
मेरा जन्म दीपावली की सुबह, चौदह नवम्बर सन उन्नीस सौ पचपन में गाँव मड़ार, माण्डा तहसील, जिला इलाहाबाद में हुआ। मड़ार मेरा ननिहाल है। शुक्लपुर मेरा गांव। यह गांव मेजा तहसील में इलाहाबाद जिले में है।
विशुद्ध ग्रामीण परिवेश से मैं आता हूं। नाना किसान थे। बब्बा भी। बब्बा प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर बन गये थे। उसी स्कूल में पहली – दूसरी पास की। पिताजी की नौकरी मिलटरी इंजीनियरिंग सेवा में बतौर ओवरसियर लग गयी थी। सो उनके साथ दिल्ली आया। उनकी ट्रांसफर ने स्थान दिखाये – दिल्ली, जोधपुर, नसीराबाद (अजमेर), चण्डीगढ़ और कसौली।
पढ़ने में ठीक था। दसवीं और इग्यारहवीं में अजमेर बोर्ड, राजस्थान में मैरिट लिस्ट में नाम था – सो सीधे दाखिला मिल गया इंजीनियरिंग में। बिट्स, पिलानी से इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. (ऑनर्स) बना।
पहले भारत की इंजीनियरिंग सेवा में ज्वाइन किया, फिर भारतीय रेलवे यातायात सेवा में।
उसी के अंतर्गत पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्य परिचालन प्रबन्धक पद से 2015 के उत्तरार्द्ध में सेवा निवृत हुआ।
मेरी पत्नीजी गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही की हैं। उनका परिवार गाँव व वाराणसी शहर में रहता है। मैं सितम्बर’2015 में रेल सेवा से निवृत्त होने के बाद इसी गांव – विक्रमपुर (रेलवे स्टेशन कटका) में बसने का मन बनाया। यहीं घर बना कर रह रहा हूँ।
मेरा एक लड़का है, जिसका सन 2000 में भुसावल के पास पंजाब मेल में एक्सीडेण्ट हो गया था। चलती ट्रेन के जिस कोच में आग लगी थी, उसमें वह यात्रा कर रहा था। शायद धुंये से बचने वह दरवाजे तक आया होगा और पीछे से धक्का लगने पर गिर गया। उसके सिर में चोट लगी और कई जगह जल भी गया था। कई महीने कोमा में रहा। अंतत: अपने मस्तिष्क की चोट के कारण आगे पढ़ाई नहीं कर पाया।
मेरी बिटिया विवाहित है और बोकारो में है।
मेरे माता पिता का देहावसान हो चुका है। माँ का देहावसान 2014 में और पिता का 2019 में हुआ। दोनों का दाह संस्कार मैंने रसूलाबाद घाट, प्रयाग में किया।
अब मेरे पास साइकिल है। जिसे नित्य मैं 10-15 किमी चलाता हूं। मोबाइल के कैमरा से चित्र अंकित करता हूं। एक पॉकेट नोटबुक में काम लायक सामग्री नोट करता हूं। उनके आधार पर करीब 800-1000 शब्द लिखता हूं। मेरा लेखन सधा हुआ नहीं है। अटपटा भी है और भाषा भी शब्दों की कमी में छटपटाती है। फिर भी काम चल रहा है। मेरी अभिव्यक्ति ज्यादातर मेरे ब्लॉग के माध्यम से है।
अपने बारे में कभी कभी लगता है कि मुझमें बहुत सम्भावनायें हैं और कभी लगता है जितना कर लिया वही बहुत है। इन्हीं विचारों में फ्लिप-फ्लॉप होती जा रही है जिंदगी! 🙂
Narayan Tiwari hamare mama hain apke gaav ke.
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पान्डे जी आपको बहुत दिनो के बाद कुछ लाइनें लिख रहा हू / आयुर्वेद मे कुछ नयी शोध और कर चुका हू / चिकित्सा कार्य यानी प्रैक्टिस भी जरूरी है और इसलिये समय कम मिल पाता है / लेकिन साहित्य से जुडाव का मोह भी बना हुआ है /
मैने आयुर्वेद मे कुछ पुस्तके हिन्दी मे लिखी है जो इन्टरनेट पर पी०डी०एफ० फार्मेट मे फ्री उपलब्ध है / आयुर्वेद मे की गयी रिस्र्च के ऊपर यह पुस्तकें आधारित है / इसका डाउन्लोड लिन्क दे रहा हू /
http://www.slideshare.net/drdbbajpai/documents
कभी भदोही की तरफ आया तो आप्के दर्शन अवश्य करून्गा / कानपुर की तरफ आयें तो मुझसे मिलने का कार्यक्रम जरूर रखियेगा /
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धन्यवाद वाजपेयी जी.
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आपके फेसबुक पोस्ट बहुत अच्छे लगते हैं ।। ब्लॉग आज पहली बार खोला है ।। बहुत सुकून मिलता है ।।
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धन्यवाद, राहुल जी|
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Sir..aapki article padhi “Pitaji aur yaadein” is article ne meri bahoot sari puraani yaadein taza kar di…khaastaur pe aapke ghar ki tasweer ne, kabhi mera bhi aisa hi ghar hua karta tha…aaj khandhar me tabdeel ho chuka hai….
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लगता है यह बहुत से ग्रामीण परिवेश से आये लोगों की कहानी है। 😦
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