गांव देस की मिठाई दुकान। मैं नहीं समझता कि बहुत आमदनी होगी चिनियहवाँ (ज्यादा चीनी वाला) पेड़ा और ब्रेड पकौड़ा से। पर सुरेंद्र और उस जैसे गांवदेहात वाले यहां रहने के आराम और रोजगार की जरूरत के बीच झूलते रहते हैं।
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पद्मजा पाण्डेय के नये साल के ग्रीटिंग्स
इसमें चीनी पाण्डेय ने बहुत कुछ सीखा। अपने रोज के मिलने वाले, घर में काम करने वालों और आसपड़ोस के बच्चों से जुड़ाव सीखना एक सही बात है! गांव की समझ उससे मजबूत होती है।
सुंदर नाऊ
सिर पर बालों का बोझ सामान्य से ज्यादा होने पर अकल भी कुंद होती है – ऐसा अहसास मुझे होता है। अलबर्ट आइंस्टाइन के बारे में मेरी सोच है कि वे और भी जोरदार वैज्ञानिक होते अगर उनके पास नियमित आने वाला नाऊ होता। भले ही सुंदर की तरह सीधा सादा गंवई नाऊ होता!
रसूल हम्जातोव का त्सादा और यहां का गांव
रसूल हम्जातोव जैसी दृष्टि मेरी क्यों नहीं? अपने गांव को ले कर क्यों मैं छिद्रान्वेशी बनता जा रहा हूं। उसके लोगों, बुनकरों, महिलाओं, मन्दिरों, नीलगायों, नेवलों-मोरों में मुझे कविता क्यों नहीं नजर आती। नदी, ताल और पगडण्डियां क्यों नहीं वह भाव उपजाते?
रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी
माता-पिता ने उनका नाम रामसेवक रखा तो कुछ सोच कर ही रखा होगा। पौधों की देखभाल के जरीये ही (राम की) सेवा करते हैं वे! उनकी पत्नी को गुजरे दशकों हो गए हैं। बच्चे छोटे थे तो उनको पालने और उन्हें कर्मठता के संस्कार देने में सारा ध्यान लगाया।
बिखारी समझते हैं मोदी सब समाधान निकालेंगे
“वैसे मोदी बनारस के हैं। उन्हे वोट दिया है। तेज दिमाग नेता हैं। सब समझते हैं। बिखारी को यकीन है कि मोदी जरूर कोई न कोई काम उस जैसे के भले के लिये करेंगे।”