प्रेमसागर और त्र्यम्बकेश्वर

कल शाम चार बजे फोन आया प्रेमसागर का। उन्होने बताया कि वे त्र्यम्बकेश्वर दर्शन कर लौट रहे हैं। वे एक कार में हैं और जहां रुके हैं, वहां पंहुच कर दर्शन के बारे में विस्तार बतायेंगे – “अभी तो आपका और भाभी जी का आशीर्वाद लेने के लिये फोन किया है। तबियत ठीक है। मंदिर मेंं मोबाइल नहीं ले जा सकते थे, पर बाहर का फोटो लिये हैं। पंहुचने पर आपको भेज दूंगा।”

जिस प्रकार से आवाज आ रही थी, उससे स्पष्ट था कि उनके साथ लोग हैं। वाहन और रुकने-ठहरने का इंतजाम है। वैसा नहीं है कि सोमनाथ में वे एकाकी तौर पर जल चढ़ा कर लौटे हों। सोमनाथ के अनुभव को अभी महीना भर हुआ है। महीना बहुत बड़ी अवधि होती है!

उसके बाद प्रेमसागर का कोई फोन नहीं आया। आज सवेरे उनके भेजे कुछ चित्र ह्वाट्सएप्प पर प्राप्त हुये। ट्रेवल ब्लॉग में यात्रा विवरण होता है। वह प्रेमसागर ने नहीं दिया। वह ध्येय भी नहीं लगता उनका। फोन करने का ध्येय मात्र औपचारिक सूचना देना भर था कि उन्होने त्र्यम्बकेश्वर दर्शन के साथ बारह में से छ ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न कर लिये हैं।

त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के सामने प्रेमसागर

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची

उनका पिछला फोन 1 जनवरी 2022 को आया था। वे सूरत से सवेरे रवाना हुये थे कांवर ले कर त्र्यम्बकेश्वर के लिये। बताया था कि वह यात्रा प्रतीकात्मक नहीं थी। अपनी पूरी कांवर लिये थे। जल भी और सामान भी। उन्होने अपना लाइव लोकेशन भी शेयर किया था। वह उस समय सूरत में ताप्ती नदी के किनारे का कोई स्थान बता रहा था। दिन भर में किसी स्थान शाहपुर तारा तक यात्रा करनी थी। उन्होने बताया कि कोई पुणे के सज्जन कंचन तिवारी जी रास्ते का प्रबंध कर रहे हैं। रहने आदि की व्यवस्था दिलीप थानकी जी कर रहे हैं। सूरत में स्वामीनारायण मंदिर में रहने का इंतजाम किया था। शाहपुर तारा (?) में भी वही व्यवस्था कर रहे थे।

उसके बाद प्रेमसागर का फोन के माध्यम से कोई सम्पर्क नहीं हुआ। यह स्पष्ट था कि प्रेमसागर अब अपने कम्फर्ट जोन में चल रहे थे और उन्हे आवश्यकता नहीं थी मेरी, प्रवीण जी की या सुधीर जी की। यह भी आवश्यक नहीं था कि नियमित उनके बारे में ब्लॉग पर अपडेट हो।

कल के प्रेमसागर के फोन के बाद मैंने प्रवीण जी को फोन कर पूछा। सुधीर जी से भी बात हुई। प्रवीण जी ने बताया कि अब प्रेमसागर का फोन नहीं आता उनके पास। वे ही यदा कदा फोन कर हाल पूछ लेते हैं – “यह जानने के लिये कि उनकी कुशल तो है। कहीं कोई परेशानी में तो नहीं फंसे।” सुधीर जी ने तो बताया कि उनसे कोई सम्पर्क ही नहीं किया प्रेमसागर ने।

हम तीनों को – जिन्होने प्रेमसागर के शुरुआती यात्रा में सहायता की थी; को प्रेमसागर की प्रवृत्ति में आया परिवर्तन आश्चर्य में डालता है। मैं अपने बारे में तो फिर भी मान लेता हूं कि मेरी ब्लॉग पोस्टों में प्रेमसागर की आलोचना खूब होती थी। उनकी पारम्परिक “जड़ता” और लोगों से मान सम्मान चाहने लेने की भावना का मैं विरोध करता था, और हमेशा उन्हें आगाह करता था कि महादेव प्रसिद्धि या मान-सम्मान का लालच दे कर परीक्षा लेते रहते हैं और भक्त का वैसा ही हाल होता है जैसा नारद का हुआ था। पर फिर भी, प्रेमसागर की नैसर्गिक सरलता पर यकीन होता था। इसलिये उनके साथ डिजिटल यात्रा मैंने 2600 किलोमीटर तक की।

पर प्रवीण या सुधीर तो मेरे विचार से बिल्कुल सरल भाव से, “नेकी कर भूल जा” के भाव से उनकी सहायता कर रहे थे। उन्हे कुशल क्षेम में उनको जेनुईन जुड़ाव था। उनसे विमुख होने का विचार प्रेमसागर के मन में कैसे आया, यह मेरी समझ में नहीं आता। प्रवीण जी मुझे कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण पर सोचा और लिखा जा सकता है – मानव स्वभाव का विश्लेषण करते हुये। शायद भविष्य में मैं वह कर सकूं!

