सरवा में रामदेव पीर बाबा के आज के मुकाम पर पंहुचने के पहले बुरा हुआ उनके साथ। रास्ता खराब था। सड़क पर गिट्टी उधड़ी हुई थी और बबूल के कांटे भी थे। एक जगह बबूल के कांटे चुभ गये पैर में।
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वागड़ से राणपुर के आगे
रामगिरि बाबा के पास दो घोड़े हैं। रामदेव बाबा के सभी स्थानों, मंदिरों में घोड़े पाले जाते हैं। उसका कारण है कि रामदेव पीर बाबा घोड़े पर ही सवारी किया करते थे। बाबा रामदेव के सभी चित्र घोड़े के साथ ही हैं।
धंधुका – कांवर यात्रा में पड़ा दूसरा रेल स्टेशन
प्रेमसागर दोपहर दो-तीन बजे धंधुका रेलवे स्टेशन पर आ गये थे। वहां खाली पड़े रेलवे स्टेशन के डॉर्मेट्री वाले रेस्ट हाउस में जिसमे चार बिस्तर हैं; प्रेमसागर को जगह मिली। स्टेशन पर बिजली पानी की सुविधा है। काम लायक फर्नीचर भी है।
माँ की याद आती ही है, आंसू टपकते हैं – प्रेमसागर
जिनके लिये इतना कठिन संकल्प लिया, उनकी याद आती है? – मेरा यह प्रश्न सुन कर प्रेमसागर की आवाज बदल जाती है। लगता है कि कुछ गले में फंस रहा हो – “भईया अकेला चलता हूं तो उनका याद, माँ का याद, बना ही रहता है। …आंसू टपकने लगते हैं।
प्रेमसागर – तारापुर से गलियाना, गुजरात में
रास्ते में लोग उनकी कांवर पदयात्रा देख कर सहायता करने में पीछे नहीं रहे। सवेरे चाय की दुकान पर चाय वाले सज्जन – सीताराम बाबा जी ने बुला कर चाय पिलाई और पैसे नहीं लिये। एक जगह कालू भाई और गिरीश भाई ने उन्हें रोक कर उन्हें चीकू और केले खिलाये। दोपहर में एक होटल में भोजन के लिये रुके और भोजन के बाद होटल वाले सज्जन ने भी इनसे पैसे नहीं लिये।
सहस्त्रार्जुन की राजधानी माहिष्मती (माहेश्वर)
लम्बी चौड़ी योजना बनाने वाला (पढ़ें – मेरे जैसा व्यक्ति) यात्रा पर नहीं निकलता। यात्रा पर प्रेमसागर जैसा व्यक्ति निकलता है जो मन बनने पर निकल पड़ता है। सो, प्रेमसागर मन बनने के साथ ही आगे की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ेंगे।