूं। लेकिन वह होता नहीं। सोमनाथ के आसपास दर्शन की साठ फोटो मेरे पास भेज दी हैं। उनमें रिपिटीशन भी है। उन चित्रों में उपयुक्त का चयन करना, उन्हें क्रॉप और एडिट करना और उनपर प्रेमसागर का वाटरमार्क चस्पां करना भी समय खाता है। मैं कोशिश करता हूं कि बिना चित्रों के काम चलाया जाये, पर उससे मेरा लेखन बढ़ता है। दूसरे मेरी भाषा में लालिल्य की तंगी तो है ही। चित्र और लेखन की जुगलबंदी का अनुपात बदलना भी कठिन है। मैं पॉडकास्टिंग का सहारा ले सकता था, पर प्रेमसागर की अटक कर धीरे बोलने की आदत श्रोता को बांध नहीं सकती।

अब मुझे आसपास लोग मिलते हैं – कई ऐसे लोग भी जिन्हें मैं सोच नहीं सकता कि वे प्रेमसागर के बारे में जानते होंगे। पर वे भी मुझसे प्रेमसागर के बारे में पूछते हैं। एक गांव के व्यक्ति ने जब पूछा कि “इंही मोबईलिया पर ही लिखथ्यअ का प्रेमसंकर (नाम गलत बोले) के बारे में (इसी मोबाइल पर ही लिखते हैं क्या प्रेमसंकर के बारे में)?” तो मुझे आश्चर्य हुआ। प्रेमसागर को लोग जानने लगे हैं और उनके साथ मुझे जोड़ कर देखने लगे हैं। यहां गांवदेहात में भी मिलने लगे हैं ऐसे लोग। … प्रेमसागर फेमस हो जायेंगे। आजकल कोने अंतरे के लोगों को खोज खोज कर प्रधानमंत्री पद्मश्री बना रहे हैं। प्रेमसागर पद्म पुरस्कार पा जायेंगे और तुम लिखते ही रह जाओगे जीडी! 😆
खैर; आज के ट्रेवल-ब्लॉग पर आया जाये। प्रेमसागर सवेरे चार उठते ही टेम्पो पकड़ कर सोमनाथ से गड़ू आ गये। एक ही दिन रुके सोमनाथ में।
लगता है सोमनाथ में किसी स्थानीय ने प्रेमसागर को कोई भाव दिया नहीं। कांवर देख कर भी किसी ने कुछ पूछा तक नहीं। सोमनाथ के ट्रस्टी साहेब, जिन्होने प्रेमसागर के लिये रेस्ट हाउस करवा दिया था, वे भी शायद सोमनाथ में नहीं थे। उनसे प्रेम सागर की फोन पर ही बात हुई। प्रेमसागर बेचारे वेरावल से सोमनाथ के बीच ठीक से रास्ता न जानने के कारण अंधेरे और जंगल में भटभटाये भी। एक कांवर पदयात्री पंद्रह-बीस किलो वजन लिये ढाई हजार किलोमीटर चल कर अमरकण्टक से जल उठाये चला आ रहा हो और गंतव्य पर पंहुचने पर कोई देख कर प्रतिक्रिया भी न दे, यह अजीब लगता है। पर यही था।
शंकर भगवान के तौर तरीके भी अजीब हैं। किसी किसी जगह – शहरों और गांवों में – प्रेमसागर को 25-50 लोग साथ साथ लेने और छोड़ने आये और यहां सोमनाथ में जो बाबा की खास नगरी है; वहां कठिन तप कर पंहुचे शिव भगत को कोई लोकल बोलने बतियाने या एक जून चाय – खाना पूछने वाला भी नहीं था। वह तो भला हो दिलीप थानकी जी का जो पोरबंदर से प्रेमसागर के लिये आये और उनको आसपास के दर्शनीय स्थान दिखाये, भोजन आदि कराया; वर्ना सोमनाथ वालों ने तो घोर उपेक्षा ही की।… बाबा महादेव; मैं तो आपके यहां (सोमनाथ में) जाने के पहले खूब सोचूंगा, तभी तय करूंगा; अगर कभी जाने की बात भी हुई तो। या फिर जाऊंगा तो बढ़िया सी कार में एक लाख रुपया जेब में रख कर ही। तभी आपके वहां लोग नोटिस करेंगे।
प्रेमसागर को तनिक भी खराब नहीं लगा। उन्होने मुझे सोमनाथ के अनुभव के बारे में खुद कुछ कहा भी नहीं। पर मुझे अच्छा नहीं लगा। लिखना मेरे हाथ है सो मैंने लिख दिया। प्रेमसागर ऐसा खुद कभी कहते या लिखते ही नहीं।
मेरी पत्नीजी तो मेरी यह बात सुन कर और भी भुनभुना रही हैं। उन्होने कहा – “मंदिरों के आसपास के लोग; ये पण्डे-पुजारी भक्त नहीं हैं; भगवान की सेल्फ अप्वाइण्टेड दलाली करते हैं। जहां दलाली है वहां भ्रष्टाचार है, वहां भक्ति नहीं और भक्त की कद्र भी नहीं है। यह केवल सोमनाथ का ही हाल नहीं है। सभी मंदिरों में इन्ही दलालों की भरमार है – चाहे काशी हो, विंध्याचल हो या ॐकारेश्वर हो। वहां भक्त का हितैषी कोई भक्त ही मिले तो मिले; ये लोग तो नहीं ही होंगे। हिंदू धर्म की सहिष्णुता, करुणा और आतिथ्य भाव की अपने लालच के कारण बेइज्जती करते हैं ये लोग।”
गड़ू में प्रेमसागर ने कुछ देर आराम किया। सवेरे मैंने छ बजे उनसे बात की तो उन्हें जम्हाई आ रही थी। नींद शायद ठीक से पूरी नहीं की थी। दिन में गड़ू से लोयेज तक 30-32 किमी की पदयात्रा उन्हें करनी थी। मैं प्रेमसागर की संकल्प शक्ति की दाद दूंगा। तीन घण्टे बाद जब मैंने पता किया तो वे नौ किलोमीटर पदयात्रा कर चुके थे। दिन में उनसे कोई आगे बात नहीं हुई। शाम सवा सात बजे पूछा तो वे लोयेज के स्वामीनारायण मंदिर में थे। साढ़े छ बजे शाम को पंहुच गये थे। एक चित्र उनका सूर्यास्त का है जो लोयेज से तीन-चार किलोमीटर पहले का होगा।

