उनकी बातों से लगा कि वे मेरी सिम्पैथी चाहते हैं पर अकेले जीने में बहुत बेचारगी का भाव नहीं है। राजमणि ने अकेले जिंदगी गुजारने के कुछ सार्थक सूत्र जरूर खोज-बुन लिये होंगे। इन सज्जन से भविष्य में मिलना कुछ न कुछ सीखने को देगा।
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आते रहा करो चच्चा!
त्रिपाठी जी ने कहा – “आपने अपने लेख में लिखा था कि अगली बार साइकिल से आयेंगे। आप साइकिल से आये होते तो और अच्छा लगता चच्चा! बाकी, आप आते रहा करें। आपका आना अच्छा लगता है और हम भी कुछ नया सीख सकते हैं।”
आयुष – कस्बे के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में
भाजपा सरकार आयुर्वेद के लिये प्रयास कर रही है। … पर यह भी है कि प्रयास सरकारी भर है। जो सुविधायें विकसित की गयी हैं, उनका पूरा दोहन नहीं हो रहा।
डेंगू, पपीता, बकरी और ड्रेगन फ्रूट
डेंगू का दोहन करने के लिये मैं क्या कर सकता हूं? मैं बकरी पालन तो कर नहीं सकूंगा। पर पपीता के पौधे लगा सकता हूं। उससे डेंग्फ्लेशन (Dengue-inflation) के समय मार्केट का दोहन कर शायद करोड़पति बन सकूं! 🙂
ओमप्रकाश का भूंजा – लो कैलोरी ऑप्शन
लोग सोशियो-कल्चरल व्यापकता अपना रहे हैं और मैं भुंजवा-भरसांय-भुने दाने की ओर लौटने के उपक्रम कर रहा हूं। मेरा मानना है कि दीर्घ जीवन के सूत्र में साइकिल चलाने और भूजा सेवन का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्ही के साथ जीवन शतायु होगा।
मनोज ऑटो वाला और मंदी
मैं तुरंत आकलन करने लगता हूं। दो सौ रुपये एक तरफ के हिसाब से आठ ट्रिप। दिन भर में 1600 सौ रुपये बने। उसमें से हजार के आसपास की कमाई हो ही जाती होगी। महीने की पच्चीस-तीस हजार की आमदनी। इस इलाके की सामान्य मजूरी के हिसाब से शानदार!