स्टैटकाउण्टर अब बताता है कि लगभग दो तिहाई पाठक मेरे ब्लॉग पर या तो सर्च इंजन के माध्यम से आ रहे हैं या सीधे। मैं इस सूचना को उचित परिपेक्ष्य में नहीं ले पा रहा। अभी भी हिन्दी शब्दों का सर्च इण्टरनेट पर बहुत कम है। मैं स्वयम भी जितना सर्च अंग्रेजी के शब्दों के साथ करता हूं, हिन्दी में सर्च उसका दशमांश भी नहीं है। फिर भी सर्च बढ़ा है और साथ में हिन्दी में मेरे पन्नों की संख्या भी। उस दिन मैं हजारी प्रसाद द्विवेदी जी पर फोटो सर्च कर रहा था और अधिकांश लिंक मुझे मेरे अपने पन्नों के मिले! मैं किसी विकीपेडिया जैसी साइट से उनका चित्र कबाड़ने के उद्यम में था चारु-चंद्रलेख के संदर्भ में चस्पां करने को। पर मुझे अपनी पुरानी पोस्टों के चित्र मिले। जैसे कि मैं द्विवेदी जी पर अथॉरिटी होऊं!
“सेक्स” या “सेक्सी” शब्द का सर्च शायद बहुत होता है। मेरी एक टिल्ल सी पोस्ट का शीर्षक यह शब्द रखता है। उस पोस्ट में कुछ भी उद्दीपन करने वाला नहीं है। पोस्ट भी जमाना हो गया लिखे। पर उस पर अभी भी कुछ पाठक सर्च के माध्यम से पंहुचते हैं। अगर मैं माइल्ड-उद्दीपन सामग्री का ब्लॉग चला रहा होता तो अब तक सर्च के माध्यम से ही बहुत यातायात मिलने लगता। पर तब वह ब्लॉग “मानसिक हलचल” नहीं, “मानसिक वमन” होता।
अब शायद समय है कि अपने लेखन को सर्च-इफेक्टिव बनाने पर ध्यान दिया जाये – जैसी मशक्कत अंग्रेजी में लिखने वाले करते हैं। पर तब मानसिक हलचल मद्धिम कर सर्च इंजन की बिल में घुसना होगा। उससे बेहतर है कि हिन्दी में कोई ब्लॉगिंग विषयक लिखने वालों का लिखा पढ़ कर सीखा जाये। लेकिन समस्या यह है कि अभी लोग कविता ज्यादा ठेल रहे हैं; (नीरज जी से क्षमा याचना सहित, और उन्होंने स्वीकार कर लिया है, यह जान कर शांति मिली है) और इस प्रकार के लेखन के लिये मात्र रवि रतलामी ही हैं!
मित्रों; हिन्दी ब्लॉगिंग में ब्लॉगिंग विषयक लेखन (जिसमें हिन्दी सर्च-इंजन ऑप्टिमाइजेशन भी हो) बहुत जरूरी है और इस क्षेत्र में अथॉरिटी से लिखने वालों का टोटा है। अगर टोटा नहीं है तो मेरा हिन्दी ब्लॉगजगत का परिभ्रमण अपर्याप्त है। क्या लोग मेरा ज्ञानवर्धन करने की कृपा करेंगे?
| चलती गाड़ी में हिचकोले खाते ऑफलाइन लिखने और सडल्ले कनेक्शन से पोस्ट करने के कारण मैं रवि रतलामी जी को लिंकित नहीं कर पा रहा। अगर सवेरे पब्लिश होने तक (तब भी यह ट्रेनचलायमान ही होगी) उनके ब्लॉग को लिंकित न कर पाया तो सॉरी! बाकी आप सब उन्हें जानते तो हैं ही! |

क्या भईया आप भी…हमारी हलकी फुलकी टिप्पणी को इतना सीरिअसली ले लिए हैं…ये ना इंसाफी है…हम तो तनिक यूँ ही चुहुल के लिए लिखे थे..आप उस पंक्ति को दुबारा प्रतिष्ठित कर हमें अनुग्रहित करें…और भविष्य में हमारी बात को सहज मजाक में लिया करें वरना हमें बहुत मानसिक कष्ट होगा…नीरज
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ज्ञानजी…आपका लिखा मानसिक हलचल पैदा कर देता है लेकिन जैसे घर और बच्चे दिखते है तो हलचल का रुख उधर मुड़ जाता है… फिलहाल अभी पढ़कर ही मानसिक हलचल शांत करते हैं..
