13-14 दिसम्बर 21 –
माधवपुर सौराष्ट्र का एक तटीय गांव या कस्बा है। छोटा पर सांस्कृतिक रूप से समृद्ध। तेरह दिसम्बर की शाम प्रेमसागर अपनी द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के अंतर्गत नागेश्वर जाते हुये यहां पंहुचे थे। वहां जनक भाई के आतिथ्य में एक दिन ठहर कर उन्होने आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखा।
माधवपुर घेड के नाम से एक पर्यटक वेबसाइट है जो सुंदर चित्रों के साथ माधवपुर की जानकारी देती है। वेब साइट के अनुसार यहां दर्शनीय है – माधवराय का प्राचीन मंदिर, माधव रमणीय समुद्र तट, रामनवमी के दौरान कृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विवाह आयोजन और उसका व्यापक उत्सव, ओशो का एक आश्रम, वल्लभाचार्य की एक ‘बैठक’ और एक कछुओं के अण्डों से बच्चे जनने की हेचरी। “घेड” शब्द का अथ जानने के लिये मैंने नेट पर ही छानबीन की।
घेड का अर्थ व्यापक आद्रभूमि (wetland) से है। समुद्रतटीय इलाके में यह घेड क्षेत्र वर्षा के मौसम में अधिक जलवृष्टि का जल अपने में भर लेते हैं। इससे बाकी रिहायशी स्थल बाढ़ से बच जाते हैं। माधवपुर की यह आद्रभूमि गूगल नक्शे में बहुत व्यापक क्षेत्र में नहीं दिखती पर पोरबंदर के आसपास भादर और ओजत नदियां जब समुद्र में मिलती हैं तो करीब 100 वर्ग किलोमीटर के घेड क्षेत्र से गुजरती हैं। इन नदियों में बारिश के मौसम में व्यापक तबाही मचाने की क्षमता होती होगी। पर घेड क्षेत्र होने के कारण कोई जलप्लावन रिहायशी इलाके में नहीं होता। उस आद्रभूमि के कारण वनस्पतीय, जैव और जानवरों की भी विविधता होती होगी और पर्यावरण भी पुष्ट होता होगा। उसके बारे में अलग से जानकारी लेने का यत्न करूंगा।
एक माधवपुर नाम का स्थान नेपाल में है, जिससे इस माधवपुर का कोई सम्बंध नहीं है। यह माधवपुर तो कृष्ण के रुक्मिणी विवाह से पौराणिक महत्व रखता है।

प्रेमसागर ने इन स्थलों के भ्रमण के बाद चार पांच दर्जन चित्र, थोक में, संदर्भ रहित मेरे पास ह्वाट्सएप्प पर ठेल दिये। उनका विवरण देने के लिये कोई फोन करने की औपचारिकता या शिष्टाचार पालन भी नहीं किया। उन्हें जनक भाई और अन्य लोगों का आतिथ्य सत्कार मिल रहा है, ऐसे में मुझे फोन करने का ध्यान कहांं! गुजरात में छोटा उदयपुर से वडोदरा के इलाके में भी उनका इसी प्रकार का व्यवहार दिख चुका है – जहां लोग उन्हें धर्म श्रद्धा में भाव देते रहे और प्रेमसागर अपनी यात्रा के मूल अनुशासन को भूल उसी में मगन रहे। शंकर भगवान बीच बीच में यह परिवर्तन उनकी परिस्थितियों में करते रहे हैं। अब फिर कर रहे हैं। अब फिर, शायद प्रेमसागर के बारे में ब्लॉग लिखने की आवृति कम होते जाने का समय आ रहा है। शायद! 😆
माधवराय का 15वीं सदी का पुराना मंदिर तो मुस्लिम आक्रांताओं ने नष्ट कर दिया है। इधर, गांगेय प्रांत में तो उस बर्बरता को गंगा-जमुना संस्कृति का वर्क चढ़ाया जाता है; वहां गुजरात में कोई और नाम दिया जाता होगा इस बर्बरता को जस्टीफाई करने के लिये। उस पुराने मंदिर के खण्ड दिखते हैं। एक नया माधवराय मंदिर बना है कहीं आसपास पर उसका चित्र प्रेमसागर के चित्रों में चिन्हित नहीं होता। प्रेमसागर को मैं अनेकानेक बार कह चुका हूं कि चित्र भेजते समय उसके परिचय में कोई पंक्ति या वॉइसनोट डाल दिया करें। पर प्रेमसागर में वह डिसिप्लिन कभी आया ही नहीं। अनगढ़ व्यक्ति है यह! यह आदमी ट्रेवल-ब्लॉग लेखन के लिये गढ़ा ही नहीं गया है।

