नैनी से चित्रकूट #प्रेमसागर

16 जुलाई 2023

प्रेमसागर ब्राउनियन मोशन (रेण्डम, इसके लिये हिंदी में यादृच्छिक शब्द मिला – कामिल बुल्के शब्दकोश से) सा व्यवहार करने लगे हैं। उन्होने पुष्कर में गायत्री शक्तिपीठ के दर्शन किए। तेरह जुलाई को। उसके बाद रात्रि विश्राम किया पुष्कर की धर्मशाला में मुझसे पूछते रहे कि जूनागढ़ जायें या उज्जैन। मैंने उन्हीं पर निर्णय छोड़ा। यह जरूर बताया कि मध्यप्रदेश में दो अन्य स्थान हैं जहां शक्तिपीठ हैं – चित्रकूट और अमरकण्टक। पर इनके बारे में ज्यादा जाने बिना वे ट्रेन पकड़ कर चौदह जून को प्रयागराज पंहुच गये। उनके रहने का ठिकाना गुड्डू मिश्र जी के यहां था। एक दिन वहां रह कर वे सोलह जून की सुबह चित्रकूट के लिये रवाना हो गये।

प्रेमसागर के रहने का ठिकाना गुड्डू मिश्र जी के यहां था।

मेरे विचार से, मैहर के शारदा मंदिर दर्शन करने के बाद उन्हें चित्रकूट जा कर वहां के शारदा मंदिर के दर्शन करने की जरूरत नहीं है। जब कोई यात्री हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर रहा हो तो उसे पूरी सूक्ष्मता से यात्रा मार्ग का नियोजन करना चाहिये। एक एक कदम की बचत की जानी चाहिये। पर प्रेमसागर चलो पहले, सोचो बाद में के मूलमन्त्र पर चल रहे हैं। और वे नैनी से चित्रकूट की पदयात्रा (मेरे हिसाब से) यूं ही कर रहे हैं।

दो अलग अलग मत के लोग मैहर और चित्रकूट को शक्तिपीठ मानते हैं। यह स्कीन शॉट है गीता प्रेस की शक्तिपीठ दर्शन पुस्तक का –

उनके इस प्रकार से चलने से मुझे अब लगने लगा है कि ज्योतिर्लिंग या शक्तिपीठ दर्शन एक अवलम्ब मात्र है। मुख्य ध्येय उनका चलना है। सुबह उठना, और चल देना। शाम तक चलते जाना और चार बजे बाद रुकने और भोजन के लिये किफायती विकल्प तलाशना। यह यायावरी है। घुमक्कड़ी। शक्तिपीठ दर्शन तो निमित्त मात्र है।

पुष्कर में गायत्री शक्ति पीठ दर्शन और दो तीन अन्य मंदिरों में जाने के बारे में मेरे पास जानकारी स्केची है। चित्र हैं ढेरों। देवालयों में प्रेम सागर अगर चित्र लेने की बजाय मंदिर की ऊर्जा अपने में आत्मसात करने में ज्यादा समय लगायें तो बेहतर हो। … पता नहीं, वे करते भी हों। पदयात्रा और शक्ति पीठ दर्शन का उनकी आत्मिक उन्नति पर क्या प्रभाव पड़ा है, यह शोध का विषय हो सकता है। पर उनके खुद के कहे अनुसार उनका आत्मविश्वास और निर्भयता बहुत बढ़ी है। बारह तेरह हजार किलोमीटर की पदयात्रा से अगर आत्मविश्वास और निर्भयता का ही लाभ हुआ हो, तो भी वह बड़ी उपलब्धि में गिना जायेगा। फिर भी, मेरी अपेक्षा थी/है कि वे मातृ शक्ति की उदात्तता और उनके अनेकानेक वपुओं की गहराई जानें। माता लक्ष्मी, काली, सरस्वती, महादेवी, शांति, भ्रांति, भय, क्रोध, श्रद्धा, … जाने क्या क्या हैं। किन्ही भी तीन चार रूपोंंपर गहन चिंतन हो तो यह कार्य सार्थक हो। पता नहीं प्रेमसागर क्या सोचते हैं। या सोचते भी हैं या नहीं।

कुंचील की दुर्घटना का प्रभाव यह पड़ा है कि प्रेम सागर ने लाल वस्त्रों की बजाय सफेद धारण कर लिये हैं। पुष्कर से मंदिरों के दर्शन उन्होने सफेद कपड़ों में ही किये।