सुधीर जी का अनुभव अलग है। उनका कहना है कि उन्हें बहुत से लोग मिले हैं जिनकी उन्होने गहन सहायता की पर उसके बाद वे लोग उनसे कतरा कर चलने लगे। सामने आये ही नहीं या किसी प्रकार उनकी आलोचना भी करने लगे। इसलिये उन्हें प्रेमसागर के व्यवहार में कोई विसंगति या आश्चर्योत्पादक भाव परिलक्षित नहीं होता। यह सामान्य मानव व्यवहार है जो प्रेमसागर दिखा रहे हैं। हां, भविष्य में फिर कभी उन्हें सहायता की आवश्यकता हुई; और उनका विचार है कि होगी ही; तो वे पुन: सहायता को तत्पर रहेंगे।

प्रवीण जी को भी भले ही अजीब लगा हो; पर भविष्य में वे भी इसी तरह की स्थिति सामने आने पर अपना नैसर्गिक व्यवहार नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है – “आदमी अनुभव से ग्रहण जरूर करता है; पर अपनी मूल वृत्ति या सज्जनता का परित्याग तो नहीं करता।”

और मैं? मैं क्या करूंगा? मुझे प्रेमसागर की इनहैरेण्ट सरलता और ईश्वर के प्रति श्रद्धा में यकीन (पूरी तरह) हटा नहीं है। प्रेमसागर अगर एक बार पुन अपने सामान्य कांवर यात्री के भाव में आते हैं और अपने बाबाहुड या डेमी-गॉडत्व का परित्याग कर एक सरल सामान्य व्यक्ति की तरह चलते हैं, ‘कंचन, कामिनी और कीर्ति’ के लोभ से निर्लिप्त रहते हुये; तो उनके साथ डिजिटल जुगलबंदी में मुझे आनंद ही आयेगा। बावजूद इसके कि मेरी पत्नीजी इस डिजिटल-यात्रा प्रयोग को आगे जारी रखने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि और ही कई विषय हैं जिनपर सोचा और लिखा जा सकता है। प्रेमसागर पर ही सब कुछ आ कर नहीं टिकता! … वैसे यह प्रेमसागर के लिये कठिन होगा। सुविधा के जोन को त्यागना कठिन भी होता है, कष्टप्रद भी। पर यह भी है कि सुविधा का जोन स्थाई नहीं होता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

पूरे प्रकरण में कोई गलत नहीं है। दिलीप थानकी जी ने पूरी श्रद्धा निष्ठा से प्रेमसागर की सहायता की है। उनके व्यवहार में गुजरात का उत्कृष्ट रूप सामने आता है। प्रवीण और सुधीर जी भी सरल निस्वार्थ भाव से अपना अपना रोल अदा किये हैं। प्रेमसागर भी, बकौल तुलसी बाबा, महादेव की कठपुतली ही हैं। जैसा वे चाह रहे हैं, वैसा रोल निभा रहे हैं! 🙂

बहरहाल बताने को यह है कि प्रेमसागर ने त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के साथ छ ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न कर लिये हैं। उनकी पदयात्रा लगभग 2900 कि.मी. की हो चुकी है। आगे वे कहां और कैसे जायेंगे, वह पता नहीं। पता चलने पर एक बार फिर ब्लॉगपोस्ट लिखने का अवसर आयेगा! 😆

हर हर महादेव! जय त्र्यम्बकेश्वर!

सुधीर पाण्डेय का भेजा त्र्यम्बकेश्वर मंदिर का चित्र

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

14 thoughts on “प्रेमसागर और त्र्यम्बकेश्वर

  1. मनोज कुमार द्विवेदी, ट्विटर पर –
    चलिए कम से कम आपकी प्रेम सागर से स्पृहा कम नहीं हुई है.

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  2. अमिताभ पाराशर, ट्विटर पर –
    मुझे तो लगता है कि इस यात्रा प्रसंग लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव वह है जहां आप इसे छोड़ना चाहते हैं। अब यात्रा के विवरणों से अधिक यात्री के मन के अंदर घुसकर उसकी मानसिक यात्रा का निष्पक्ष विवेचन ज्यादा रोचक और पठनीय होगा !