जब मैंने प्रेमसागर से बात की तो लोयेज के आश्रम में वहां के बलदेव भाई राजगुरु जी प्रेमसागर से मिलने आये थे। राजगुरु जी कांवर भक्त की कठिन तपस्या से प्रभावित थे। प्रेमसागर ने बताया कि वे – स्वामी बलदेव भाई राजगुरु जी – उनसे मिलने के लिये एक-डेढ़ किलोमीटर पहले सड़क पर ही खड़े थे।
बलदेव भाई राजगुरु जी से मेरी भी बात हुई। वे सरल और पवित्रात्मा लगे – कोई ईश्वर के “बिचौलिये” नहीं। भगवान ने दो ही दिन में दो छोरों के अनुभव कराये प्रेमसागर को। प्रेमसागर ने दोनो को सम भाव से लिया होगा; मैं उतना श्रद्धावान नहीं हूं; मैं सम भाव से नहीं ले पा रहा। यह भी विचित्र अनुभव रहा – सोमनाथ के बाद लोयेज! मुझे लगा कि महादेव कह रहे हों – “तुमने जल अर्पण किया वह अच्छा किया। मैं उसे एकनॉलेज करता हूं। मैं तुम्हें लोयेज में मिलूंगा! अभी यहां इन लोगों के बीच फंसा हूं।”

