11-12 जुलाई 2023
नमक की झील के बगल के गांव खराना डीह डूंगरी में रात विश्राम के लिये सड़क किनारे की रोडवेज हॉल्ट की बेंच मिली थी। 11 जुलाई को सवेरे प्रेमसागर उठ कर आगे के लिये रवाना हुये। कुछ किलोमीटर चलने के बाद सीतारामपुरा के किशन जी ने अपने घर पर उन्हें चाय पिलाई।

आगे नक्शे में देखने पर रूपन या रूपनगढ़ नदी की क्षीणकाय रेखायें दिखती हैं। मैंने प्रेमसागर को कहा कि वे रूपनगढ़ नदी पार करते समय देखें कि नदी का क्या हाल है। उसमें पानी है या नहीं। यह मुख्य दो नदियों में से एक है जो साम्भर झील को जल प्रदाय करती है। बरसात का मौसम है और इस साल राजस्थान में सामान्य से लगभग दुगुनी बारिश हुई है। ऐसे में भी अगर रूपनगढ़ नदी चार्ज नहीं हुई और पानी नहीं हुआ तो यह साम्भर झील के लिये अशुभ संकेत है।
एक चाय की दुकान पर लोगों ने बताया कि नदी अब नहीं रही। कई साल हो गये उसमें पानी नहीं आता। आगे जब नदी का इलाका पार किया तो फिर मैंने पूछा – नदी दिखी?
“नहीं भईया। कोई पानी कहीं नजर नहीं आया। कोई पुल भी नहीं मिला।”
रूपनगढ़ कस्बे से गुजरते हुये करीब पच्चीस किमी चल चुके थे। रूपनगढ़ का किला किशनगढ़ के महाराजा रूपसिंह ने सन 1648 में बनाया था। यह जाट बहुल स्थान है। प्रेमसागर को चलते हुये पच्चीस किमी के लगभग हो गया था। उन्होने रात्रि विश्राम के लिये धर्मशाला की तलाश की। एक धर्मशाला तो मिली पर उसको प्रबंधकों ने गोदाम में तब्दील कर दिया था। अन्य स्थान होटल जैसे थे। टूरिस्ट लोगों के लिये। उनके रेट भी ज्यादा थे। प्रेमसागर आगे बढ़ गये।
आगे उन्हें रूपनगढ़ नदी के बगल से और कहीं कहीं उससे गुजरते हुये चलना था। मैंने फिर पूछा – नदी कहीं दिखी?

“नहीं भईया। कहीं पानी नजर नहीं आया। एक जगह सिंगला बांध दिखा। इस बांध से नदी का पानी रोक कर लोग सिंचाई करते थे। पर बताया कि कई साल से तो पानी इकठ्ठा हुआ ही नहीं। जब बांध पूरा भर जाता था तो पानी आगे साम्भर झील के लिये रवाना होता था। पर इस साल तो पानी था ही नहीं।”
देश में सैंकड़ों-हजारों बरसाती छोटी नदियां या तो मर गयी हैं या नालों में रूपांतरित हो गयी हैं। रूपनगढ़ नदी भी उनमें से एक होने जा रही है। प्रेमसागर के माध्यम से साम्भर झील की इस प्रमुख नदी की दशा का पता चला।

दस इग्यारह किलोमीटर आगे सलेमाबाद में निम्बार्काचार्य पीठ मिला। कोई किला या हवेली किसी राजा ने इस पीठ को दे दिया था। बहुत सुंदर लगता है वह स्थान। यहां पर सब सुविधायें हैं। पीठ का अपना प्रिंटिंग प्रेस है। संस्कृत महाविद्यालय (विश्वविद्यालय) है। हॉस्टल, पुस्तकालय, वाचनालय, गौशाला, औषधालय आदि भी संस्थान में है। प्रेमसागर को इक्यावन शक्तिपीठ का पदयात्री जान कर वहां के प्रबंधक महोदय ने एक अटैच्ड बाथरूम वाला कमरा उन्हें दे दिया। भोजन भी मिला और पैसा भी नहीं देना पड़ा।

द्वैताद्वैत (भेदाभेद) मत का यह पीठ सम्प्रदाय के अनेक गुरुओं की परम्परा वाला है। वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्रीजी महराज और उनके उत्तराधिकारी श्री श्यामशरण देव जी नामित हैं। प्रेमसागर वहां रात होने पर पंहुचे थे। ज्यादा देखने का अवसर नहीं मिला। रात गुजारने पर सवेरे वे रवाना हो गये पुष्कर के लिये।
बारह जुलाई को लगभग इग्यारह बजे प्रेमसागर के साथ कुंचील गांव से गुजरते हुये साम्प्रदायिक दुर्घटना हो गई। उसके बारे में अलग से ब्लॉग पोस्ट लिख दी गयी है। कुंचील से रामस्वरूप गुर्जर जी उन्हें बचा कर निकाल लाये और फिर अपनी मोटरसाइकिल से दस किलोमीटर आगे छोड़ा। रामस्वरूप जी ने प्रेमसागर से कुछ आर्थिक सहायता की भी बात की, पर प्रेमसागर ने मना करते हुये उनकी सहायता के लिये दिल से धन्यवाद दिया।

शाम तक प्रेमसागर पुष्कर पंहुच गये। उन्होने बूढ़ा पुष्कर के दर्शन भी कर लिये। एक धर्मशाला में डेरा भी जमाया दो दिनों के लिये।
“बूढ़ा पुष्कर में एक छोटी झील/तालाब है भईया। उसमें मछलियां जानती हैं कि उनें कोई खतरा नहीं। वे पास तक चली आती हैं। वहीं एक मंदिर भी है। उसके भी दर्शन किये। और कुछ खास नहीं है बूढ़ा पुष्कर में। कल पुष्कर में मंदिरों के और शक्तिपीठ के दर्शन करूंगा।” – प्रेमसागर ने बताया।

ये दो दिन अच्छे ही थे सिवाय कुंचील की दुर्घटना के। उस दुर्घटना ने झकझोर जरूर दिया प्रेमसागर को। पर वह भी शायद मातृशक्ति और महादेव की कोई परीक्षा हो। प्रेमसागर तो हर घटना को उसी प्रकार से लेते हैं।
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:।
| प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
| दिन – 103 कुल किलोमीटर – 3121 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल। |

kaisa swasthya hai aapka… fir kai din ho gaye aapki post ko aaye huye..
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