इस इलाके में कई लोग हैं जो बरसों से, बिला-नागा, गंगा स्नान करते रहे हैं। आज एक सज्जन मिले -श्री केदारनाथ चौबे। पास के गांव चौबेपुर के हैं। वृद्ध, दुबला शरीर, ऊर्जावान। द्वारिकापुर में एक टेकरी पर बनाये अस्थाई मन्दिर में भागवत कथा कहते हैं। कुछ सुनने वाले जुट जाते हैं। कभी कोई मेला –Continue reading “केदारनाथ चौबे का नित्य गंगा स्नान”
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हनक-ए-योगी
द्वारिकापुर गंगा किनारे गांव है। जब मैने रिटायरमेण्ट के बाद यहां भदोही जिले के विक्रमपुर गांव में बसने का इरादा किया था, तो उसका एक आकर्षण गंगा किनारे का द्वारिकापुर भी था। यह मेरे प्रस्तावित घर से तीन किलोमीटर दूर था और इस गांव के करार पर बसा होने के बावजूद गंगा तट पर आसानी सेContinue reading “हनक-ए-योगी”
बरसी का भोज और तिरानबे के पांड़े जी से मुलाकात
मैं बरसी का कार्यक्रम अटेण्ड करने गया था। अनुराग पाण्डेय बुलाने आये थे। अनुराग से मैं पहले नहीं मिला था। उनके ताऊ जी का देहावसान हुआ था साल भर पहले। आज बरसी थी। भोज का निमन्त्रण था। मैं सामान्यत: असामाजिक व्यक्ति हूं। मेरी पत्नीजी (गांव में बसने के बाद) काफी समय से कह रही हैंContinue reading “बरसी का भोज और तिरानबे के पांड़े जी से मुलाकात”
काला सिरिस (Albizia lebbeck) का सूखा पेड़
नेशनल हाइवे से दिखता था। सफ़ेद विशालकाय वृक्ष। अगर छोटा होता तो मैं उसे कचनार समझता। इस मौसम में कचनार फूलता है। उसके फूल बैंजनी होते हैं पर कोई कोई पूरे सफ़ेद भी होते हैं। जब फूल लदते हैं तो पत्तियां नहीं दिखतीं। पूरा वृक्ष बैंजनी या सफ़ेद होता है। पर यह कचनार नहीं था।Continue reading “काला सिरिस (Albizia lebbeck) का सूखा पेड़ “
व्यास जी और महाकाव्य सृजन
मार्च’5, 2017: सवेरे की साइकलिंग में हम चले जा रहे थे। राजन भाई और मैं। राजन भाई से मैने कह दिया था कि सड़क-सड़क चलेंगे। पगडण्डी पर साइकल चलाने में शरीर का विशिष्ट भाग चरमरा उठता है। पर राजन जी ने बीच में अचानक पगडण्डी पकड़ ली थी और मैं पीछे चले जा रहा था।Continue reading “व्यास जी और महाकाव्य सृजन”
समय, वर्ग, वर्ण और मैं
गांव में आने पर; उत्तर प्रदेश के सामन्ती अतीत की बदौलत; आसपास जातिगत विभाजन जबरदस्त दिखता है।