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  3. कंचन, कामिनी और कीर्ति – यही तीनों ऐसे हैं जिससे बचना बड़े बड़ों के लिए आसान नहीं।

    यह कीर्ति (सुरसा) जो है वह जितनी बढ़ती है लालसा उतनी ही तीव्र होती जाती है और सुरसा की तरह बढ़ती ही जाती है।अगर बचना है तो हनुमान जी की तरह अति लघु रूप लेकर उसमें से निकलना होगा। जब हनुमान जी और सुरसा में प्रतियोगिता हुई तो दोनो दोगुना होने लगे लेकिन हनुमान जी ने १०० योजन के बाद अति लघु रूप ले लिया,लंका भी १०० योजन पर थी और उनको उससे अधिक नहीं जाना था, चाहते तो और दोगुना कर सकते थे लेकिन उन्होंने कहा- नहीं, कीर्ति का पीछा नहीं करना उससे निकल जाना ही उपयुक्त मार्ग है। 🙏🙏

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  4. अब निकल लीजिए खुद ही ट्रेवल ब्लागिंग के लिए। प्रेमसागर जी तो अर्धखुदा हो गए।

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    1. आप मेरी कमजोर नस पहचानते हैं. निकलना और किताब लिखना दोनों में हाथ तंग है. 😁

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  5. मैं अभी कल्‍पना भी नहीं कर सकता कि एक ही सीध में 3 हजार किलोमीटर चल लूं तो मेरे भीतर क्‍या ट्रांसफार्मेशन होगा। घर बैठकर कल्‍पना करना और अपने मन और शरीर से यात्रा करना, कितना जबरदस्‍त परिवर्तन लाता होगा।

    मैं सोचता हूं प्रेमसागर जी के व्‍यवहार में आ रहे परिवर्तन का विश्‍लेषण करने के बजाय अभी सिर्फ साक्षी भाव से देखने की जरूरत है।

    रही बात डैमीगॉड की तो हर त्‍याग अपने पीछे कुछ न कुछ अहंकार छोड़ता है। प्रेमसागर चल रहे हैं उनका त्‍याग है, आप लिख रहे हैं आपका त्‍याग है, मैं पढ़ रहा हूं और कमेंट कर रहा हूं मेरा त्‍याग है, हम सभी का कुछ न कुछ अहं जुड़ ही गया है। तीन हजार किलोमीटर चलने पर छोटा मोटा डैमीगॉड बना जा सकता है, जब संकल्‍प मन में हो कि अभी तीन हजार किलोमीटर और चलना है….

    हर हर महादेव…

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    1. लिखना तभी हो सकता है जब इनपुट मिले और इनपुट तो पैशन से आता है. प्रेम सागर का पैशन बचा है इस विधा के लिए, यह कहा नहीं जा सकता.

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  6. मानवीय संभावनायें महादेव दिखा रहे हैं। आशा, प्रत्याशा और निराशा से कहीं ऊपर उठ कर है महादेव की भक्ति। शक्ति से लगे रहिये, भटकाव भक्ति मार्ग में स्वाभाविक हैं।

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    1. मैं भी मानता हूं कि जो हो रहा है वह स्वाभाविक है. पर रूट करेक्शन की संभावना होनी चाहिए…

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  7. इतनी बड़ी उपलब्‍धि‍ के बाद वे अब बाबाई के मुहाने पर खड़े हैं..

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  8. तुलसी या संसार में भांति-भांति के लोग!सबसे हिल मिल चालिए नदी नाव संजोग!
    प्रेमसागर भी एक साधारण मानव हैं, उन्होंने द्वादश ज्योतिर्लिंग की कांवड़ पदयात्रा का संकल्प को पूरा करने के लिए निकल पड़े, संयोग से आप उन्हें मिल गये, और आपने उनकी संकल्प की कांवड़ पैदल तीर्थयात्रा को अपने मानसिक आध्यात्मिक संन्यास की ओर उन्मुख जीवन में अध्यात्म की उच्चता की मिसाल बनाने और उनकी यात्रा को सुगम तथा सरल बनाने के लिए आपने वर्चुअल आध्यात्मिक यात्रा इस ट्रैवलाग के द्वारा शुरू कर दी, जिसमें प्रवीण जी तथा सुधीर जी भी संगी साथी बन कर प्रेमसागर की पदयात्रा को सुगम सरल, सुविधाजनक बनाने में सहायक हो गए, इससे प्रेमसागर के लिए दो बातें हो गईं, एक उनकी पदयात्रा, सुगम सरल और सुविधाजनक हो गई, जो अन्यथा न ही होती,
    दूसरे प्रेमसागर पर एक दायित्व आ गया कि वो आप सभी के नियमित संपर्क में रहें तथा ट्रैवलाग के लिए दृश्यों, स्थानों, मंदिरों, जगह जगह के स्थानीय लोग उनकी संस्कार संस्कृति की जानकारी भेजने का दायित्व भी।जब नारद जैसे देवर्षि विचलित हो जाते हैं फिर वो तो साधारण मानव ही हैं।
    उन्हें जो जैसा उचित लग रहा है वैसे वो चल रहे हैं अपने संकल्प को पूरा करने के लिए। इसमें उनका पूरी पदयात्रा में किसी एक से ही बंधा रहना आवश्यक तो नही है।
    ॐ नमः शिवाय!

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    1. निश्चय ही उनका बंध कर रहना कोई अनिवार्यता नहीं. वैसे ही जैसे मुझपर कोई अनिवार्यता नहीं…

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