पचासी साल का आदमी, अपने बारे में लिखा देख और सुन कर कितना प्रसन्न होता है, वह अहसास मुझे हुआ। उनकी वाणी मुखर हो गयी। बताया कि अपनी जवानी में वे मुगदर भांजा करते थे। “सामने क लोग मसड़ (मच्छर) अस लागत रहें तब।”
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राजमणि राय और उम्र का एकाकीपन
उनकी बातों से लगा कि वे मेरी सिम्पैथी चाहते हैं पर अकेले जीने में बहुत बेचारगी का भाव नहीं है। राजमणि ने अकेले जिंदगी गुजारने के कुछ सार्थक सूत्र जरूर खोज-बुन लिये होंगे। इन सज्जन से भविष्य में मिलना कुछ न कुछ सीखने को देगा।
सड़सठ (67) साल की उम्र पर
अपने आप को कालजयी लेखक, ब्लॉगर या कोई शानदार लीगेसी छोड़ कर जाने का फितूर न पाला जाये तो क्रियेटिव तरीके से आने वाले दशक – कई दशक – दीर्घ और स्वस्थ्य जीवन के साथ गुजारे जा सकते हैं। बाकी, जो होगा सो होगा ही। होईहैं सोई जो राम रचि राखा!