शराफत अली का चित्र

अपने ठिकाने पर बैठे काम करते शराफत अली।

शराफत अली पर मैने एक पोस्ट लिखी थी – शराफत अली ताला चाभी वर्क्स। उसके बाद मेरे एक सहकर्मी श्री राजेश उनसे यह अनुरोध करने गये थे कि वे मुझसे मिलना स्वीकार कर लें। पर शराफत अली नहीं मिले

मैने (बहुत कम) शराफत अली को उनकी दुकान पर देखा है। पर दफ्तर जाते हुये अपने मोबाइल का कैमरा तैयार रखता हूं, कि शायद शराफत अली को उसमें उतार सकूं। बहुधा तेज चलते वाहन में, या किसी और के बीच में आ जाने से, या कोण न बन पाने से अथवा शराफत अली के उपस्थित न होने से यह सम्भव नहीं हो सका। आज सात महीने से ऊपर हो गये, तब जा कर शराफत अली कैमरे में उतर सके!

जैसा मैने किया – सतत यत्न कर एक चित्र लेने का प्रयास करना, जो मैं कभी भी उतर कर उनसे मिल कर ले सकता था, वह क्यों होता है?

कोई उत्तर नहीं, बस एक खुराफात। शराफत अली के साथ खुराफात! :lol:

ऐसी छोटी खुराफातों से जाहिर होता है कि हम फन्ने खाँ नहीं बन सकते। हम छोटी छोटी खुराफातों के लायक ब्लॉगर भर हैं!

शराफत अली मेरा वह परिवेश है, जो चीन्हा है, पर अबूझा है। उपनिषद में अस्तित्व के अनेक स्तरों/तहों/कोषों की चर्चा है। इसी तरह अपने परिवेश के भी अनेक तह हैं। शराफत अली एक महत्वपूर्ण तह में आते हैं। एक पूरा समाज है जो मेहनत, जद्दोजहद और अपने आसपास की हार्मोनी (तारतम्यता) में जीता है। इस समाज का में दृष्टा मात्र हूं। जब इसको बूझ पाऊंगा, तो शायद एक सशक्त ब्लॉगर बन पाऊंगा। या शायद सशक्त लेखक। … पर यह सब हवाई बातें हैं। मेरी विश लिस्ट बहुत लम्बी है और लम्बोतरी होती जा रही है। :sad: :lol: 

[आप कहेंगे कि फोटो साफ नहीं आयी है। वह शायद मुझे बेहतर मोबाइल खरीदने को प्रेरित करे, बनिस्पत इसके कि मैं टहलते हुये शराफत अली जी के पास जा कर उनका चित्र लूं! :-) ]

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

30 thoughts on “शराफत अली का चित्र

  1. शराफ़त अली जी का फोटो लेने के लिये जो आपकी लगन रही उसके लिए आपको सादर प्रणाम, और जो परिणाम रहा उसके लिए आपको बधाइयाँ.
    आपकी खुराफात बिल्कुल उस बच्चे की तरह है, जिसे आम के बाग से आम चुरा कर खाने मे जो मज़ा मिलता है, वो खरीदे हुए आम मे नहीं, ना ही माँगे हुए मे.
    आत्म संतुष्टि किसी वास्तु की प्राप्ति मे नहीं, उसको प्राप्त किए जाने में, किए जाने वाले प्रयास पर निर्भर है.

    “शराफत अली मेरा वह परिवेश है, जो चीन्हा है, पर अबूझा है। उपनिषद में अस्तित्व के अनेक स्तरों/तहों/कोषों की चर्चा है। इसी तरह अपने परिवेश के भी अनेक तह हैं। शराफत अली एक महत्वपूर्ण तह में आते हैं। ”

    शराफ़त अली जी जैसे लोग हमारे और आपके भीतर का एक हिस्सा है. हमारे आपके भीतर छुपी सादगी, शालीनता, लगन, प्रेम, डर जैसे भावों का प्रतिबिंबित रूप हैं, जो समाज के आईने पाए जाते हैं. हम कई बार अपने भीतर के शराफ़त अली को नहीं पहचानते तो बाहर मिल जाते है, को की मैं तुम्हारा ही अस्तित्व हूँ.

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    1. यह आपने सही कहा। बहुधा हम जो बाहर तलाशते हैं, वह वही होता है जो अपने में देखना चाहते हैं!

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      1. शराफ़त अली जी जैसे लोग हमारे और आपके भीतर का एक हिस्सा है. हमारे आपके भीतर छुपी सादगी, शालीनता, लगन, प्रेम, डर जैसे भावों का प्रतिबिंबित रूप हैं, जो समाज के आईने पाए जाते हैं. हम कई बार अपने भीतर के शराफ़त अली को नहीं पहचानते तो बाहर मिल जाते है, को की मैं तुम्हारा ही अस्तित्व हूँ.
        ….यह कमेंट अच्छा लगा।

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        1. धन्यवाद देवेन्द्र जी,
          हम अपने भीतर के शराफ़त अली को नही पहचान पाते, या कहे खुद को समझ नही पाते. यह एक सत्या है.

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  2. ज़्यादातर ताले-चाभी वालों के बोर्ड ही दिखाई देते हैं, वो ख़ुद नहीं. हो सकता है कि ताले-चाभी कम ही खराब होते हों. शराफत अली को भी लगता है कि कुछ काम आ डटा है.