कुंचील की दुर्घटना का प्रभाव यह पड़ा है कि प्रेम सागर ने लाल वस्त्रों की बजाय सफेद धारण कर लिये हैं। पुष्कर से मंदिरों के दर्शन उन्होने सफेद कपड़ों में ही किये। सफेद वास्तव में बेहतर रंग है। शांत रंग। यह जरूर है कि सफेद कपड़ा ज्यादा जल्दी गंदा हो जाता है। एक नियम बना रखा है उन्होने कि पदयात्रा के दौरान वे साबुन का प्रयोग नहीं करते। मेरे विचार से हाईजीन की नजर से देख उन्हें इस नियम को भी तिलंजलि दे देनी चाहिये। शरीर और वस्त्रों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग किया जाना चाहिये। मैं तेल फुलेल, क्रीम, कंधी की बात नहीं कर रहा। सौंदर्य प्रसाधन नहीं होने चाहियें, पर साबुन तो हाईजीन/स्वच्छता से जुड़ा है। वह उतना ही जरूरी है जितना दातुन करना। अगर साधारण तरीके से रहना-चलना हो तो एक ही साबुन – लाइफब्वाय – रखा जाये। उसी का प्रयोग नहाने और कपड़ा कचारने में किया जाये। ऐसा करेंगे तो आइंस्टीन की आत्मा प्रसन्न होगी। वे कहते थे कि तरह तरह के साबुनों की क्या जरूरत है?! नहाने, हैण्डवाश, शैम्पू, कपड़े धोने के साबुन जैसे आधा दर्जन साबुनों की बजाय एक लाइफब्वाय की सस्ती वाली टिकिया; बस!


सवेरे कुछ देर से ही निकले प्रेमसागर। उन्होने यात्रा विवरण तो नहीं दिया पर उनके चित्रों से लगता है कि मार्ग में जसरा-बारां के पास प्रयागराज थर्मल पावर स्टेशन भी पड़ा। यह सम्भवत अब चालू हो गया हो। उसकी एक चिमनी से धुआं निकलता दीख रहा है। मैं जब 2013-14 में प्रयागराज में उत्तरमध्य रेलवे का माल यातायात प्रबंधक था तो इस ताप विद्युत गृह के यार्ड का डिजाइन स्वीकृत हो रहा था। अब एक दशक बाद यह काम करने लगा है। तीन यूनिट 660 मेगा वाट की। बगल में ही मेजा में एक और थर्मल पावर हाउस बन रहा था, वह भी शायद चालू हो गया हो। इलाके की अर्थव्यवस्था और जीविका के साधनों में बहुत उन्नति हुई होगी। मौके पर एक चाय की गुमटी वाला भी अच्छा कमा लेता होगा थर्मल सन्यंत्र के आसपास। काश प्रेमसागर वह सब देख बताते। पर उनकी यात्रा के ध्येय में यह देखना शामिल नहीं है। उसके लिये तो खुद यात्रा करनी होगी। :-)

यह थर्मल स्टेशन लोहगरा, बारां में है। लोहगरा में ही प्रेमसागर को रात को रुकने की जगह मिली। सम्भवत: वे भोलाजी दुबे के घर पर तलाश रहे थे कि घर के ओसारे में उन्हें रात गुजारने को जगह मिल जाये। वह स्वीकृति मिल गयी तो अपने परिचय के लिये प्रेमसागर ने ब्लॉग खोला। और उसमें से भरभरा कर सैकड़ों ज्योतिर्लिंग तथा शक्तिपीठ पदयात्रा की पोस्टें निकल पड़ीं तो प्रेमसागर का दर्जा आम साधू से बढ़ कर महात्मा का हो गया। उसके बाद उनका पर्याप्त आदर सत्कार हुआ। भोजन भी हुआ और ग्रुप फोटो भी।

भोला दुबे जी सम्पन्न कुटुम्ब के मुखिया हैं। चित्र में ढेरों लोगों की उपस्थिति वह दर्शाती है।

भोला दुबे जी सम्पन्न कुटुम्ब के मुखिया हैं। चित्र में ढेरों लोगों की उपस्थिति वह दर्शाती है। चित्र में एक खुशहाल पितृसत्तत्मक परिवार दीखता है। प्रेमसागर की बगल में एक छोटी बेटी – सम्भवत: भोला जी की पोती – है। शेष लड़कियां, महिलायें अंतिम पंक्ति में हैं। एक महिला – शायद भोला जी की पत्नी पास में कुर्सी पर हैं। प्रेमसागर विशिष्ट अतिथि के रूप में बीच में बैठे हैं।

भोला जी के घर आश्रय तलाश लेना और विशिष्टता जता लेना – यह प्रेमसागर का पदयात्रा कौशल्य ईर्ष्या का विषय हो सकता है। कम से कम मुझे तो ईर्ष्या हो ही रही है!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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