दिलीप थानकी जी ने बताया कि कृष्ण-रुक्मिणी विवाह का उत्सव वैसे ही मनाया जाता है जैसा परम्परा में होता रहा होगा। उनके मायके और मामा के इलाके के लोग विदर्भ, झारखण्ड (?) और असम (?) से यहां आते हैं। माधवराय मंदिर में विवाह की सभी रस्में विधिनुसार सम्पन्न होती हैं। एक रथ पर कृष्ण-रुक्मिणी की सवारी पूरे गांव में निकलती है। लोग नाचते गाते साथ चलते हैं और एक दूसरे पर अबीर-गुलाल भी लगाते हैं। रामनवमी के दौरान पांच दिन चलता है यह उत्सव। उसके पर्यटन महत्व का दोहन भी किया जाता है।

थानकी जी ने बताया कि यहां रजनीश (ओशो) का एक प्राचीन शैली का आश्रम है जिसमें ओशो के अन्य आश्रमों जैसी तड़क भड़क नहीं है। शांत जगह है और वहां जाना अच्छा लगता है। वेबसाइट के अनुसार वहां ओशो परम्परा के स्वामी ब्रह्मवेदांत जी रहते हैं। आश्रम में बिना पैसा दिये भी रहा जा सकता है। वहां आश्रम की दिनचर्या के नियमों का पालन करना होता है। स्थान रमणीय है।

माधवपुर के समुद्र तट के जो चित्र इण्टर्नेट पर दिखते हैं वे बहुत मोहक हैं। पूरी वेबसाइट देखने पर मन होता है कि यहां भदोही जिले में रिहायश बनाने की जगह एक कुटिया मुझे वहीं माधवपुर में बना कर बस जाना चाहिये था! एक ऐसा एक डेढ़ कमरे का स्थान जहां से समुद्र तट डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर हो। मन होता है कि थानकी जी या जनक भाई से पूछूं कि किराये पर ऐसा कमरा कितने में मिल सकेगा जिसमें कुछ बेसिक फर्नीचर हो और आसनी से रहा जा सके। सुबह शाम समुद्र तट पर व्यतीत करना और दिन में सोचना और लिखना – कितना आनंद रहे! पर हर स्थान जो प्रकृति के समीप होता या दिखता है, लुभाता है। शायद एक मोबाइल घर होना चाहिये जिसपर जहां मन हो पार्क कर महीना दो महीना रहा जाये, फिर वहां से निकल कर कहीं और! जॉन स्टाइनबैक के “ट्रेवल्स विथ चार्ली” की तरह एक ट्रक की बॉडी पर बने घर/सैलून को लेकर!

रेलवे की नौकरी में सैलून की यात्रा की आदत रही। लगभग 80 प्रतिशत यात्रायें वैसे ही की हैं। अब कोई कम्पनी इस तरह के ट्रक बॉडी पर घर/सैलून बना कर किराये पर देने लगे तो मेरे जैसे कई लोग होंगे जो उसका प्रयोग करना चाहेंगे। वे जो मात्र पर्यटक नहीं हैं – वे जो घुमंतू जीवन का अनुभव करना चाहते हैं अपनी धीमी रफ्तार से। वे जिनके लिये यात्रा महत्वपूर्ण नहीं है। जिनके लिये अनुभव महत्व का है। उगते और अस्त होते सूरज का अनुभव! जंगल और घेड का अनुभव!
मेरे पास प्रेमसागर के ठेले चार पांच दर्जन चित्र हैं। कुछ समझ आ रहे हैं और कुछ का संदर्भ समझ नहीं आता। प्रेमसागर का फोन नहीं आया और मैं अपनी ओर से करना नहीं चाहता। जीडी; यह कांवर ऑब्सेसन बहुत अच्छी बात नहीं। प्रेमसागर की लाइफ और लाइफस्टाइल जितना दिखे, देखो; पर उसे जानने का जुनून न पालो! इग्यारह बजे पोस्ट करने की भी क्या बाध्यता है? जब वे सज्जन बतायेंगे, तब देखा जायेगा। नहीं तो जो लिखा है, वही काफी है।






15 दिसम्बर 21 सवेरे –
सवेरे प्रेमसागर अवतरित हुये। सौ से ऊपर फोटो ठेलीं आज सवेरे, कल के उनके भ्रमण की। थोक में अपनी गैलरी मुझे थमा दी। उसमें दो दर्जन फोटो बनारस में मोदी के कार्यक्रम की भी हैं। कुछ मेरे ही ब्लॉग के स्क्रीनशॉट हैं जो किसी ने उन्हे भेजे होंगे। मैंने उन्हे कहा भी कि इनका मैं क्या उपयोग करूं? उन्हें मुझे आठ दस फोटो देनी चाहियें। उनके साथ वॉइस नोट या एक पंक्ति का लेखन होना चाहिये जिससे उन्हें लिंक किया जा सके।

