साम्भर झील के किनारे किनारे

10 जुलाई 2023

फुलेरा के पश्चिमी ओर पड़ती है साम्भर झील। लगता नहीं कि प्रेमसागर को मालुम था भारत की इस सबसे बड़ी नमकीन पानी की झील के बारे में। पानी देख कर उन्होने (लगभग) उत्तेजना से मुझे बताया – “भईया राजस्थान की पहली नदी देखी मैंने। कितना बढ़िया हो कि इसपर बांध बना कर नहरें निकाली जायेंं और सिंचाई हो सके। लोग इसमें बड़ी झील भी बताते हैं। शायद बांध बना कर बनी है। नलियासर झील बताते हैं। कुछ साम्भर झील भी बताते हैं। … लोगों ने बताया कि नहर से हनुमानगढ़ में तो पानी आ गया है। इस नदी से भी हो सके तो…”

नलियासर झील के किनारे

प्रेमसागर को पता नहीं रहा होगा कि साम्भर झील को पानी चार छोटी बरसाती नदियों से मिलता है। इसमें मुख्य दो ही हैं – मेंधा और रूपनगढ़। मेंधा उत्तर से इस झील में आती है और रूपनगढ़ दक्षिण से। पश्चिम से पूर्व की ओर लम्बाई में है यह झील। इसके पश्चिमी भाग को पूर्वी से अलग करता एक बलुआ पत्थर का बांध है। जमीन के नमक से जब पश्चिमी भाग का पानी पर्याप्त खारा हो जाता है तो बांध खोल कर पूर्वी भाग में पानी/ब्राइन भरा जाता है। फिर पूर्वी भाग में पानी वाष्पित हो कर नमक बनता है। उस नमक को ले जाने के लिये रेल लाइन भी है – अंग्रेजों के जमाने से। रेल लाइन फुलेरा जंक्शन स्टेशन से जुड़ी है।

नमक बनाने के लिये एक सरकारी कम्पनी है – साम्भर साल्ट लिमिटेड (हिंदुस्तान साल्ट लिमिटेड की सबसिडियरी)। यह कम्पनी बहुत कम उत्पादन कर पाती है। वहीं प्राइवेट कम्पनियां खूब नमक बना रही हैं। वे अवैध कुयें खोद कर नमकीन पानी निकाल नमक बनाती हैं। उनको नमक भरपूर मिल रहा है और सरकार को चूना लग रहा है।

प्रेमसागर को इन सब की पूर्व जानकारी नहीं थी। उनको नहीं मालुम था कि साम्भर झील को जल देने वाली चार नदियां बस उतनी ही जल चली हैं जिनसे झील भर जाये। वे सिंचाई के काम नहीं आ सकतीं। वे सतलुज और व्यास जैसी नहीं हैं। सतलुज-व्यास पर हरीके बांध है जिससे राजस्थान नहर (कालांतर मेंं इंदिरा नहर) पंजाब से राजस्थान आ कर दस मरुस्थलीय जिलों को सिंचित कर रही है।

झील के पास सड़क पर भेड़ों का रेवड़

प्रेमसागर की यात्रा नामी लेखकों की नदियों या भूखण्डों की यात्रा जैसी नहीं है। उन लोगों को तो अखबार या पुस्तक पब्लिशिंग कम्पनियों से अकूत फण्डिंग मिलती है। वे लोग एक टीम रख कर जगह के बारे में पर्याप्त बैकग्राउण्ड शोध भी करते हैं। उनको यह फिक्र नहीं करनी होती कि शाम को कहां डेरा मिलेगा, कहां भोजन मिलेगा।

पर प्रेमसागर की यह यात्रा एक मायने में अभूतपूर्व है – और शायद ही कोई इसे दोहरा पायेगा। बिना किसी संसाधन के, बिना पुख्ता भौगोलिक-ऐतिहासिक-सांस्कृतिक जानकारी के; अकेले प्रेमसागर दस बारह हजार किमी यात्रा कर भारत देख चुके हैं। मैं हमेशा उनसे ईर्ष्या करता हूं कि काश उनकी जगह मैं होता! पर मैं हो नहीं सकता। मुझमें कष्ट सहने की वह क्षमता ही नहीं है। मैं अगर निकला होता तो पचीस पचास किलोमीटर चल कर वापस हो लिया होता।

