चौमू

6 जुलाई 2023

सन 1971 में जब मैं पिलानी गया था इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये तो मैं देहाती था – एचएमटी – हिंदी मीडियम टाइप। मैंने हायर सेकेण्डरी नसीराबाद, अजमेर के मिशन स्कूल से की थी। पढ़ाई का माध्यम हिंदी था। मुझ जैसे कुछ और भी छात्र थे। देसी। हम मस्टर्ड थे। जो ज्यादा ही सीधा होता था, उसे चौमू कहा जाता था।

चौमू यानी लल्लू। जिसे कोई भी चला ले।

पिलानी में यह शब्द आया कहां से? कालांतर में पता चला कि चौमू जयपुर के पास कोई कस्बा है। वैसे ही जैसे पिलानी या चिड़ावा। पिलानी के दिनों से यह हसरत थी कि कभी चौमू जा कर देखा जाये। पर मैं कभी चौमू जा न पाया। कालांतर में भारत देखा पर चौमू नहीं।

अब देखता हूं तो चौमू पिलानी से मात्र 150-200 किमी दूर है। बस से पंहुचा जा सकता था। रुकने के लिये कोई धर्मशाला सस्ते में मिल सकती थी। पर तब यायावरी का मन सोचता भी न था। वह इलैक्ट्रोमैग्नैटिक्स या सिलिकॉन ट्रांसिस्टर में घूमता रहता था। … हम लोग किताबी कीड़ा भर थे! :sad:

अब भी वही हैं, शायद! :-(

चौमू के चित्रों में यह अंश काटा जिसपर जगह का नाम लिखा है।

अब चौमू के बाजार के चित्र देखे – प्रेमसागर अपनी पदयात्रा में एक रात चौमू में रहे। उस जगह के चित्र उन्होने मुझे भेजे। और उससे मुझे आज से पचास साल पहले की यादें हो आयीं।


“चौमू मैं रात गुजारने के लिये मंदिर या धर्मशाला तलाश रहा था। एक धर्मशाला में बताया गया कि कुल 300 रुपये लगेंगे – 200 रुपये कमरा और 100 रुपये भोजन के। “मैने कह दिया कि वह मेरी बजट में नहीं है। मेरे पास कुल जमा 274 रुपये हैं। उसमें भी 200 रुपये तो एक सज्जन ने यूपीआई से दिये थे। इस बीच किसी से पता चला कि अगरवाल धर्मशाला में जगह मिल जायेगी। मैं अगरवाल धर्मशाला गया तो वहां पचास रुपये में कमरा मिला। बीस रुपया गद्दा का लिया। दस रुपये में भोजन मिल गया। भोजन भी ठीक ही था। पांच रोटी, दाल, सब्जी और अचार। सत्तर रुपये से सस्ता तो क्या मिलता?” – प्रेमसागर ने अपनी दैनिंदिनी बताई।

चौमू का बाजार।

अगरवाल धर्मशाला वाले, भले ही चौमू वाले कहाते हों, हैं बहुत भले लोग! अब मुझे कोई चौमू कहे तो मुझे खराब नहीं लगेगा। चौमू सरल और भले का प्रतीक है; भोंदू और लण्ठ का नहीं!

रास्ते में बारिश होती रही इसलिये ज्यादा चलना नहीं हो पाया। रास्ते में एक हवेली नुमा स्थान भी दिखा जहां कोई फिल्म की शूटिंग हो रही थी। चौमू पहाड़ी इलाके की घाटी जैसा है। पुरानी हवेलियां यहां होटल और टूरिस्ट स्थल बन गये हैं। लोग यहां से निकल कर महानगरों में बस गये हैं तो और कोई उपयोग करने वाला नहीं है इन हवेलियों का।


मैं खंगालने पर पाता हूं कि चौमू का अर्थ है चार मुंह। यहां से चार तरफ रास्ते जाते हैं। यातायात के हिसाब से अच्छी कनेक्टिविटी है चौमू की। यह सामोद के ठाकुर रावल करण सिंह ने 1595 में बसाया था। सवा चार सौ साल का इतिहास तो है ही इस कस्बे का। रावल राजाओं ने इसकी सुरक्षा के लिये चारदीवारी, पानी की व्यवस्था के लिये बावड़ी और नहर बनवाई थी। प्रेमसागर को तो केवल रात गुजारनी थी, अन्यथा रुक कर हवेलियां, दरवाजे, बावड़ियां और नहर देखते। राजस्थान के कस्बे की आत्मा तो उनमें ही होगी?! फिर भी सवेरे की सुनसान बाजार की सड़क, चाय की दुकान पर पीतल के बर्तन में चाय चढ़ाये और अदरक पीसते अधेड़ की जो छवियां प्रेमसागर ने भेजीं, उनसे चार पांच दशक से चौमू देखने की साध काफी हद तक पूरी हुई।

शहर छोड़ कर गांव-कस्बे की आबो हवा में बसा मैं वास्तव में चौमू ही हूं। चौमू जैसी जगह का जीव। अब मुझे कोई चौमू कहे तो झेंप नहीं ही लगेगी!

धन्यवाद प्रेमसागर को चौमू दिखाने के लिये। विराटनगर से पुष्कर का पैदल रास्ता जरूरी नहीं था कि चौमू हो कर जाता। पर लगता है प्रेमसागर मेरे मन की बहुत नीचे दबी आवाज सुन पाये और न केवल चौमू के रास्ते चले वरन वहां रात भी गुजारी।

प्रेमसागर सवेरे मामटोरी खुर्द से चल कर करीब तीस किमी चले। आज तो कुछ ज्यादा चल पाये अन्यथा उनका औसत 22-25 किमी का है। बारिश का मौसम और बारिश रुकने पर उमस के कारण ज्यादा दूरी नहीं तय कर पा रहे। यह भी सम्भव है कि उनके पास पैसे की कमी है और रुकने के स्थान के बारे में वे ज्यादा उन्मुक्त भाव से नहीं चल पा रहे। उनका ध्यान काम से कम खर्चे में यह यात्रा पूरी करने का है। उन्हें अंशदान की जरूरत है। तीन सौ रुपये की धर्मशाला छोड़ अग्रवाल धर्मशाला तलाशना उसी कारण से हुआ, जहां अस्सी रुपये में उनका काम चल गया, भले ही वह तलाशने में रात के सवा नौ बज गये। खैर, यात्रा के कष्ट तो झेलने ही हैं उन्हें।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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