सुग्गी बहुत वाचाल है। कहती जाती है – “जीजी, बहुत काम है। मरने की फुर्सत नहीं है।” पर फिर भी रुक कर बातें खूब करती है। कई बार तो बातें खत्म कर जाने लगती है तब कुछ और याद आ जाने पर वापस लौट कर बताने-बतियाने लगती है।
Tag Archives: village
लालजी यादव का काम कराने का मंत्र – बाभन खाये, लाला पाये
लालजी समाजवादी ब्रिगेड के बढ़े प्रभुत्व के आईकॉन हैं। उनकी तुलना मैंने ‘गणदेवता’ के श्रीहरि पाल से की; पर आज बदलते गांव का जितना सशक्त चरित्र लालजी है; उतना ताराबाबू का छिरू पाल नहीं है।
आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र
आज तो मन है बिस्तर में ही चाय नाश्ता मिल जाए। उठना न पड़े। बटोही (साईकिल) को देखने का भी मन नहीं हो रहा। आज तो कोहरा घना है। यह प्रकृति की व्यक्तिगत आलोचना है! पता नहीं बिसुनाथ का क्या हाल होगा। वह तो आपने एक कमरे के घर में बाहर पुआल के बिस्तर परContinue reading “आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र”
कैंची सीखना #गांवकाचिठ्ठा
भारत बहुत बदला है, पर अभी भी किसी न किसी मायने में जस का तस है। भारत और इण्डिया के बीच की खाई बहुत बढ़ी है। वह कैंची सीखती साइकिल से नहीं नापी जा सकती।
लॉकडाउन काल में मुरब्बा पण्डित काशीनाथ का व्यवसाय #गांवकाचिठ्ठा
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री जिस तरह प्रदेश में ही व्यवसाय निर्मित करने की बात करते हैं; उसके लिये काशीनाथ पाठक (मुरब्बा पण्डित) एक सशक्त आईकॉन जैसा है।
प्राकृतिक संसाधनों की नोच खसोट गांव का चरित्र बनता जा रहा है #गांवकाचिठ्ठा
शहरों का जो स्वरूप है, सो है। गांवदेहात में पैसा कम है, प्रकृति प्रचुर है। तो प्रकृति को ही बेच कर पैसा बनाने की कवायद (जोरशोर से) हो रही है।