नीलकण्ठ वर्णी स्वामीनारायण के बारे में जानने की इच्छा मुझमें जगी है बलदेव राजगुरु जी से फोन पर बातचीत कर। वर्ना सोमनाथ में प्रेमसागर की उपेक्षा के कारण आस्था पर ठेस ताजा थी।
स्वामीनारायण भगवान आज से 230 साल पहले घूमते घामते छपिया से यहां पंहुचे थे। किशोर वय के ही रहे होंगे। गुरु रामानंद के सम्पर्क में आये। गुरु ने विलक्षण शिष्य को पहचाना और उन्हें दीक्षा दी। वे नीलकण्ठ वर्णी से स्वामी सहजानंद बने और कालांतर में वे स्वयम ईश्वरीय हो गये। स्वामीनारायण भगवान।
यूं, बचपन में उनका नाम घनश्याम पाण्डे था। मेरे पूर्वज भी उसी स्थान के आसपास से थे, जहां से स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामीजी थे। अपने नाम में भी पाण्डे होने पर मुझे गर्व हो रहा है। अभी जितनी बाकी जिंदगी है, उसमें शायद मुझपर भी कोई कृपा हो और सरलता-भक्ति और ईश्वर के प्रति उत्तरोत्तर श्रद्धा में विकास हो। शायद मुझे भी कोई मार्गदर्शक मिलें। … पर वह साधक की तीव्र अभीप्सा और ईश्वर की कृपा बिना नहीं ही होता; ऐसा मुझे बताया गया है।

प्रेमसागर से उनकी यात्रा के दौरान बात नहीं हुई। पर उनसे दिलीप थानकी जी का फोन नम्बर मिला और उनसे सम्पर्क हुआ। थानकी जी ने बताया कि प्रेमसागर चोरवड़ से हो कर गुजरे। चोरवड़ धीरूभाई अम्बानी का जन्मस्थान है। वे रास्ते भर अरबसागर के साथ चलेंगे। तीस-बत्तीस किलोमीटर पर लोयेज में स्वामीनरायण मंदिर में उनके रुकने का इंतजाम है। वहां स्वामीनारायण सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी जी किशोरावस्था में घूमते घामते नीलकण्ठ वर्णी के रूप में यहां आये थे। इस स्थान का स्वामीनारायण सम्प्रदाय में बहुत महत्व है। अत्यंत पवित्र स्थल है यह।
रास्ते में मंगरोल पड़ता है। यह गुजरात के राजाओं में से एक की स्टेट थी। सन 1949 में इसका भारत में विलय हुआ और यह सौराष्ट्र का अंग बना। विलय एक रेफरेण्डम के उपरांत हुआ जिसमें नागरिकों ने पाकिस्तान की बजाय भारत में रहने पर मुहर लगाई थी। यह गुजरात के जूनागढ़ जिले में है।

दिलीप जी ने बताया कि आगे की पूरी यात्रा के दौरान स्थानों की, उनके भौगोलिक और एतिहासिक महत्व आदि के बारे में पूरी जानकारी दे सकेंगे। यह पूरा इलाका उनका देखा जाना है और प्रेमसागर की यात्रा के प्रबंध से उन्हें सहज प्रसन्नता है – “अब हम तो खुद इस प्रकार की यात्रा कर नहीं सकते। इसलिये जो अवसर मिला है, उसमें अपना जो भी योगदान हो सके वह करने में ही पुण्य है।”

स्वामीनारायण मंदिर के राजगुरु जी कह रहे थे कि जो वे कर रहे हैं वह ईश्वर का काम है; वे तो निमित्त मात्र हैं। दिलीप जी भी लगभग वही भाव व्यक्त कर रहे थे – निमित्त वाला! गीता में भी केशव कहते हैं – निमित्त मात्रम भव सव्यसाचिन!
काश; सोमनाथ के बंधु भी निमित्त बनते। पर क्या पता, वे अपनी तरह से निमित्त बने हों; मेरा देखना ही वक्र हो! क्या पता!

