आगे तीन बालक दिखे सड़क किनारे। ताल में मछली मारे थे। छोटी छोटी मछलियाँ। ताल का पानी एक छोटे भाग में सुखा कर पकड़ी थीं। आधा घण्टा का उपक्रम था उनका। अब वे आपस में पकड़ी गयी मछलियों का बंटवारा कर रहे थे।
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आत्मनिर्भरता का सिकुड़ता दायरा
अब हताशा ऐसी है कि लगता है आत्मनिर्भरता भारत के स्तर पर नहीं, राज्य या समाज के स्तर पर भी नहीं; विशुद्ध व्यक्तिगत स्तर पर होनी चाहिये। “सम्मानजनक रूप से जीना (या मरना)” के लिये अब व्यक्तिगत स्तर पर ही प्रयास करने चाहियें।
इस गांव में भारत की अर्थव्यवस्था में ब्रेक लगे दिखते हैं
कुल मिला कर एक सवारी गाड़ी का रेक और चार बसें यहां मेरे घर के बगल में स्टेबल हैं। … यानी अर्थव्यवस्था को ब्रेक लग चुके हैं और उसे देखने के लिये मुझे अपने आसपास से ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ रहा।
वह टीका नहीं लगवाना चाहते
उनके जैसे बहुत से लोग जैसा चल रहा है चलने देना चाहते हैं। भले ही लस्टम पस्टम चले, पर लॉकडाउन न होने से नून-रोटी तो चल रही है। उनके जैसे बहुत से लोगों को कोरोना टीके को ले कर भ्रांतियां और पूर्वाग्रह हैं।
कड़े प्रसाद बोले – कोरोना त कतऊँ नाहीं देखातबा साहेब
“कोरोना कहां है साहेब?! मुझे तो कहीं नहीं दिखा। कोई कोरोना से बीमार नजर नहीं आया। वह तो पहले था। छ महीना पहले। अब कहीं नहीं है।” – कड़े प्रसाद ने उत्तर दिया।
स्टेटस – कोरोना टीका के बाद बुखार
गांव में पांच सौ मीटर परिधि में जो दो कोरोना केस हैं, उसका कोई हल्ला नहीं है। पिछले साल तो कोई सामान्य बीमार भी होता था तो सनसनी फैल जाती थी। क्वारेण्टाइन करा दिये जाते थे लोग। बास बल्ली गड़ने लगती थी।