मैने उत्तर-मध्य रेलवे की क्षेत्रीय उपभोक्ता सलाहकार समिति की पिछली बैठक पर एक पोस्ट लिखी थी – “जय हिन्द, जय भारत, जय लालू”। यह पोस्ट २५ अक्तूबर २००७ को लिखी गयी थी। उसमें एक ऐसे रस्टिक सज्जन का जिक्र था जो ७७ वर्ष के थे, ठेठ गंवई तरीके से भाषण दे रहे थे। उनके भाषण में पर्याप्त लालूत्व था – हमारे माननीय मन्त्री महोदय की देसी दबंग शैली।
यह बैठक पुन: कल उसी होटल में अयोजित की गयी। उसी प्रकार के लोग और उसी प्रकार के भाषण थे। हमारे उक्त हीरो – जिनका नाम श्री मंगल सिंह है, और जो छपरा-सिवान-गोपालगंज बेल्ट से ही आते हैं, भी आये थे। माइक बारबार खींच कर उन्हें जो भी बोलना था, उसे बोल कर ही छोड़ा मंगल सिंह जी ने। अर्थात जैसे पिछली बैठक में थे, वैसे ही।
अन्तर केवल भोजन के दौरान आया। पिछली बैठक में वे जमीन पर बैठ कर बफे भोजन कर रहे थे। पर इस बार अकेले, मीटिंग स्थल की कुर्सी पर बैठ, प्लेट मेज पर रख कर कर रहे थे।
छ महीने में ही श्री मंगल सिंह का शहरीकरण दीखने लगा। आप उनके भोजन करने के पिछली और इस बैठक के चित्रों का मिलान करें –
अगली बैठक में श्री मंगल सिंह अंग्रेजी के शब्द भी न ठेलने लगें भाषण में!

मंगलसिंह जी के दर्शन दुबारा हुये। आज मंगलवार है न!
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ईश्वर करे कि ये मेरा वहम ही हो, लेकिन कहीं कुछ गडबड सा लग रहा है । दूसरे चित्र में देखें तो मंगलसिंहजी मुदित भाव से भोजन कर रहे हैं । उनके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव हैं । इस बार के चित्र में वो भाव गायब हैं, ईश्वर न करे कि मंगलसिंह जी को कोई शारीरिक/मानसिक कष्ट हो । कुल मिलाकर मंगलसिंह जी की बाडी लैंग्वेज कुछ अलग कह रही है उनके उस स्वभाव से जिसका आपने वर्णन किया है । कल से इस चित्र को कई बार देख चुका हूँ और इस टिप्पणी को लिखने से बच रहा था ।
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Kya baat hai gyan ji, Mangal singh se pahli mulaqat Mangalwar ko. anand aaya. yun hi ghumte ghamte pahunch gaya tha par ab lagta hai roz hi aana padega, Babhaiiiiiii
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कुछ ही दिनों में मंगल जी ‘व्यक्ति’ से ‘अनुव्यक्ति’ हो जाएंगे — ट्रांस्लेटेड पर्सनैलिटी. और विकलांग अंग्रेज़ी बूंका करेंगे . बस आप नोट करते जाइए .
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देश व काल के अनुरूप बदलाव होने ही चाहिए.
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अभी तो शुरुआत है, आगे-आगे देखिये क्या होता है !
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इस बदलाव का कुछ सार्थक उपयोग भी हो। उन्हे हिन्दी ब्लागिंग के लिये प्रेरित किया जाये तो कुछ जमीन से जुडी बाते भी पता चलेंगी हम सब को। :)
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जब लालू खुदई को बदल रै है इत्ता तो समर्थक तो बदलेंगे ही न अपने को!
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शहरिकरण तो कमोबेश सबका इसी तरह से होता है, जब हम भी पहली बार गाँव से बाहर निकले चम्मच से सही तरीके से नहीं खा पाते थे( किस उम्र में यह मत पूछियेगा)काँटे – छुरी और चाईनीज नूडल्स खाने की स्टिक से खाना तो अब भी नहीं आता। नूडल्स सादे चम्मच या हाथ से ही खा लेते हैं, शायद अभी शहरिकरण पूरी तौर से नहीं हुआ। :)
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जब लालूजी ने रेलवे का आधुनिकीकरण कर दिया तो श्रीमान मंगल सिंह कैसे और कब तक अछूते रहेंगे.वेषभूषा ना लालूजी ने बदली न हीमंगल सिंहजी को बदलनी होगी.बेमिसाल कम्पैरिसन, तब से अब तक.
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