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सत्य है कि हिन्दी सर्च-इंजन ऑप्टिमाइजेशन के कई अंग्रेजी पोस्ट हमने चांटा है पर हिन्दी ब्लाग में इसके लिए प्रस्तुति योग्य कुछ नहीं लिख पाया है । और सहीं कहें तो ठीक से पल्ले नहीं पडा है तो क्या खाक लिखें, हा हा हा । रवि भाई और कुछ नये ब्लागर्स जो तकनीकि पोस्ट लिख रहें हैं उनसे हमारी भी अपेक्षा है कि वे इस पर लिखें ।विचार को हवा देने के लिए (वैचारिक मानसिक हलचल) धन्यवाद ।
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@ नीरज गोस्वामी – क्षमा याचना करता हूं नीरज जी। यह वास्तव में हल्के-फुल्के में गलती हो गयी।कृपया मुझे अन्यथा न लें। मैने पंक्ति काट दी है। आप कृपया देख लें।
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“लेकिन समस्या यह है कि अभी लोग कविता ज्यादा ठेल रहे हैं”हमें आप के इस कथन पर घनघोर आपत्ति है…ये कहाँ और कैसे दर्ज करनी है कृपया बताएं.दूसरे हमें तो सिर्फ़ इस बात से मतलब है की लोग ब्लॉग पर आयें वो सर्च इंजिन से आयें या कहीं और से…कौन माथा लगाये…अपना तो ये है की:इन्हीं पत्थरों से हो कर अगर आ सको तो आओमेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां (बगीचा) नहीं है नीरज
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यह सच है कि हिन्दी चिट्ठों पर सबसे ज्यादा पाठक सर्च इंजन से ही आते है। मेरे ब्लॉग पर यह आंकड़ा 82% तक पहुँच गया है। ढूंढने वालों मे अभी भी सेक्स, सम-सामयिक, हिन्दी सहायता ढूंढने वाले काफी लोग है। लेकिन अभी ये तो सिर्फ़ एक जरिया है, असली ताकत है लेखन की क्षमता, आपके कंटेन्ट का पावर। दुकान मे आने वाले हर विजिटर को ग्राहक मे बदल पाना ही दुकानदार की सफ़लता का राज होता है। सर्च इंजन आपको विजिटर दे रहा है, उसे रेग्यूलर पाठक मे बदलना ब्लॉगर का काम है।
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सेक्स और गधे पर इतना जोरदा बहस?मैं क्यों पीछे रहूँ?एक पुराना चुटकुला याद आ रहा है।एक गंजे से अपने गंजेपन के बारे में पूछा गया।उसने उत्तर दिया।गंजे दो किस्म के होते हैं।एक: जो आगे से गंजे हैं, यह लोग “सोचते” बहुत हैं।दो: जो पीछे से गंजे होते हैं, यह लोग “सेक्सी” होते हैं।और जब पूछा गया के जो आगे और पीछे से गंजे होते हैं उनका क्या?उत्तर मिला “ये गधे सोचते हैं कि हम सेक्सी हैं”।चुटकुला पुराना है और सभी गंजों से इस मज़ाक के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
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लोगो को अभी हिन्दी लेखन के बारे में ही पूरी जानकारी नहीं फिर खोज की बात ही बाद में आती है.
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माइल्ड उद्दीपन की घणी डिमांड है। कुछ समय पहले तहलका ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें बताया गया था कि हिंदी में सविताभाभी डाट काम बहुत ऊपर है विजिट के मामले में। कई खलीफा वैबसाइटों के मुकाबले। उन्होने विस्तार से आंकडे दिये थे उनके मुताबिक शायद एनडीटीवी और बीबीसीहिंदी से भी आगे सविताभाभी चल रही हैं। सविता भाभी वन मैन शो है। इंटरनेट देखने वालों के कैरेक्टर को बारे में बहुत कुछ कहता है।
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हिन्दी ब्लॉगिंग में ब्लॉगिंग विषयक लेखन (जिसमें हिन्दी सर्च-इंजन ऑप्टिमाइजेशन भी हो) बहुत जरूरी है और इस क्षेत्र में अथॉरिटी से लिखने वालों का टोटा है। सहमत हूँ। …हम जैसे अनाड़ी चिठेरों के लिए आपकी चिन्तन श्रृंखला लाइट हाउस का काम करती है।
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