एक विघ्नेश्वर जी ने टिप्पणी की। पोस्ट मौसम की अनिश्चितता, आंधी-पानी आदि पर थी। सज्जन ने कहा – घर में रह बुड्ढ़े, ऐसे मौसम में निकलेगा तो जल्दी मर जायेगा।
[…] काला टीका लगा दिया है उन्होने। सौ साल जिया जायेगा बंधुवर। ज्यादा ही!
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बाजरा और जोन्हरी के खेतों से गुजरते हुये
एक ही दिन में सुबह शाम की गांव की सड़कों की सैर ने मुझे अलग अलग बिम्ब दिखाये। … जब कुछ लिखने की सामग्री टटोलने का मन हो, तो गांव देहात की सड़कों का ही रुख करना चाहिये। मानसिक हलचल वहां मजे से होती है।
भरसाँय और मुहर्रम माई की पूजा
त्यौहार, पूजा और मुहर्रम को उससे जोड़ना – यह बहुत सचेतन मन से नहीं किया होगा उस बालक ने। पर मुहर्रम को मुहर्रम माई बना देना हिंदू धर्म का एक सशक्त पक्ष है। तैंतीस करोड़ देवता ऐसे ही बने होंगे!