“मंदिर एकांत है भईया। साफ सुथरा। मन को अच्छा लगता है वहां। भीड़ भी बहुत ज्यादा नहीं थी। नवरात्रि का प्रारम्भ है तो कुछ तो लोग थे ही। भईया, यहां सती माई का गला गिरा हुआ था। यहां भैरव हैं – योगेश।”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
“मंदिर एकांत है भईया। साफ सुथरा। मन को अच्छा लगता है वहां। भीड़ भी बहुत ज्यादा नहीं थी। नवरात्रि का प्रारम्भ है तो कुछ तो लोग थे ही। भईया, यहां सती माई का गला गिरा हुआ था। यहां भैरव हैं – योगेश।”