आखिर, खाने कमाने के लिये कोई व्यक्ति अपने घर से दूर नहीं जाना चाहता। अपने परिवार के साथ रहना चाहता है। भले ही पगार थोड़ी कम मिले।
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कोविड19 और आत्मनिर्भरता – रीता पाण्डेय की अतिथि पोस्ट
धन्यवाद प्रधानमंत्री जी को दिया जाये या कोविड19 के भय को; हर व्यक्ति घर में कुछ न कुछ काम करना सीख गया है। मेरे घर में सब काम में लगे हैं।
कोविड19, दहशत, और शहर से गांव को पलायन – रीता पाण्डेय की पोस्ट
यह दहशत शहर वालों का ही रचा हुआ है! वहां है प्रदूषण, भागमभाग, अकेलापन और असुरक्षा। गंदगी शहर से गांवों की ओर बहती है। वह गंदगी चाहे वस्तुओं की हो या विचारों की। गांव में अभी भी किसी भी चीज का इस्तेमाल जर्जर होने तक किया जाता है। कचरा बनता ही कम है।
आज हवाओं में भी जहर है – रीता पाण्डेय की अतिथि पोस्ट
कठिन समय तो है, पर कठिनाइयों में ही आदमी की क्षमता परखी जाती है। लड़े बिना कोई रास्ता न हो तो आदमी सरेण्डर करने की बजाय लड़ना पसंद करता है। जंग छिड़ी है पूरी दुनियां में और जीतना तो है हीl
डा. तपन मंडल के साथ – डाइट की प्लानिंग
डाक्टर मंडल का एक कथन मुझ पर काफी असर कर गया – “आपकी बॉडी अब तक मधुमेह की दवाओं के नियंत्रण में रही। कभी कुछ बदला भी तो थोड़े दवा के हेर फ़ेर से काम चल गया। पर अब उम्र ऐसी हो गई है कि आपका शरीर मधुमेह की दवाओं को चैलेंज कर रहा है।”
दस दिवसीय दाह संस्कार क्वारेण्टाइन – शोक, परंपरा और रूढ़ियां
पिताजी की याद में कई बार मन खिन्न होता है. पर उनकी बीमारी में भी जो मेरा परिवार और मैं लगे रहे, उसका सार्थक पक्ष यह है कि मन पर कोई अपराध बोध नहीं हावी हो रहा.