कल वैसे प्रेमसागर को ज्यादा नहीं चलना है। उन्हें लोयेज से माधवपुर तक ही जाना है। माधवपुर लोयेज से 16 किमी आगे है। वे अगर कल सवेरे देर से भी रवाना होते हैं तो शाम से पहले माधवपुर पंहुच जायेंगे। प्रेमसागर ने बताया कि वे सवेरे आश्रम में घूमेंगे और वे स्थल देखेंगे जहां नीलकण्ठ वर्णी के रूप में भगवान स्वामीनारायण के कुछ स्मृति-चिन्ह हैं।
अपडेट 13 दिसम्बर सवेरे –
प्रेमसागर ने स्वामीनारायण परिसर का भ्रमण किया। आश्रम के प्रमुख स्वामी जी का आशीर्वाद भी पाया और नीलकण्ठ वर्णी भगवान को जल भी चढ़ाया। उस सब के चित्र भेजे हैं। बलदेव राजगुरु जी भी उन चित्रों में हैं।उसके बाद आगे की यात्रा के लिये रवाना हुये प्रेमसागर। सवेरे का अनुभव विवरण आगे की पोस्ट में होगा।
स्वामीनारायण भगवान की जय! ॐ नम: शिवाय। हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
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आलोक जोशी ट्विटर पर –
चित्रों आदि में आप ज्यादा समय न लगाया करें
इससे उसमें निरंतरता बनाये रखना आपके लिए बोझिल होता जाएगा।
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आलोक जोशी ट्विटर पर –
इसमें संशय नही की मोदी जी भी शिव भक्त हैं और प्रेम जी पर नज़र पड़ गई तो यात्रा समाप्ति पर उनके अदम्य साहस और आस्था पर पद्म पुरस्कार उनकी झोली में आ जाये..
आप उनके बारे में संक्षिप्त वर्णन भी करेंगे तो चलेगा क्योंकि हमें तो उनकी यात्रा के चलायमान रहने से सरोकार है।
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Shekhar Vyas फेसबुक पेज पर –
सोमनाथ में ही नही , सर्वत्र भोलेनाथ हेतु कांवर यात्री भक्ति में लीन हो दर्शनार्थ रहते ही हैं । ऐसे में सोमनाथ मंदिर में किसी द्वारा नोटिस न लिया जाना सहज भाव है । यह यात्रा दिव्यता तो हम जैसे
अभक्तों के मार्गदर्शन हेतु है । जिन्हे कृपा कर पुण्य फल दे स्वयं प्रभु ने अपनी सेवा में रखा हो उन्हे प्रेम जी के समान अपना सम भाव गुण भी दे रखा हो , संभव है 🤔
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जय महादेव।
मैं भी मैडम जी के विचार से सहमत हूं, व गुजरात में थोड़ी व्यापारिक दृष्टि ज़्यादा है। महादेव से प्रार्थना है कि अन्य धाम में यह दिक्कत का सामना न करना पड़े।
स्वामीनारायण भगवान लोज में प्रथम बार रामानंद स्वामी के शिष्यों से मिले व उनकी दंभ हीन जीवनी से प्रभावित हुए। लोज गांव सम्प्रदाय की पंचतीर्थी में पहला तीर्थ है। स्वामीनारायण भगवान ने उस वक़्त के काफी कुरिवाज पर काम किया। गढ्डा जो उस वक्त दादा खाचर का राज्य था उन्होंने भगवान को अर्पित कर दिया।उन्होंने अपने जीवन मे 500 साधुओं को दीक्षा दी व 6 मंदिर निर्माण किये। अपने कुल को छपैया(उनके गुजराती ग्रंथों में यही नाम है) से गुजरात बुलाया। दो देश(सम्प्रदाय के अनुसार) बनाये। वड़ताल व अहमदाबाद। उनके दोनों भाइयों को उनका प्रबंधक बनाया। शिक्षापत्री (सम्प्रदाय की आचारसंहिता) ग्रंथ बनाया। सभी साधु व अनुयायी को उसके हिसाब से जीने के लिए बाध्य किया।
आज गुजराती जहाँ कहीं भी है वहाँ सम्प्रदाय पहुंचा है पूरे विश्व मे। उस समय के सौराष्ट्र को नई दिशा देने में व सामाजिक व आध्यात्मिक पुनरुत्थान में स्वामीनारायण भगवान का बड़ा योगदान रहा। आज भी एकजूट न होने के बावजूद स्वामीनारायण सम्प्रदाय का योगदान हिन्दू संस्कृति को दिशा दे रहा है। मंदिरों में स्वच्छता प्रमुख स्वामी की सबसे बड़ी दिशा निर्देश रही है पूरे भारत के मंदिरों के लिए।
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आपने पूरी समग्रता से वह सब बताया जो ब्लॉग में आना चाहिए था. आपका बहुत धन्यवाद बंधुवर! जय हो!
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