सरिस्का अभयारण्य के बगल से


1 जून 2023

प्रेमसागर को नकटे हनुमान जी के यहां रहने को जगह मिली थी। पता नहीं “नकटे” का क्या अभिप्राय है? हनुमान जी की प्रतिमा पर नाक तो सामान्य दिखती है। शायद ध्यानाकर्षण के लिये उल्टे सुल्टे नाम रखने का रिवाज है। भारत में ठग्गू के लड्डू होते हैं; बदनाम कुल्फी होती है; रामप्यारी चाय होती है तो नकटे हनुमान जी क्यों नहीं हो सकते? ईश्वर के साथ सख्य भाव और हंसी मजाक केवल हिंदू धर्म में ही होता है शायद। बाकी सब में तो मानव ईश्वर का दास या गुलाम मात्र है।

घायल चरखी

सवेरे वहां से पुजारी जी ने स्नान कर चाय बनाई और प्रेमसागर को पिला कर ही रवाना किया। आज तेजी से ज्यादा दूरी पार करने के मूड में थे, पर एक घटना घट गयी। एक चरखी उड़ते हुये सामने से आती जीप से टकरा कर घायल हो कर गिर पड़ी। प्रेमसागर के उसे उठा कर सड़क किनारे रखा। किसी तरह अंजुली और पत्तों का दोना बना कर उसे पानी पिलाया। आधा घण्टा इंतजार किया। जब लगा कि कुछ समय बाद वह कामलायक स्वस्थ हो जायेगी तो आगे की यात्रा चालू की। “अब भईया उस बेचारी चिड़िया को यूं ही सड़क बीच छोड़ कर तो चला नहीं जा सकता था।”

“इस इलाके में स्वतंत्रता सेनानियों और शहीद सैनिकों की बड़ी इज्जत है भईया। जगह जगह उनकी मूर्तियां लगाई गयी हैं। एक फोटो मैंने आपको भेजी भी है।” वह फोटो किसी शौर्यचक्र विजेता शहीद खिल्लू राम मीणा की प्रतिमा की है। उस स्थल का कोई दुरुपयोग न हो, इसके लिये कक्ष को जालीदार जंगले से कवर भी किया हुआ है।

एक मैडीकल दुकान – मास्टर मैडीकल स्टोर – से कोई पेन किलर खरीदा तो दुकान वाले सज्जन गौरव शर्मा जी ने प्रेमसागर से पैसा नहीं लिया। पानी अलग से पिलाया दवाई खाने के लिये। संत की वेशभूषा का प्रताप है। प्रेमसागर का यह आदर सत्कार सुन कर मुझे भी लगता है कि एक जोड़ा गेरुआ लबादा अपने लिये सिलवा लूं। वैसे सिलवा भी लिया होता, पर मेरी पत्नीजी को कत्तई पसंद नहीं है। लिहाज करना ही पड़ता है। प्रेमसागर की तरह छुट्टा पदयात्रा कर रहा होता तो जरूर करता। शायद प्रवचन आदि दे कर अपनी झांकी भी जमाता। पर जो नहीं होना है उसकी अटकल लगाने से क्या फायदा?! 😀

एक मैडीकल दुकान – मास्टर मैडीकल स्टोर – से कोई पेन किलर खरीदा तो दुकान वाले सज्जन गौरव शर्मा जी ने प्रेमसागर से पैसा नहीं लिया।

उसके बाद मौसम बदला। पानी भी बरसा। प्रेमसागर की तेज चल कर ज्यादा दूरी तय करने की इच्छा पूरी न हो सकी। आज दृश्य बदला हुआ था। पहाड़ियां थीं। कहीं कहीं पतली नदी सी भी दिखी। रास्ते में जल जलपान की दुकानें या आतिथ्य करने वालों के घर भी नहीं पड़े। शाम के समय वे नटिनी का बारां के पास पंहुचे। वहां गुर्जर प्रतिहार समुदाय का देवनारायण मंदिर है। चित्र में परिसर काफी बड़ा लगता है। सुविधा सम्पन्न। पर प्रेमसागर को बताया गया कि वहां जाने के लिये एक नदी पार पुल पार करना होता है। उसपर बहुत से बंदर रहते हैं। जो स्थानीय हैं, वे तो जानते हैं और आते जाते हैं पर बाहरी को वे तंग करते हैं। वहां जाने की बजाय एक मिष्टान्न भण्डार और रेस्तरां वाले सज्जन ने प्रेमसागर को अपने यहां रोक लिया।

बाबा प्रेमदास स्वीट्स वाले बंधु ने प्रेमसागर के लिये चारपाई गद्दा, ओढ़ना आदि की व्यवस्था कर दी। “भईया छेना की मिठाई जिसे कलाकंद कहते हैं यहां वह बहुत बढ़िया थी। वह हमें ‘बलबस्ती (जबरी आग्रह कर)’ खिलाई। और नहीं तो एक पाव खाई होगी मैंने।”

गेरुआ-लाल वस्त्र का नफा है! एक पाव कलाकंद खाने को मिल रहा है! यहां मुझे डिनर में मात्र एक रोटी-सब्जी! अगर प्रेमसागर की पदयात्रा में दस पंद्रह परसेण्ट मेरे डियाक का भी कण्ट्रीब्यूशन है तो कलाकंद का एक पीस तो मेरे हिस्से भी आना था! 😆

रेस्तरां के मालिक के साथ। कलाकंद की मिठाई।

यह जगह – नटिनी का बारां, देवनारायण मंदिर और बाबा प्रेमदास की मिठाई की दुकान सरिस्का बाघ अभयारण्य की बफर जोन में आता है। इस सड़क के दक्षिण में बाघ विचरण का इलाका है। बाघ के अलावा यहां चीतल, सियार, साम्भर, बघेरे और जंगली बिल्लियां भी हैं। सरिस्का में बाघ इस सदी में रणथम्भोर अभयारण्य से लाये गये हैं। अब उनकी संख्या पच्चीस हो गयी है।

सरिस्का का नक्शा वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी की साइट का स्क्रीनशॉट है।

प्रेमसागर का डियाक लेखन का यह नफा है – अन्यथा मैं सरिस्का के बारे में यह जानकारी कभी नहीं जुटाता या जानता। इस अभयारण्य के बारे में एक दो पुस्तकें भी चुनीं मैंने, पर जब फ्री में कामलायक जानकारी मिल गयी तो उन्हें खरीदने की जहमत नहीं उठाई। वैसे भी वे पुस्तकें किण्डल पर नहीं कागज पर हैं। उनकी डिलिवरी जब तक मुझे होगी, प्रेमसागर इस फेज की अपनी यात्रा सम्पन्न कर चुके होंगे!

मुझे अपनी जानकारी प्रेमसागर की गति के साथ मैच करनी है। 🙂

इस स्थान से श्री अम्बिका शक्तिपीठ चालीस किमी दूर है। एक दिन में शायद वह दूरी तय कर लें प्रेमसागर।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

रामनगर, सब्जी मण्डी और सुरेश पटेल


सुरेश पटेल ने गंगा नदी का चित्र भेजा। विस्तार लिये जल। पूछने पर बताया कि आजकल खेत से गोभी और टमाटर निकल रहा है। सवेरे सवेरे सब्जी खेत से निकाल कर रामनगर सब्जी सट्टी जाते हैं। गंगा पार कर जाना होता है। वहीं का चित्र है।

सुरेश पटेल ने गंगा नदी का चित्र भेजा।

सब्जी उगाना, सवेरे सवेरे खेत से निकाल कर मण्डी जाना। मण्डी की किचिर पिचिर। मोलतोल। कुल पैंतीस चालीस किलोमीटर का आना-जाना। और उस दौरान गंगा नदी पार करना रामनगर के पुल से – मुझे रोचक लगा। सुरेश पटेल के लिये तो वह रुटीन होगा। शायद उसमें ड्रजरी लगती हो, रस न आता हो। पर मेरे लिये तो वह आकर्षक है।

गर्मी का मौसम है। घर से निकलना नहीं होता। फिर भी लोग निकलते हैं, काम करते हैं। हाट बाजार की गहमागहमी का अनुभव करते हैं। मैंने वह दशकों से नहीं किया। करने के प्रयास में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। एक दिन के लिये जाना हो तो तीन चार दिन अशक्तता में नष्ट हो जाते हैं। मेरे लिये डियाक लेखन – डिजिटल यात्रा कथा लेखन ही उपयुक्त है। लोगों के अनुभव, उनके चित्र और उसके लिये पठन पाठन का सप्लीमेण्ट – यह सब ले कर जो लिखने में बनता है, वह किसी ट्रेवलॉग से खराब नहीं होता। यह जरूर है कि यात्रा खुद की जाये तो उस ट्रेवलॉग का डियाक कोई सानी नहीं। पर मेरे लिये यह भी खराब नहीं!

मैंने सुरेश से कहा कि वे रामनगर सट्टी के कुछ चित्र भेजें। आज वह उन्होने किया।

मैंने सुरेश से कहा कि वे रामनगर सट्टी के कुछ चित्र भेजें। आज वह उन्होने किया।

“रामनगर की मंडी है बाउजी यहां माल की बोली लगाने के बाद ही बिकता है।
यहां के आढतिए भगेलू मौर्या और राम लखन मौर्य है जिनके आढ़त पर हम अपना सब्जी लेकर आते हैं।” – सुरेश ने टिप्पणी भेजी चित्रों के साथ।

भगेलू मौर्य और रामलखन मौर्य के नाम से मुझे कछवां सब्जी मण्डी के बर्फी और रंगीला सोनकर की याद हो आयी। मैं वहां सब्जी मण्डी गया था। कई साल पहले। सुरेश जी को मैंने भगेलू और रामलखन मौर्य जी के बारे में चित्र और जानकारी देने का अनुरोध किया।

सुरेश वह नौजवान हैं जो गांव से शहर के सेतु की तरह हैं। जद्दोजहद करने वाले, अपने बूते पर अपना भविष्य गढ़ने वाले और उस उपलब्धि से आने वाली ऐंठ से पूरी तरह मुक्त। सुरेश की जिंदगी में एक दिन – वह लेखन मुझे अच्छा लगेगा।

सुरेश के इनपुट्स पर डियाक के प्रयोग शानदार होंगे। पाठक मिलें, न मिलें; मेरे लिये तो वह अपने आप को विस्तृत करने, नये आयाम जोड़ने का एक जरीया होगा। … भविष्य का पठन पाठन, लेखन का एक तरीका बन रहा है! और उसके एक महत्वपूर्ण तत्व की तरह हो सकते हैं सुरेश!

अभी तो मुझे उनकी सब्जी उगाने और उसे मण्डी तक ले जाने की गतिविधियों पर और जानकारी चाहिये। क्या लागत है सब्जी की, क्या भाव हैं – थोक और खुदरा। कौन कमा रहा है – किसान या आढ़तिया? किसका रिस्क ज्यादा है? कौन सब्जी उगाता है, कौन सब्जी ले जाता है, कौन सब्जी से खेलता है?! बहुत से प्रश्न हैं।

मैंं रामनगर सब्जीमण्डी पर सर्च करता हूं तो पांच सात वीडियो ठेलता है गूगल। घटिया वीडियो – जिनमें हर कदम पर खुरदरी आवाज में बंदे “आप मुझे सब्स्क्राइब करें, जानकारी के लिये अंत तक देखें” जैसे जुमले बोलते हैं और हर तीस सेकेंड में पॉप अप होते सब्स्क्राइब बटन आते हैं। कुछ काम की जानकारी नहीं उनमें। वीडियो शूटिंग का स्तर भी घटिया।

देखें, क्या बताते हैं सुरेश! उन वीडियो से कहीं बेहतर जानकारी देंगे वे! 🙂

जय हो!


राजस्थान – ग्रामीण गुर्जर लोगों के इलाके से


31 मई 2023

नगर या बृजनगर भरतपुर जिले का पश्चिमी किनारा होगा। यहाँ भी प्रेमसागर को खण्डेलवाल समाज की धर्मशाला में जगह मिल गयी। सस्ते में। तीस-इकतीस मई की रात वहां गुजारी। आज सवेरे जल्दी निकलना नहीं हो पाया। खण्डेलवाल धर्मशाला का मेन गेट छ बजे खुलता है।

नगर से निकलते ही मोर, ऊंटगाड़ी, भिटोरा (उपड़ऊर – उपले का ढेर) दिखे।

आगे मुख्य मार्ग से अलग चले प्रेमसागर। नगर से निकलते ही मोर, ऊंटगाड़ी, भिटोरा (उपड़ऊर – उपले का ढेर) दिखे। भिटोरा उत्तरप्रदेश के डोम के आकार का नहीं, चौकोर होता है और उसपर गोबर के लेप में सुंदर चित्रकारी भी दीखती है। यह बनाने का काम महिलायें ही करती होंगी। बहुत कलात्मक हाथ होंगे उनके। उपले रखने की साधारण सी जगह को भी सुंदर बनाना यहां उत्तरप्रदेश की महिलाओं को नहीं आता।

भिटोरा चौकोर होता है और उसपर गोबर के लेप में सुंदर चित्रकारी भी दीखती है। यह बनाने का काम महिलायें ही करती होंगी। बहुत कलात्मक हाथ होंगे उनके।

ग्रामीण इलाका गुर्जर बहुल है। लोगों ने प्रेमसागर का वेश देख कर और यह जान कर कि वे लम्बी पदयात्रा पर निकले हैं; उनका अच्छा स्वागत सत्कार किया। तख्त और फर्श पर बैठे ग्रामीण, हुक्का बारी बारी से गुड़गुड़ाते हुये। प्रेमसागर को हुक्के की दरकार तो नहीं होगी, पर उन्हें जलपान अच्छे से कराया ही होगा। जहां भी स्वागत सत्कार होता है, वहां के चित्र बड़ी उदारता से मेरे पास भेजा करते हैं प्रेमसागर। ध्यान से देखने पर ग्रामीण जीवन की विविधता नजर आती है। एक व्यक्ति तिलक लगाये है। एक पगड़ी पहने। जिन्होने पगड़ी नहीं रखी उनके कांधे पर गमछा है। शायद गमछा ही पगड़ी बन जाता हो।

एक ही हुक्के से बारीबारी गुड़गुड़ाते लोग। क्या बात कर रहे होंगे? स्थानीय राजनीति की? गर्त में जाती नई पीढ़ी की? या प्रेमसागर की यात्रा की। चित्र के अलावा बहुत इनपुट नहीं मिलते। प्रेमसागर जितनी सरलता से फोटो भेजते हैं, उतनी कलात्मकता से उसका विवरण नहीं देते। उन्हें मैंने इत्मीनान से ऑडियो मैसेज देने को कहा है। पर कोई काम का सम्प्रेषण नहीं लगता। केवल कुछ शब्द, जो लिखे जाने थे, वे ऑडियो रूप में बोले जाते हैं।

जगह का नाम बताया – बाजाहेड़ा। नक्शे में वह बजहेड़ा लिखा है। गूगल मैप हिंदी से अंगरेजी नहीं बनाता। अंगरेजी से हिंदी बनाता है। प्रेमसागर भी कुछ कुछ गूगल जैसे हैं। शब्दों के हिज्जे और ध्वनि को सही सही री-प्रोड्यूस नहीं करते।

आगे दोपहर होते समय एक अन्य गांव में फूल सिंह जी उन्हे भोजन कराते हैं। गांव का नाम भेजा है सिकाहेरा। पता नहीं वह सिकाहेरा है या कुछ और। गूगल मैप में लगभग उसी जगह पर गांव दिखता है – सिताहरा – Sitahara. फूल सिंह जी सम्पन्न ग्रामीण नजर आते हैं। पैण्ट कमीज पहने हैं। घर में सोफा है। प्रेमसागर को स्टील की थाली, कटोरी में भोजन और ग्लास तथा पीतल के लोटे में जल रख कर जिमाया गया है।

सिताहरा में फूल सिंह जी के यहां भोजन

मैं गुर्जर लोगों को रुक्ष और अभद्र टाइप मानता था। वह जाति जो कायदे कानून अपने हिसाब से बनाती मानती हो। पर प्रेमसागर जी की इस यात्रा में उनके स्नेह और आतिथ्य ने मेरी धारणा बिल्कुल बदल दी है। बजहेड़ा और सिताहरा और उस जैसे अन्य गुर्जर गांवों की जय हो!

भोजन के बाद प्रेमसागर कठूमर-लक्ष्मणगढ़ मार्ग पर चले। वहां भी वैसे ही मेजबानी के चित्र हैं। एक जगह लोग उन्हें ठण्डई जैसा कोई पेय पिलाते दीख रहे हैं। रास्ते भर राजस्थान की गर्मी में पीने के पानी का इंतजाम है। पानी का कण्डाल और मटके। पानी की टंकी आदि। वनस्पति बदल रही है। रेगिस्तानी; मोटे तने में पानी अपने में जमा करने वाली केक्टस वेराइटी की वनस्पति नजर आती है। राजस्थान अपना रंग दिखा रहा है। शायद सीकर जिला है। शेखावाटी इलाका।

जगह जगह पेय जल का इंतजाम है।

गांव में गुर्जर और मेव हैं। कस्बों, बड़े गांवों में बनिया और बाभन। हो सकता है राजपूत और जाट भी हों। जातिगत बदलाव पर प्रेमसागर के बहुत इनपुट्स नहीं हैं। मेव तो उनके लिये मुसलमान ही हैं। उनके इतिहास और वर्तमान से अछूती रहती है प्रेमसागर की यात्रा। आगे कई गांव दिखते हैं जहां मुस्लिम आबादी है। लक्ष्मणगढ़ के पास एक मेव मस्जिद भी नजर आती है। मेव आबादी हरियाणा, भरतपुर, सीकर और अलवर में है। इनका इतिहास राजपूतों द्वारा 1200-1700 के बीच इस्लाम स्वीकार करने का है। इनमें कई रस्म रिवाज अभी भी सवर्ण हिंदुओं के हैं। मसलन एक ही गोत्र में विवाह नहीं होना और नाम में भी हिंदू प्रतीकों का प्रयोग – रामचंद्र खान जैसे नाम। अब हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य के कारण धार्मिक जड़ता शायद आई हो। पर प्रेमसागर की इस यात्रा में उनसे सम्पर्क नहीं होता है। प्रेमसागर की वेशभूषा भी ऐसी है कि कोई अन्यधर्मी शायद ही उनके पास फटके!

भोजन के बाद प्रेमसागर कठूमर-लक्ष्मणगढ़ मार्ग पर चले। वहां भी वैसे ही मेजबानी के चित्र हैं। एक जगह लोग उन्हें ठण्डई जैसा कोई पेय पिलाते दीख रहे हैं। … प्रेमसागर की वेशभूषा भी ऐसी है कि कोई अन्यधर्मी शायद ही उनके पास फटके!

मुझे लगता था कि लक्ष्मणगढ़ बड़ी जगह है। यहां प्रेमसागर को रात गुजारने की जगह मिल जायेगी। पर वैसा हुआ नहीं। खण्डेलवाल धर्मशाला में व्यवस्था अच्छी नहीं थी। शौचालय में दुर्गंध का साम्राज्य था। एक दो मंदिरों ने ठहरने की जगह होने से इंकार कर दिया। “भईया, वह मंदिर कैसा जहां साधू या पदयात्री को रुकने की जगह न हो? भगवान वहां नहीं रहते होंगे।” – प्रेमसागर ने कहा। राजस्थान के सामान्य आतिथ्य को देख कर प्रेमसागर की अपेक्षायें बढ़ गयी हैं शायद। अन्यथा देश के बहुत हिस्सों में मंदिरों में और शक्तिपीठों में भी उन्हें टके सेर जवाब मिल चुका है। ईश्वर या माता वहां भी नहीं होंगे?

लक्ष्मणगढ़ बाजार से गुजरते हुये।

अंत में लक्ष्मणगढ़ के चार किमी आगे एक हनुमान मंदिर (नकटे हनुमान मंदिर) में उन्हें रहने को जगह मिली। पुजारी जी ने उनके भोजन का भी इंतजाम किया। जब प्रेमसागर मंदिर में पंहुच कर अपना परिचय पुजारी जी को दे रहे थे, तभी मैंने प्रेमसागर को फोन किया था। फोन का बटन उन्होने ऑन कर दिया या गलती से हो गया होगा। मैं उनकी पुजारी जी से बातचीत सुन पाया। रात गुजारने की जगह तलाशते पदयात्री के तर्क बहुत रोचक थे।

प्रेमसागर कह रहे थे – “आप मंदिल के पुजारी जी हैं? पुजारी जी हम बारह ज्योतिर्लिंग, चार धाम की पदयात्रा करने के बाद इक्यावन शक्तिपीठों की पदयात्रा पर हैं। अब तक तेईस शक्तिपीठ जा चुके हैं। आगे की यात्रा में एक रात गुजारने के लिये हमने सोचा कि जब हनुमान जी यहां हैं तो किसी और मंदिर की क्या जरूरत। हनुमान जी तो अस्थान देंगे ही। … आप मेरा आधार नम्बर नोट कर सकते हैं। और मेरे बारे में ज्यादा जानकारी के लिये गूगल सर्च कर सकते हैं। शक्तिपीठ पदयात्रा के नाम से सर्च करने पर मेरे बारे में पूरी यात्रा का विवरण मिल जायेगा।…”

नकटे हनुमान मंदिर में प्रेमसागर

पांव ठोंक कर, आवाज में आत्मविश्वास दिखाते हुये बात कर रहे थे प्रेमसागर। गूगल सर्च, ब्लॉग के ट्रेवलॉग, आधार नम्बर आदि की जहमत नहीं उठाई पुजारी जी ने। आसानी से रात गुजारने की जगह मिल गयी प्रेमसागर को।

… और तब मुझे समझ आया कि अपनी यात्रा को सुगम बनाने के लिये किस तरह उपयोग करते हैं मेरे डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन का! कई जगह परिचय देने में ब्लॉग का प्रयोग कर उनकी झांकी जमी होगी। कितनी जगह सरलता से बिना पैसे या कंसेशन पर उन्हें सुविधायें मिली होंगी! पदयात्रा का महत यत्न तो उनका ही है, पर रुपया में दो-चार आना क्रेडिट ब्लॉग को भी मिल सकता है! 😆

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

राजस्थान में – प्याऊ, बबूल और जलेबा


30 मई 2023

डीग में खण्डेलवाल धर्मशाला में रुके थे प्रेमसागर। पहले चौरासी कोस की परिक्रमा के दौरान भी इसी धर्मशाला में ठहर चुके थे। सस्ता भी था वहां रुकना और आत्मीयता भी थी वहां लोगों से। यह गुण प्रेमसागर में प्रचुर है – लोगों से आत्मीयता बना लेना और उस नेटवर्किंग का अपनी पदयात्रा के लिये भरपूर उपयोग कर लेना। यह गुण उनकी रुक रुक कर बोलने, स्थानों और लोगों ने नाम गड्डमड्ड कर देने और भूगोल की अपर्याप्त जानकारी आदि की कमियों को बखूबी कवर-अप कर लेती हैं।

धर्मशाला पर बड़ा अच्छा वाक्य लिखा था – श्री खण्डेलवाल वैश्य समाज आपका हार्दिक स्वागत करता है।

सवेरे देरी से निकलना हुआ। करीब सात बजे। एक घण्टे बाद उन्होने बताया कि करीब चार-पांच किमी चल चुके हैं और एक “ठाकुर साहब” ने उन्हें बुला कर आलू के परांठे के साथ चाय का नाश्ता कराया है। उनका नाम बताया चौधरी महेंद्र सिन्ह। चित्र में लगता है कि महेंद्र सिंह जी का कोई सड़क किनारे रेस्तरां है। पास में एक महिला भी बैठी हैं। शायद महेंद्र सिंह जी की पत्नी होंगी। “भईया, ठाकुर साहब के खिलाने से दिन के दो बजे तक का तो काम हो गया!”

एक “ठाकुर साहब” ने उन्हें बुला कर आलू के परांठे के साथ चाय का नाश्ता कराया है। उनका नाम बताया चौधरी महेंद्र सिन्ह।

डीग/भरतपुर के आसपास करीब 40000 वर्ग किमी का इलाका जाट बाहुल्य है। पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग जाट, ठाकुर, राजपूत में अंतर नहीं जानते। बहुधा इन सब को एक समझ कर ठाकुर या क्षत्रिय के कोष्ठक में रखते हैं। ठाकुर या राजपूत मुख्यत: राजे रजवाड़े और सामंती मानसिकता से ओतप्रोत हैं, पर जाटों की सामाजिक संरचना जातिगत प्रजातंत्र पर अवलम्बित है। यहां पांच बुजुर्गों की राय मायने रखती है और उसके खिलाफ बगावत नहीं होती। खाप पंचायत या महापंचायत की अवधारणा बहुत से लोगों को समझ नहीं आती।

आगे गर्मी बढ़ी और पानी की कमी दीखने लगी। “भईया, पानी के लिये तो हर आधा किलोमीटर पर पेड़ की छाया में घड़े रखे मिले हैं। पशुओं को भी पानी पिलाने के लिये गड्ढ़े खोदे गये हैं। कई जगह सड़क किनारे कुयें भी हैं और उनसे मीठा पानी निकालने के लिये रस्सी-बाल्टी भी रखी है। फसल तो इस समय नहीं दीखती पर लोगों ने बताया कि मोटा अनाज – मकई, बाजरा – उगाया जाता है। बबूल के ही पेड़ दीखते हैं ज्यादातर।”

जल प्रबंधन

सवेरे गर्मी थी पर दोपहर होते होते मौसम बदल गया। बारिश होने से रुकना पड़ा, पर आगे चलने में गर्मी के कारण व्यवधान भी खत्म हो गया। दोपहर दो बजे तक अठारह किलोमीटर का रास्ता तय किया था प्रेमसागर ने। मैंने उन्हें फोन कर बताया – “आगे छ किमी पर बृजनगर या नगर है। वहां मंदिर और धर्मशालायें दिखती हैं नक्शे में। आज वहां रुकने की सोचें। अन्यथा आगे अठारह-बीस किमी तक चलने पर ही कोई बड़ी जगह मिलेगी। नगर में जलेबा मिलता है। उसका फोटो भी ले लीजियेगा।”

प्रेमसागर ने नगर में रुकने की सोची। किसी खण्डेलवाल धर्मशाला में रुकने का इंतजाम हुआ। दिन भर का विवरण उन्होने बताया –

एक नौजवान लड़के ने तो मुझे रोक कर कोल्ड ड्रिंक और दो पैकेट बिस्कुट मंगाया मेरे लिये।

“लोग बहुत अच्छे हैं भईया। एक नौजवान लड़के ने तो मुझे रोक कर कोल्ड ड्रिंक और दो पैकेट बिस्कुट मंगाया मेरे लिये। उन्होने मेरे लिये पचीस पचास भक्ति गीत भी लोड कर दिये मेरे ब्ल्यू-टूथ (?) में। एक और जगह तो बड़ी उम्र के दो लोगों ने रोक कर चाय पिलाई। ब्राह्मण के रूप में बड़ी कदर की मेरी। उनका कहना था कि मुझे सिर झुका कर चलते चले जाना उन्हें अलग सा लग रहा था। ज्यादातर इस तरह की वेशभूषा वाले तो भीख मांगते दिखते हैं।”

बड़ी उम्र के दो लोगों ने रोक कर चाय पिलाई। ब्राह्मण के रूप में बड़ी कदर की मेरी।

“सरकार कांग्रेस की है यहां। तो मुझे लगा कि हो सकता है मुझ जैसे के लिये कोई दिक्कत हो। पर वैसा कुछ भी नहीं। लोग – स्त्रियां बच्चे भी देख कर राधे राधे कह कर अभिवादन करते हैं।”

“लोग कुरता पायजामा में हैं। कहीं कहीं धोती पहने भी हैं। सिर पर पगड़ी वाले भी कुछ हैं।”

नगर में जलेबा का चित्र भी लिया प्रेमसागर ने। “काफी बड़े साइज की जलेबी है। एक जलेबी का वजन डेढ़ सौ से तीन सौ ग्राम तक है।”

बृजनगर का जलेबा

“पहले राजस्थान नहीं देखा था। अब यह सब देख कर अच्छा लग रहा है। आगे देखें कैसा होता है।” – प्रेमसागर को रुच भी रहा है राजस्थान पर अनजानी जगह की आशंकायें भी हैं। लोग अच्छे मिल रहे हैं। व्यवहार अच्छा है।

राजस्थान में मौसम और बबूल की रुक्षता है पर स्वागत वह बाहें फैला कर करता है। … पधारो म्हारे देस!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

डीग, भरतपुर, राजस्थान


29 मई 2023

राजस्थान में दो शक्तिपीठ बताये गये हैं। एक अलवर-जयपुर के बीच श्री अम्बिका देवी शक्तिपीठ है। यह विराटनगर (वैराट ग्राम) में है। यहाँ विराट की राजधानी के खण्डहर हैं। पाण्डवों ने अपने वनवास का अंतिम तेरहवां वर्ष अज्ञातवास के रूप में यहां व्यतीत किया था।

उसके बाद अजमेर के पास पुष्कर सरोवर के समीप पहाड़ी पर गायत्री मंदिर है। यह मंदिर ही मणिवेदिक शक्तिपीठ है। यहां सती के मणिबंध (कलाईयां) गिरे थे।

प्रेमसागर ने वृन्दावन की चौरासी कोस – 360 किमी – की परिक्रमा के दौरान पश्चिमी भाग में डीग की पदयात्रा पहले ही कर रखी है। इसलिये राजस्थान के शक्तिपीठों के दर्शन के लिये उन्होने डीग को चुना, यात्रा प्रारम्भ करने के लिये।

डीग से श्री अम्बिका और मणिबंध शक्तिपीठ का पैदल मार्ग। कुल दूरी 348किमी।

डीग में पंहुच कर प्रेमसागर ने जाट राजाओं के “जल महल” को एक बार पुन: देखा। सोलहवीं सदी में राजा सूरजमल की ख्याति इन इमारतों से जुड़ी है। प्रेमसागर ने महाराजा बदन सिंह (1722 इस्वी) से प्रारम्भ कर एक दर्जन से अधिक भरतपुर-डीग के जाट राजाओं के नाम मुझे भेजे हैं। इसमें दूसरे महाराजा सूरजमल (1755-1763) सर्वाधिक शौर्यवान थे। यह डियाक जाट राजाओं की गाथा के बारे में नहीं है। पर प्रेमसागर ने जो चित्र उस स्थान के भेजे हैं, उनसे यह तो लगता है कि आज से चार सौ साल पहले भी उन महाराजाओं के पास बुद्धि-कौशल-तकनीकी प्रचुर थी। पर उनका समय धूमकेतु की तरह उभरा, चमका और इतिहास हो गया।

[मैंने महाराजा सूरजमल पर कुंवर नटवरसिंह की पुस्तक किण्डल पर डाउनलोड कर ली है। पर कितनी पुस्तकें पढ़ी जायेंगी? प्रेमसागर की डियाक लेखन के लिये कई पुस्तकों को मैंने ब्राउज किया है। पर उन सबके साथ न्याय तो नहीं ही किया। कभी कभी लगता है कि लिखने की बजाय पढ़ना ज्यादा महत्वपूर्ण है। पर फिर ब्लॉग लेखन समय लेने लगता है।]

यह सोचने का विषय है कि भारत में भिन्न भिन्न स्थानों पर दैदीप्यमान राजाओं के बावजूद भी यूरोप के डच-स्पेनी-पुर्तगाली-फ्रेंच-ब्रिटिश कैसे पूरे भू भाग पर छा गये। और भारत ही नहीं, पूरी दुनियां पर। और आज, जब भारत योरोपीय प्रभुत्व के आर्थिक पक्ष से लोहा लेना चाह रहा है तो ये उसके आड़े आ रही हैं ये जाट-गुर्जर-जट्ट की खाप पंचायतें। ऐसा ही हाल दक्षिण-पूर्व का भी है। धर्म और जाति के आधार पर खींचतान से सम्भव है भारत के हाथ से यह मौका भी निकल जाये।

प्रेमसागर के चित्र बहुत चटक नहीं हैं, पर मोहक हैं। महलों की बनावट, घास के लॉन, जलाशय, गुप्त रास्ते, आज के बाजार – सब अच्छे लगते हैं। पर इन सब की मोहकता भविष्य के भारत को कैसे चमकायेगी, यह प्रश्न मेरे मन में बार बार उभरता है।

महलों के आसपास हरियाली है, पर यह भी लगता है कि आगे बहुत ज्यादा नहीं दीखेगी। एक बैलगाड़ी में पानी के लदे ड्रम दीखते हैं।

डीग, भरतपुर, राजस्थान।

कल से लगभग दो सप्ताह प्रेमसागर को राजस्थान में गुजारने हैं। शक्तिपीठों की यात्रा के बहाने मैं इस प्रश्न को भी टटोलना चाहूंगा। राजस्थान भारत की आर्थिक उन्नति में एक बड़ा रोल अदा कर सकता है। यहां के मारवाड़ी समुदाय ने पिछले सौ साल में भारत को आर्थिक ताकत देने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान किया है। विषम जलवायु के बावजूद जुझारूपन कायम रखना राजस्थान की खासियत है। वह देखना और महसूस करना है।

गोवर्धन, वृन्दावन

प्रेमसागर में ऊर्जा है। मेरे मन मेंं मौसम और स्वास्थ्य को ले कर थकान है। फिर भी देखा जायेगा कि इस डियाक से क्या निकल कर आता है!

जय हो! पधारो राजस्थान!

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

वृन्दावन में पदयात्री


28 मई 2023

कल लिखा था –

प्रेमसागर को कांगड़ा से रानीताल तक किसी सज्जन ने अपने वाहन में जगह दे दी है। अब वे रानीताल पंहुच कर किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। या हो सकता है कि कोई दूसरे वाहन में उन्हें लिफ्ट मिल जाये। आसपास खड़े लोग भी उनकी सहायता करना चाहते हैं।

उसके बाद विशेष बातचीत नहीं हुई। एक जगह उन्होने बताया कि वे बस में बैठे हैं। होशियारपुर जायेंगे। वहां ट्रेन मिली तो उससे अन्यथा बस से लुधियाना जाना होगा।

फिर?

“फिर ट्रेन से बनारस आऊंगा या फिर प्रयागराज।”

प्रेमसागर अगले चरण की यात्रा के पहले शायद अपने शुभचिंतकों से बात करना चाहते हों। पर कौन हैं वे लोग? कौन हैं जो उनकी शक्तिपीठ यात्रा के प्राइम मूवर हैं? कौन हैं जो उन्हें आगे की यात्रा की बात कहते हैं? कौन हैं जो शक्तिपीठों की अवधारणा के प्रति उनकी सोच पुष्ट करते हैं? … मुझे नहीं मालुम। पूछने पर प्रेमसागर एक सपने की बात करते हैं जो उन्हें बार बार आता रहा है और जिसे किसी से शेयर करने पर उन्होने कहा कि तुमने ज्योतिर्लिंगों की यात्रा कर ली, पर मातृशक्ति की यात्रा तो की नहीं। वह करो। और उनके कहने पर वे चल दिये।

मुझे लगता है कि प्रेमसागर के लिये शैव या शाक्त सोच एक अवलम्ब भर है। खूंटी, जिसपर अपना सतत चलना टांग रखा है। ये शक्तिपीठ सम्पन्न हो जायेंगे तो कोई न कोई और खूंटी ईजाद हो जायेगी यात्रा के लिये। यात्रा का संकल्प उसपर टंग जायेगा और यात्रा जारी रहेगी। … पर यात्रा का भी एक अर्थशास्त्र होता है। उस पक्ष को हमेशा हमेशा के लिये अनदेखा नहीं किया जा सकता। मैं इस बारे में प्रेमसागर को कहता हूं, पर लगता नहीं कि उसका कोई प्रभाव पड़ता है।

आखिर मैं उनकी यात्रा का प्राइम मूवर नहीं हूं।

अगले दिन यानि आज प्रेमसागर की लोकेशन दिल्ली के आसपास दिखी और उसके बाद दिल्ली के आगे। मैंने उन्हें फोन कर पूछा – कहां जा रहे हैं?

“मथुरा जा रहा हूं भईया। वहां से बनारस या प्रयाग, जहां की भी मिलेगी, ट्रेन पकडूंगा।”

“बनारस या प्रयाग के आसपास का कोई शक्तिपीठ तो बचा नहीं जिसके दर्शन बाकी हों। यहां आने का क्या लाभ? पास में ही वृन्दावन है। वहां दो शक्तिपीठ हैं। उनके दर्शन क्यों नहीं करते? और उसके आगे अलवर-जयपुर के बीच महाभारतकालीन विराटनगर में एक शक्तिपीठ है। उसके आगे पुष्कर/अजमेर में गायत्री शक्तिपीठ है। मानसून तो यहां आने में और भी समय लगेगा। इन शक्तिपीठों पर क्यों नहीं जाते?”

श्री माँ चामुण्डा शक्तिपीठ, वृन्दावन, मथुरा।

किरीट सोलंकी जी ने एक ट्वीट में कहा था कि प्रेमसागर आपके लैण्ड-रोवर हैं। उनके माध्यम से आप यात्रा कर ले रहे हैं। मुझे ऐसा कोई मुगालता नहीं है। प्रेमसागर अपनी धुन से करते हैं। वे पांच सात लोगों से पूछते हैं और जो रुच जाये, वह करते हैं। पर, फिलहाल तो वे मेरे कहे के अनुसार उतर गये वृन्दावन। वहां दो शक्तिपीठों के दर्शन किये। चामुण्डा शक्तिपीठ और कात्यायनी शक्तिपीठ। दोनो तीन किलोमीटर के अंतर पर हैं। सम्भवत: चामुण्डा शक्तिपीठ ही वृन्दावन का शक्तिपीठ है। गीताप्रेस की पुस्तक शक्तिपीठ दर्शन में इसी का जिक्र है –

सम्भवत: चामुण्डा शक्तिपीठ ही वृन्दावन का शक्तिपीठ है। गीताप्रेस की पुस्तक शक्तिपीठ दर्शन में इसी का जिक्र है

प्रेमसागर ने दोनो मंदिरों के दर्शन कर लिये। उसके बाद ढेर सारे चित्र मेरे पास भेज दिये हैं। मुझसे उन्होने विराटनगर के अम्बिका शक्तिपीठ का लोकेशन मांगा, वह मैंने उनके पास भेज दिया है। अब देखें वे क्या करते हैं। यह स्थान गोवर्धन हो कर जाता है। वहां की पदयात्रा पहले ही प्रेमसागर कर चुके हैं। अगर जाना हो, तो गोवर्धन से पदयात्रा प्रारम्भ कर सकते हैं। गोवर्धन से यह अम्बिका शक्तिपीठ 142किमी दूर है।

देखें आगे क्या होता है। वृन्दावन के दोनो शाक्त मंदिरों और आगे की यात्रा के बारे में कल लिखूंगा। फिलहाल, मैं वाइरल ज्वर के बाद उबर तो गया हूं, पर पढ़ने लिखने में वह एकाग्रता नहीं है। एक दो दिन लगेगा सामान्य होने में।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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