नवान्न


हम इतने प्रसन्न हो रहे हैं तो किसान जो मेहनत कर घर में नवान्न लाता होगा, उसकी खुशी का तो अंदाज लगाना कठिन है। तभी तो नये पिसान का गुलगुला-रोट-लपसी चढ़ता है देवी मैय्या को!

गा कर धन्यवाद दे गयी मैना


अचानक एक मैना आयी। अकेली। उसने मधुर गाना सुनाया, अपनी चोंच उठा कर ऊपर ताकते हुये। कुछ इस प्रकार से कि नमकीन और रोटी के लिये धन्यवाद ज्ञापन कर रही हो। अकेली मैना कुछ समय गा कर चली गयी।

सुनील ओझा जी और गाय पर निर्भर गांव का जीवन


इस इलाके की देसी गौ आर्धारित अर्थव्यवस्था पर ओझा जी की दृढ़ सोच पर अपनी आशंकाओं के बावजूद मुझे लगा कि उनकी बात में एक कंविक्शन है, जो कोरा आदर्शवाद नहीं हो सकता। उनकी क्षमता भी ऐसी लगती है कि वे गायपालन के मॉडल पर प्रयोग कर सकें और उसके सफल होने के बाद उसे भारत के अन्य भागों में रिप्लीकेट करा सकें।

बडवाह से माहेश्वर


नवम्बर का महीना और नदी घाटी का इलाका; कुछ सर्दी तो हो ही गयी होगी। आसपास को देखते हुये प्रेमसागर ने बताया कि दोनो ओर उन्हें खेती नजर आती है। जंगल नहीं हैं। गांव और घर भी बहुत हैं। लोग भी दिखाई देते हैं। रास्ता वीरान नहीं है।

इंदौर में और फिर चोरल की ओर


आज सवेरे पांच बजे प्रेमसागर चोरल के लिये रवाना हुये। चोरल इंदौर के अतिथि गृह से 36 किलोमीटर दूरी पर है। शुरू के बाईस-चौबीस किलोमीटर मालवा के पठार पर हैं। उसके बाद नर्मदा घाटी प्रारम्भ होती है।

गाडरवारा, खपरैल, मनीष तिवारी और नदियां


मनीष बताते हैं कि ये नदियां – और कई नदियां हैं जो नर्मदा माई में जा कर मिल जाती हैं – उनके बचपन में सदानीरा हुआ करती थीं। …अब उनमें में गर्मियों में पानी नहीं रहता; रेत रहती है।