माधवराय के भग्न मंदिर का मात्र एक चित्र है जिससे स्पष्ट नहीं होता कि उसे कितना खण्डित किया गया और कितना वह समय से रखरखाव के अभाव में खण्डहर बना। समुद्र के बीच का कोई चित्र नहीं है। जनक भाई के परिवार के अनेकानेक चित्र हैं पर यह नहीं पता चलता कि जनक ठाकर जी कौन हैं और कौन दूसरे लोग। यह भ्रम-संशय पहले भी होता रहा है पर बहुत बार मैं इत्मीनान से उनसे बात कर समझ लिया करता था। अब प्रेमसागर के पास समय का टोटा है।



आज वे तीस किलोमीटर चलेंगे, उसके बाद किसी वाहन से पोरबंदर जा कर रात्रि विश्राम करेंगे। कल या परसों वापस उसी स्थान पर आ कर वहीं से कांवर यात्रा प्रारम्भ करेंगे। पोरबंदर में उनके लिये कोई आयोजन है, जिसमें शामिल होना है। … यह प्रेमसागर के कांवर यात्री से आयोजनों में शामिल होने का फेज है। यह पहले भी हो चुका है। नया नहीं है! इस रूपांतरण में ब्लॉगानुशासन का कचरा होता है। वह होगा! 😆
हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
आपसे भौगोलिक दूरी बढ़ी है ना तो असर है। नागेश्वर से आगे वापिस पुराने प्रेमसागरजी लौट आयेंगे😀
तर्क यह है कि सौराष्ट्र की बोली में एक दोहा /दोहरा है,
“कोक दी काठियावाड़ मा,
भूलो पड भगवान,
तारा एवा करूँ सम्मान,
स्वर्ग भूलावू शामला।”
आतिथ्य में भगवान को भी अपना घर भूल देना सौराष्ट्र की प्रकृति है। प्रेमसागरजी तो फिर भी मनुष्य ठहरे ।,😂😂
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हाहाहा! सही कहावत! 👌
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शेखर व्यास फेसबुक पेज पर टिप्पणी –
बाबा प्रेम भटक रहे हैं, हे महादेव संभालिए 🙏🏻 हमारी यात्रा अधूरी न रहे 🙏🏻
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आलोक जोशी ट्विटर पर –
आपका प्रेम जी के साथ अपने आप को एडजस्ट करते हुए ब्लॉग लेखन करना बहुत अच्छा लगा। यह एक बड़ा संदेश भी है कि जीवन मे सबकुछ मन माफिक नही होता।
आपने मोबाइल होम की बात की। बहुत सुंदर खयाल है आपका, जिसका समर्थन हर प्रकृति प्रेमी करेगा। बसने के हिसाब से पश्चिमी गुजरातीय तट..बेस्ट!!😊✔️
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😂😂😂 बात तो सही है सर। आपने ये ठीक ही लिखा कि मटेरियल न होने पर आवृत्ति कम हो सकती हैं। तो अगर उनको भी ब्लॉग वर्णन की “चाह” जगी है तो उस पक्ष पर भी थोड़ी मेहनत तो उन्हें करनी ही होगी।
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मुझे आज उनके द्वारा कचरा भेजने पर लगा कि मैंने प्रेम सागर को ज्यादा ही pamper कर दिया है. मेरे आसपास के कई साधारण चरित्र हैं और वे भी सरल हैं जिनपर लिखा कहा जाना चाहिए. उनका जीवन भी तपस्या पूर्ण है.
उनका कचरा भेजना offensive लगा.
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सर, अनुशासन बद्ध यात्रा करना तो हम जैसे समझे बुझे लोगों का काम हैं। फिर सम्भव भी हैं कि उस लिखे में मौलिकता नहीं होगी न ही वो फील होगा। प्रेमसागर जी को अनुशासन में बांधना ठीक नहीं लगता। उससे उनकी मौलिकता खत्म होने का भय भी है और फिर यह ब्लॉग मात्र जगहों की कमेंट्री भर ही रह जायेगा। ये मेरा मत है।
ये उनकी यात्रा हैं तो उनके ही दृष्टिकोण से देखी जानी चाहिए।
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हाँ. लेकिन मैं उन्हें इतना ग्लोरीफाई भी नहीं करना चाहता कि वे भारत सरकार के एक एक रिटायर्ड विभागाध्यक्ष को अपना ऑफिस क्लर्क मान लें। 😁
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