सवेरे मडैयाँ डेयरी का दृश्य। दूध के बाल्टों, ड्रम तथा दूध देने आये किसानों से भरी जगह के बीच छोटे से स्पेस में वह उछल कर, आगे कूद कर, हाथ लहरा कर, नमस्कार कर और मेरे बारे में पता चलने पर मुझे बार बार चरण छूने का प्रयास कर जो कुछ कर रहा था, वह बहुत रोचक था। डेयरी के उस दूध कलेक्शन सेण्टर पर उजाला बहुत ज्यादा नहीं था। चित्र बहुत साफ नहीं आये। एक छोटे वीडियो में उसकी आकृति भी धुंधली है। पर उसका चरित्र बहुरंगी था।
पास के गांव का रहने वाला है वह। नाम है दिनेश बिंद। मुझे चलते समय वह अपना परिचय देता है – आप को कौनों काम हो, पता कर लीजियेगा। लोग मुझे दिनेश पगला के नाम से जानते हैं। हर कोई मेरे बारे में बता देगा।
डेयरी के उस मेक-शिफ्ट रंगमंच पर जो प्रहसन वह कर रहा था उसकी स्क्रिप्ट में कोई ट्रक या वाहन था। उसका यह क्लीनर। कट्टा लहराते लुटेरे थे और इसने मालिक का “इतना-इतना (वह हाथ से बहुत मोटी गड्डी नोटों की बना कर दिखाया)” पैसा बचा लिया। उस प्रहसन से जो निकल कर आया वह यह कि दिनेश पगला ईमानदार, कर्मठ और दिलेर है।

ऐसे चरित्र रोज रोज नहीं मिलते। पहले मुझे लगा कि वह कुछ मानसिक रूप से सरका हुआ है। पर उसने बताया कि गांव के आसपास के भगत लोगों के साथ उत्तराखण्ड, झारखण्ड, गया आदि कई जगहों पर पैदल यात्रा कर चुका है। भगत लोग अपने साथ उसे सामान ले कर चलने या छोटा मोटा काम करने के लिये साथ ले कर जाते हैं। कुल मिला कर उनका कुली होता है वह। … मैं अगर (और यह शेखचिल्ली सोच है) साइकिल से भारत भ्रमण पर निकलूं तो साथ में इस जोकर को बतौर कुली एक साथ की साइकिल पर ले कर चल सकता हूं। मैंने सोचा!
उसके साथ मैंने एक चित्र खिंचवाया। डेयरी के सुभाष ने खींचा। पर रोशनी अच्छी न होने और शायद क्लिक करनें में सुभाष के दक्ष न होने से चित्र अच्छा नहीं आ पाया। … ऐसे लोगों के साथ यादगार बनी रहनी चाहिये।
डेयरी से निकल साइकिल पर भी हाथ लहराते, अपने से कुछ बोलते बड़बड़ाते वह जा रहा था। साइकिल बढ़िया चला रहा था। मुझे फिर लगा कि वह मेरा यात्रा-कुली बन सकता है।
पर अगले दिन सुभाष ने मेरी सोच पर पानी फेरा – “दिनेश बिंद है तो ठीक पर हमेशा नशे में रहता है। नशे के लिये कुछ भी मिल जाये उसे। किसी भी चीज से परहेज नहीं। काम मन लगा कर करता है। पर कहीं टिकता भी नहीं। मर्जी का मालिक है।”

अब यात्रा कुली साथ ले कर हमेशा उसके नशे का इंतजाम तो कर नहीं सकता। और कभी वह टुन्न हो कर गरियार बरदा (वह बैल जो कोंचने और डण्डे से मारने पर भी हल चलाने को तैयार न हो) की तरह अड़ जाये तो बहुत बड़ी लायबिलिटी होगा।
पर, फिलहाल, उस दिन उसका प्रहसन बहुत रोचक लगा। वह डेयरी पर किस लिये आया था, पता नहीं। शायद पता करने आया था कि डेयरी पर दूध दिया जा सकता है या नहीं।
हो सकता है, वह वहां दूध ला कर देते रोज दिखने लगे! संभावना कम है।
गांवदेहात में कोई थियेटर या सिनेमा तो है नहीं। दिनेश पगला जैसे लोग उसकी कमी पूरी करते हैं। उसके पांच मिनट के प्ले से मजा भी आया और आईडियाज भी आये दिमाग में! 🙂
फिर मिलना चाहिए, दिनेश पगला!