    अगर आप नया कैमरा या नए कैमरे वाला मोबाइल ले भी लेंगे तो चार दिन बाद वो भी पिछड़ा लगेगा.:) जब मैंने 5MB का कैमरा ख़रीदा था तो इससे ज़्यादा पिक्सेल का कैमरा बाज़ार में था ही नहीं, आज मोबाइल में ही 8.1 MB का कैमरा है. बैसे 5 MB काफी होता है, बस बात इतनी सी है कि जितना बड़ा चित्र हम प्रिंट करना चाहते हैं उतने ही अधिक MB का कैमरा हमें चाहिये..

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  3. हमारे गोरखपुर में गोलघर में एक दूकान थी (आज भी है) जिसका नाम था “महफूज़ शाकर (shocker) वाले” मेरे पिताजी जब भी मुझे लेकर वहां से गुज़रते थे… कहते थे कि देख नहीं पढ़ेगा तो ऐसे तेरे नाम की भी दूकान खोल दूंगा…

    वैसे फोटुवा तो साफे आई है…. मोबाइल को काहे दोस देते हैं…. ? ऐ गो… सोनी के कैमरवा खरीद लेहल जाई रउवा के…. सज्जी सौक त पूरा हो जाई… फोटुवा खीचे के…. मोबाइल त कौनो भी चssssली….

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  4. मुश्किल नहीं।
    एक पुराना बेकार हुआ ताला उठाइये और गाड़ी रुकवा कर शराफत को कहिए उस की चाबी बना दे। यदि यह काम वापसी में करें तो जब तक वह चाबी बनाए तब तक खड़े खड़े उस से बात की जा सकती है। वैसे वह वीआईपी है। एक बार जब मैं चाबी बनवा रहा था तो उस ने एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के भाव-ताव करने पर कहा था साहब आज समय नहीं है, और उसे रवाना कर दिया था।

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  5. फ़ोटो बड़ी चकाचक आई है। और मंहगा मोबाइल लेकर पैसा काहे के लिये बरबाद करना। चीजों (मोबाइल)से भी लगाव रखना सीखिये ।

    फ़न्ने खां बनने की राह हमेशा छोटी-छोटी खुराफ़ातों से ही निकलती है। :)

    है न यह फ़न्ने खां सलाह! :)

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    1. काहे की फन्ने खाँ! ऊपर अरविन्द मिश्र कह रहे हैं कि फुरसतिया सुकुल गुमनामी की बाट जोह रहे हैं। आपके पेट में दर्द नहीं होता?! :)

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      1. अब फ़न्ने खां कह दिया तो कह दिया। आपको मान भी लीजिये। न मानियेगा तब भी कौनो कष्ट नहीं होगा। :)

        हम किसी गुमनामी की बाट नहीं जोह रहे हैं। न ही हमें अपनी नौकरी से कोई शिकायत है। इसई नौकरी के बल पर हम चौड़े होकर जी रहे हैं शान से कैसे इसको टुच्चा कह सकते हैं।

        एक मेहनतकश आदमी हमेशा मेरी नजर में एक लफ़्फ़ाजी करते हुये इंसान से बेहतर होने की संभावना से युक्त होता है। :)

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  6. शराफ़त अली को साक्षात देखकर उनकी पिछली चर्चा भरपूर हुई, धन्यवाद! उपनिषद में अस्तित्व के अनेक स्तरों/तहों/कोषों की चर्चा आगे सुनने की इच्छा है। किसी अगली पोस्ट में कृतार्थ कीजिये, आभार।

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  7. क्या रोना ज्ञान जी जो और जहाँ तक काबिलियत हमारी होती है हम वही तो बन पाते हैं-हमसे शराफत अली ज्यादा पापुलर है -टशन वाला है ..क्या पता अन्दर वर्ल्ड का आदमी हो ..जो भी हो शरलक होम्स या अगाथा क्रिस्टी या फिर गार्डनर के प्लाट का एक तगड़ा पात्र तो है ही वो …हमें साली ये नौकरी इत्ती प्यारी हो चुकी है कि बल भर गरिया भले लें इसे पर यह टुच्ची चीज नहीं छूट रही तो फिर चाहें ज्ञानदत्त जी हों या डॉ अरविन्द मिश्र या फ़ुरसतिया शुक्ल सभी गुमनामी की बाट ही जोह रहे हैं …..शराफत को तो फिर भी लोग आगे भी शराफत से याद करते रहेगें !

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    1. कहते हैं कि साली घरवाली से प्यारी होती है… अब वह चाहे नौकरी हो या छोकरी :)

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  8. दृष्टा हो पाना ही बड़ी बात है….बूझ लिया तो बुद्ध हो जायेंगे।
    ..शराफत अली से मिलिए…फोटू मत खींचिए…एक ताले की चाभी बनवाइये। तुम्हारे बारे में लिखा हूँ छोड़कर और ढेर सारी बातें कीजिए। आनंद आयेगा।

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  9. आपकी विश लिस्‍ट के कारण ही एक अंजान, जो स्‍वयं को ज्ञानदत्‍त बताता है, से सहज तारतम्‍य बन जाता है.

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