झील किनारे एक गांव में एक किशोर प्रेमसागर को रोक कर केले खिलाये और दूध पिलाया।

झील किनारे एक गांव, सांपों की ढाणी, में एक नौजवान प्रेमसागर को रोक कर केले खिलाये और भैंस का दूध, शहद मिला कर पिलाया। पिछले दिन फुलेरा में वह मिला था जहां प्रेमसागर चाय पीने के लिये रुके थे। प्रेमसागर से कुछ बातचीत हुई थी। उसे लगा था कि प्रेमसागर उसके गांव से गुजरेंगे। एक दर्जन केले का उसने इंतजाम किया था। प्रेमसागर को सड़क पर आते देख उसने रोका और घर पर बुला कर केला और दूध सामने रखा। “एक दर्जन केला था भईया। उतना कहां खाता। छ केला उन लोगों को ही खाने को दिया। उसके साथ न न करते हुये भी करीब एक किलो दूध उन लोगों ने मुझे पिला दिया। चित्र में नौजवान खड़ा है। पास में उसके पिताजी या दादा जी हैं। दादा जी ही होंगे। उनके माथे पर उम्र की रेखायें हैं और लम्बे कानों में कुण्डल। इस प्रकार का आतिथ्य कम ही मिलता है। राजस्थान में वह अपेक्षाकृत ज्यादा मिल रहा है।

नौजवान का नाम है श्याम यादव। मानस में प्रेम और श्रद्धा को ले कर शबरी का उदाहरण है। एक उदाहरण यह प्रत्यक्ष है – सांपों की ढ़ाणी के श्याम यादव जी का! जय हो!

झील के किनारे यह गड़रिया। प्रेमसागर ने चित्र भेजा।

झील किनारे एक गड़रिया के चित्र भेजे प्रेमसागर ने। उनका साफा केसरिया रंग का है और शानदार लग रहा है। प्रेमसागर ने बताया कि यहां वृद्ध लोग सफेद साफा बांधते हैं। जवान लोग रंगीन। ये सज्जन तो अधेड़ लगते हैं। पर अभी भी अपने को जवान समझते हैं। उनके एक हाथ में लाठी और दूसरे में शायद छाता है।

सांभर झील, लूनी नदी और जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर का मरुस्थल – ये महत्वपूर्ण भौगोलिक प्रतीक हैं राजस्थान के। उनमें से एक – साम्भर झील से आज आकस्मिक परिचय हुआ प्रेमसागर का। यूं मरुस्थल का कुछ अहसास तो उन्हें हो ही गया है। पुष्कर के पास की आरावली उपत्यका से निकली लूनी नदी शायद उनके रास्ते न आये। प्रेमसागर को तो शक्तिपीठ जाना है। मेरे लिये यह साम्भर झील देखना बड़ी बात है। अपनी रेल सेवा के दौरान मैं यह आसानी से कर सकता था। पर मैं तो अपने चेम्बर से बाहर निकलता ही न था। आज भी, यात्रा प्रेमसागर कर रहे हैं। मैं तो अपने कमरे के कोने में लैपटॉप पर बैठा हूं! :lol:

झील के पास खराना डीह डूंगरी गांव के मठ के महाराज विश्रामपुरी जी। इनके आश्रम में रात बिताने की जगह मिली प्रेमसागर को।

झील के पास डीह डूंगरी गांव के विश्रामपुरी जी महाराज का एक चित्र भेजा प्रेमसागर ने। विश्रामपुरी जी झील के किनारे एक बोरी बिछा कर बैठे हैं। अपने को जूना अखाड़ा का बताते हैं। उनके पास एक कुटिया भर है। प्रेमसागर को सोने के लिये सड़क किनारे एक बैंच मिली। उसपर गमछा बिछा कर रात गुजारी। अपने बैग का तकिया बनाया। भोजन के लिये विश्रामपुरी जी ने चरखी (चावल) में थोड़ी चीनी, नमक और हल्दी मिला कर बनाया था। वही खाया। “मैने कहा भी कि महराज यह क्या बना रहे हैं। पर जो बना था, वही खाये। और क्या करते भईया?”

रात के भोजन के रूप में हल्दी-चीनी-नमक मिला चावल और सोने के लिये बेंच पर गमछा बिछा कर बैग का तकिया लगाया बिस्तर! यही सही पदयात्रा है।

सोने के लिये सड़क किनारे की ऐसी बेंच मिली प्रेमसागर को।

प्रेमसागर ने जो आंकड़ा भेजा उसके अनुसार दिन भर में वे बीस किलोमीटर चले। कुल 29 हजार कदम। यह ज्यादा नहीं है, फिर भी ठीक ही है। आगे मणिबंध शक्तिपीठ अभी पचहत्तर किमी दूर है। करीब तीन दिन की यात्रा। देखें महादेव और अन्नपूर्णा माई किसके माध्यम से कैसी सहायता करते हैं। तीन चार दिन रहने खाने को कैसे मिलता है! महादेव के ही भरोसे चल रहे हैं प्रेमसागर!

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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