5-7 साल में जो डिजिटल विस्फोट हुआ है – गांवदेहात के स्तर पर भी; वह अभूतपूर्व है। गांवों की डिजिटली निरक्षर जनता की पटरी डिजिटल सुविधाओं से बिठाने के लिये संतोष गुप्ता जैसे लोगों की बहुत आवश्यकता है।
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रस्सी बनाने की मशीन – गांव की आत्मनिर्भर सर्क्युलर इकॉनॉमी का नायाब उदाहरण
मोटर साइकिल पर लदी वह गियर सिस्टम वाली रस्सी बुनने की मशीन, हैण्डल घुमाने वाला बच्चा और रस्सी बुनने वाला वयस्क – ये तीन मुख्य घटक थे। इन तीनों के योग से कितनी शानदार रस्सी बनाने की मोबाइल दुकान बन गयी थी।
साण्डा – धान की खेती
किसानों ने मुझे बताया कि साण्डा की पैदावार का धान ज्यादा स्वस्थ होता है; चावल के दाने बड़े होते हौं और धान की कुटाई में चावल टूटता बहुत कम है। पर साण्डा वाली खेती मेहनत मांगती है।
डीहबड़गांव में छोटी आईस्क्रीम फैक्ट्री
लगभग 15 लोगों को रोजगार मिलता है इस दो कमरे की फैक्ट्री में.
रघुबीर बिन्द का वर्मीकल्चर उद्यम
रघुबीर बिन्द जैसे लोग, जो गांव देहात में भी रोजगार के उभरते प्रकार को खोज-तलाश रहे हैं, भविष्य की आशा हैं।
पुस्तक कब पढ़ी मानी जाये?
रिटायरमेण्ट के बाद जब मित्र भी नहीं बचते (शहर के मित्र शहर में छूट गये, गांव के अभी उतने प्रगाढ़ बने नहीं) तो पठन ही मित्र हैं। दिन भर लिखा पढ़ने में बहुत समय जाता है। पर बहुत व्यवस्थित नहीं है पठन। गांव में अखबार वाला समाचारपत्र बड़ी मुश्किल से देता है। पत्रिकायें नहीं मिलतीं।Continue reading “पुस्तक कब पढ़ी मानी जाये?”