1 जून 2023
प्रेमसागर को नकटे हनुमान जी के यहां रहने को जगह मिली थी। पता नहीं “नकटे” का क्या अभिप्राय है? हनुमान जी की प्रतिमा पर नाक तो सामान्य दिखती है। शायद ध्यानाकर्षण के लिये उल्टे सुल्टे नाम रखने का रिवाज है। भारत में ठग्गू के लड्डू होते हैं; बदनाम कुल्फी होती है; रामप्यारी चाय होती है तो नकटे हनुमान जी क्यों नहीं हो सकते? ईश्वर के साथ सख्य भाव और हंसी मजाक केवल हिंदू धर्म में ही होता है शायद। बाकी सब में तो मानव ईश्वर का दास या गुलाम मात्र है।

सवेरे वहां से पुजारी जी ने स्नान कर चाय बनाई और प्रेमसागर को पिला कर ही रवाना किया। आज तेजी से ज्यादा दूरी पार करने के मूड में थे, पर एक घटना घट गयी। एक चरखी उड़ते हुये सामने से आती जीप से टकरा कर घायल हो कर गिर पड़ी। प्रेमसागर के उसे उठा कर सड़क किनारे रखा। किसी तरह अंजुली और पत्तों का दोना बना कर उसे पानी पिलाया। आधा घण्टा इंतजार किया। जब लगा कि कुछ समय बाद वह कामलायक स्वस्थ हो जायेगी तो आगे की यात्रा चालू की। “अब भईया उस बेचारी चिड़िया को यूं ही सड़क बीच छोड़ कर तो चला नहीं जा सकता था।”

“इस इलाके में स्वतंत्रता सेनानियों और शहीद सैनिकों की बड़ी इज्जत है भईया। जगह जगह उनकी मूर्तियां लगाई गयी हैं। एक फोटो मैंने आपको भेजी भी है।” वह फोटो किसी शौर्यचक्र विजेता शहीद खिल्लू राम मीणा की प्रतिमा की है। उस स्थल का कोई दुरुपयोग न हो, इसके लिये कक्ष को जालीदार जंगले से कवर भी किया हुआ है।
एक मैडीकल दुकान – मास्टर मैडीकल स्टोर – से कोई पेन किलर खरीदा तो दुकान वाले सज्जन गौरव शर्मा जी ने प्रेमसागर से पैसा नहीं लिया। पानी अलग से पिलाया दवाई खाने के लिये। संत की वेशभूषा का प्रताप है। प्रेमसागर का यह आदर सत्कार सुन कर मुझे भी लगता है कि एक जोड़ा गेरुआ लबादा अपने लिये सिलवा लूं। वैसे सिलवा भी लिया होता, पर मेरी पत्नीजी को कत्तई पसंद नहीं है। लिहाज करना ही पड़ता है। प्रेमसागर की तरह छुट्टा पदयात्रा कर रहा होता तो जरूर करता। शायद प्रवचन आदि दे कर अपनी झांकी भी जमाता। पर जो नहीं होना है उसकी अटकल लगाने से क्या फायदा?! 😀

उसके बाद मौसम बदला। पानी भी बरसा। प्रेमसागर की तेज चल कर ज्यादा दूरी तय करने की इच्छा पूरी न हो सकी। आज दृश्य बदला हुआ था। पहाड़ियां थीं। कहीं कहीं पतली नदी सी भी दिखी। रास्ते में जल जलपान की दुकानें या आतिथ्य करने वालों के घर भी नहीं पड़े। शाम के समय वे नटिनी का बारां के पास पंहुचे। वहां गुर्जर प्रतिहार समुदाय का देवनारायण मंदिर है। चित्र में परिसर काफी बड़ा लगता है। सुविधा सम्पन्न। पर प्रेमसागर को बताया गया कि वहां जाने के लिये एक नदी पार पुल पार करना होता है। उसपर बहुत से बंदर रहते हैं। जो स्थानीय हैं, वे तो जानते हैं और आते जाते हैं पर बाहरी को वे तंग करते हैं। वहां जाने की बजाय एक मिष्टान्न भण्डार और रेस्तरां वाले सज्जन ने प्रेमसागर को अपने यहां रोक लिया।

बाबा प्रेमदास स्वीट्स वाले बंधु ने प्रेमसागर के लिये चारपाई गद्दा, ओढ़ना आदि की व्यवस्था कर दी। “भईया छेना की मिठाई जिसे कलाकंद कहते हैं यहां वह बहुत बढ़िया थी। वह हमें ‘बलबस्ती (जबरी आग्रह कर)’ खिलाई। और नहीं तो एक पाव खाई होगी मैंने।”
गेरुआ-लाल वस्त्र का नफा है! एक पाव कलाकंद खाने को मिल रहा है! यहां मुझे डिनर में मात्र एक रोटी-सब्जी! अगर प्रेमसागर की पदयात्रा में दस पंद्रह परसेण्ट मेरे डियाक का भी कण्ट्रीब्यूशन है तो कलाकंद का एक पीस तो मेरे हिस्से भी आना था! 😆



रेस्तरां के मालिक के साथ। कलाकंद की मिठाई।
यह जगह – नटिनी का बारां, देवनारायण मंदिर और बाबा प्रेमदास की मिठाई की दुकान सरिस्का बाघ अभयारण्य की बफर जोन में आता है। इस सड़क के दक्षिण में बाघ विचरण का इलाका है। बाघ के अलावा यहां चीतल, सियार, साम्भर, बघेरे और जंगली बिल्लियां भी हैं। सरिस्का में बाघ इस सदी में रणथम्भोर अभयारण्य से लाये गये हैं। अब उनकी संख्या पच्चीस हो गयी है।

प्रेमसागर का डियाक लेखन का यह नफा है – अन्यथा मैं सरिस्का के बारे में यह जानकारी कभी नहीं जुटाता या जानता। इस अभयारण्य के बारे में एक दो पुस्तकें भी चुनीं मैंने, पर जब फ्री में कामलायक जानकारी मिल गयी तो उन्हें खरीदने की जहमत नहीं उठाई। वैसे भी वे पुस्तकें किण्डल पर नहीं कागज पर हैं। उनकी डिलिवरी जब तक मुझे होगी, प्रेमसागर इस फेज की अपनी यात्रा सम्पन्न कर चुके होंगे!
मुझे अपनी जानकारी प्रेमसागर की गति के साथ मैच करनी है। 🙂
इस स्थान से श्री अम्बिका शक्तिपीठ चालीस किमी दूर है। एक दिन में शायद वह दूरी तय कर लें प्रेमसागर।
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |