मुझे आशंका थी कि प्रेमसागर की यात्रा अनजान-गुमनाम होगी, पर वैसा नहीं है। लोग उन्हें जानने वाले हो गये हैं। पैदल चलने की तपस्या की जन मानस में गहरे प्रभाव डालती है। चाहे-अनचाहे प्रेमसागर आईकॉन बनते जा रहे हैं।
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सहस्त्रार्जुन की राजधानी माहिष्मती (माहेश्वर)
लम्बी चौड़ी योजना बनाने वाला (पढ़ें – मेरे जैसा व्यक्ति) यात्रा पर नहीं निकलता। यात्रा पर प्रेमसागर जैसा व्यक्ति निकलता है जो मन बनने पर निकल पड़ता है। सो, प्रेमसागर मन बनने के साथ ही आगे की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ेंगे।
कुछ और चलें – गाडरवारा से उदयपुरा
मुझे अपनी दशा सम्पाती की तरह लगी। वह और किसी प्रकार से वानरों की सहायता नहीं कर सकता था। वह केवल यह देख सकता था कि लंका कितनी दूर है और सीता कहां पर हैं। मैं भी केवल यह बता सकता था कि प्रेमसागर का गंतव्य कितना दूर है।