शिव जग जी भदोही में वाचमैन हैं। साइकिल पच्चीस किमी चला कर शाम को ड्यूटी पर जाते हैं और सवेरे यहां महराजगंज से अखबार लेते वापस लौटते हैं। एक दिन में 50किमी साइकिल चलाना!
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मूरत यादव और मिश्री पाल के साथ गपशप
घुमा फिरा कर मुझसे पूछते हैं – कितने लोगों को नौकरी दिया होगा रेल सेवा के दौरान?
बताने पर कि 3-4 को बंगलो पीयून रखा था; वे कहते हैं कि आपसे पहले मिले होते तो जिनगी तर गयी होती! तब भेंड़ी-गाय-भैस थोड़े पालनी पड़ती।
सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।
सुकुआर (नाजुक) हो गये हैं लोग। अब मेहनत नहीं करते। अब यह हाल है कि कुल्ला करने (खेत में हगने) भी मोटर साइकिल से जाने लगे हैं। ट्रेक्टर से खेती करते हैं। वह भी आलस से।
विस्थापित – न घर के न घाट के
अपने गांव के चमरऊट को मैं गरीब समझता था। पर इनकी दशा तो उनसे कहीं नीचे की है। उनके पास तो घर की जमीन है। सरकार से मिली बिजली, चांपाकल, सड़क और वोट बैंक की ठसक है। इन विस्थापितों के पास वह सब है? शायद नहीं।
आज की सुबह
घर पर आते आते थक जाता हूं मैं। एक कप चाय की तलब है। पत्नीजी डिजाइनर कुल्हड़ में आज चाय देती हैं। लम्बोतरा, ग्लास जैसा कुल्हड़ पर उसमें 70 मिली लीटर से ज्यादा नहीं आती होगी चाय। दो तीन बार ढालनी पड़ती है।
गाई क ल, भैंसिया से बुद्धी मोटि होई जाये!
देश की डेयरियां और लोग भैंस के दूध की बदौलत चल रहे हैं। अमूल – जो विश्व के बीस सबसे बड़ी डेयरियों में है; भैंस के दूध के बल पर है। अगर भैंस का दूध बुद्धि कुंद करता है तो अमूल को ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिये।