पत्नी को पीटना क्या सहज व्यवहार है?


मेरी पत्नी जी की पोस्ट पर देर से आई दो टिप्पणियां विचार करने को बाध्य करती हैं। सम्भव है कि बहुत से लोग उस पोस्ट पर अब न जायें, इस लिये इस पोस्ट को लिखने की जरूरत पड़ी।

पत्नी को पीटना, या शराब पी कर पीटना (जिसमें बहाना रहता है कि आदमी अपने होश हवास में न था) बहुत चल रहा है भारतीय समाज में। इसके खिलाफ बहुत कुछ होता भी नहीं। पर न होने का अर्थ इसे सामान्य या सहज व्यवहार मान लिया जाये?

मैं उस पोस्ट पर ज्ञान जी की टिप्पणी और उस पर विश्वनाथ जी का प्रत्युत्तर आपके सामने रखता हूं। आप ही निर्णय करें: 

ज्ञान जी की टिप्पणी

Gyani

जी. विश्वनाथ जी की प्रतिटिप्पणी

Vishwanath Small

आप लोग कितनी सहजता से किसी मृत व्यक्ति के लिए ‘कमीना’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं।

वह केवल इसलिए के इससे भी ज्यादा शक्तिशाली या भावुक शब्द हम लोग इस सार्वजनिक मंच पर प्रयोग नहीं करना चाहते।
व्यक्ति मृत है तो क्या हुआ?
हिटलर, रावण, कंस जैसे लोग अब नहीं रहे।
क्या हम उनका गुण गान में लग जाएं?

क्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यह मानते हैं कि पत्नी की अंधाधुंध पिटाई करने वाला कमीना है, फिर चाहे वह शराबी हो या ना हो।

जो अपनी पत्नी को पीटता है वह हमारी नज़रों में कमीना ही रहेगा।
शराब यदि पीता है तो उसे क्या पीटने का लाइसेन्स मिलता है?
शराब पीने के बाद यदि वह अपने आप पर काबू नहीं रख सकता तो उसे शराब छोड़ना चाहिए।

या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? पूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि ३३ साल में कई बार पत्नी से झडप हुई है पर एक बार भी मैंने उसपर हाथ नहीं उठाया। एक बूँद शराब भी नहीं पी। मेरे जैसे हजारों मर्द होंगे। यकीन मानिए पत्नी को न पीटना कोई मुश्किल या असंभव काम नहीं है!
मैं तो आपकी सहजता पर हैरान हूँ! हम भी आपके विचारों से हैरान हैं!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

35 thoughts on “पत्नी को पीटना क्या सहज व्यवहार है?

  1. पत्नी को ही क्या, किसी को भी पीटना ग़लत है. कोई किसी कारण से भी यह करे, ग़लत है. पत्नी के विषय में तो यह भी कहना चाहूँगा कि जो पति के व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करे उस पर हाथ उठाना, यह तो एक छमा न किया जाने वाला अपराध है.एक दूसरा पक्ष भी है. कल सुबह पार्क में एक सज्जन मिले, जिनके बारे में बताया गया कि उनकी पत्नी उन्हें बुरी तरह पीटती हैं. मजे कि बात यह है कि किसी को भी उनसे कोई सहानुभूति नहीं थी.

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  2. घर में अपनी मां को और मोहल्‍ले में कई ‘काकियों-भाभियों’ को पिटते देखा और हर बार बुरा लगा । इसके बावजूद, अपनों से छोटों पर हाथ उठाया, कई बार ।वैवाहिक जीवन को 37 वर्ष पूरे हो रहे हैं किन्‍तु पत्‍नी पर एक बार भी हाथ उठाने का विचार भी नहीं आया ।’नारी’ को समान दर्जा दिए जाने का हामी हूं और अपने व्‍यवहार में इस धारणा पर अधिकाधिक अमल करने का प्रयास भी करता हूं किन्‍तु पत्‍नी के प्रति ‘स्‍वामी भाव’ अ‍थवा ‘अधिकार भाव’ अभी ज्ञी जकडे हुए हैं जिन्‍हें भूलने की कोशिश (या कहिए कि स्‍वांग) करता रहता हूं ।

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  3. रीता भाभीजी के इशारे पर आ०ज्ञानदत्तजी नें तो अदालत ही लगा दी है।जो आरहा है सफाई दे रहा है कि भईया मैने पिये बगैर पिये कभी मारना तो दूर हाथ तक नहीं उठाया।रचनाजी कह रही हैंकि हाथ उठाना भी मारनें के बराबर है अब यह कोई कैसे समझाए कि भाइ हाथ अपनें आप को चपतियानें के लिए कभी कभी उठाना पड़्ता है।इसके बिना स्टैटिक एनर्जी काऍनेटिक में कन्वर्ट नहीं होती।अपनीं सफायी में इतना ही कहना है कि ८१में विवाह हुआ९९में विधुर तो ज्यादा समय मनुहार में निकल गया,मारनें पीटनें का समय ही न मिला।वैसे अब कहीं मिल जाए तो जल्दी पल्ला झाड़्नें के लिए एक थप्पड़ जरूर लगाँऊ।लेकिन मार पीट होती है यह एक सच्चाई हैकतिपय कारण विवेकसिंहजी नें इंगित किये है,और भी सामजिक,आर्थिक और पारिवारिक कारणों के चलते भी ऎसे कृत्य होते हैं।किन्तु रचना जी का निम्न कथन चर्चा को एक नए आयाम की तरफ ले जारहा है,जिसके लिए ज्ञानदत्तजी को एक नई सीरीज चलानीं पड़ सकती है।@ “पति और पत्नी के बीच मे अगर पत्नी ही हमेशा चुप हर कर हर बात मान ले और पति ये कहे की हमने कोई दबाव नहीं डाला तो ये भी एक भ्रम हैं क्युकी पत्नी को पति को सर्वस्व मानने की शिक्षा बचपण से दी जाती हैं । पति हैं तो तुम्हारा जीवन जीवन हैं , पति हैं तो तुम श्रृगार करो , पति हैं तो तुम सुरक्षित हो , पति हैं तो तुम समाज मे सम्मानित हो ये सब पति को एक ऐसे पेडस्टल पर खड़ा कर देते हैं जहाँ पर अगर वो हाथ उठाता भी हैं तो वो उसके “अधिकार ” मे शामिल समझा जाता हैं और बहुत सी स्त्रियाँ ख़ुद भी इसे “असीम अधिकार और प्यार मानती” हैं ।” कूछ प्रश्न रचनाजी सेः-प्रायःमाँ बेटी को ये शिक्षाएँ देती हैं—१-पति को सर्वस्व मानों–नहीं मोहल्ले वालों को सर्वस्व मानों?२-पति तो तुम्हारा जीवन है–पति को यमराज समझो-यार को जीवनधार समझो?३-पति है तो श्रृंगार करो- नहीं दोस्तों के लिए श्रृंगार करो?४-पति है तो तुम सुरक्षित हो-नहीं पति चूहा है,दमदार यार बनाओ?५-पति है तो तुम समाज में सम्मानित हो-नहीं पति रखना तो स्वयं में असम्मान है,सम्मान तो क०के मैनेजिंग ड़ाइरेक्टर,इमीजिएट बास,शहर के ड़ी०एम०,आई०जी,०ड़ी०आई०जी० से व्यवहार रखनें से बढ़्ता है? रचनाजी,नहीं अभी कोई प्रतिक्रिया मत कीजिए।थोड़ा ठहर कर सोंचिए कि आप का अस्तित्त्व सिर्फ आप के लिए ही नहीं है।आप एक माँ हैं यह ध्यान में रखते हुए सोंचिए और सिर्फ अभी का नहीं आगे १०-१५ साल आगे की सोंचिए जब आप की बेटी विवाह योग्य हो तब की सोंचिए कि आप उसे क्या शिक्षा देंगी? यदि आप के पुत्री नहीं है तो भी यह ध्यान रखनें कि जरूरत है कि पुत्र की सास आपके बेटे के वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है।मैं दुर्भाग्य से ऎसे उच्च पदस्थ और शिक्षित २-३ परिवारों को जानता हूँ और गलती से मध्यस्थ की भूमिका निभा चुका हूँ जहाँ लड़्की की माँ के व्यवहार और दामाद के घर अनावश्यक दखलंदाजी के चलते बसे बसाये घर बिखर गये।मैं जानता हूँ कि हमारे समाज में नारी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।उसके लिए शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार,वातावरण धैर्य और शोहबत चाहिये।आज परिस्थितियाँ पहिले की तुलना में काफी अनुकूल हैं फिर भी अभी बहुत समय चाहिये।उक्त प्रकार की टिप्पड़ियाँ कसैलापन बढ़ाती हैं और बायस्ड़ करती हैं।“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चिटकाय।टूटे से फिर न जुड़े,जुड़े गाँठ पड़ि जाय।”दाम्पत्य जीवन का मूलमंत्र है एडजॅस्टमेन्ट।मित्र और पति पत्नी को उसके गुण दोषों के साथ सम्पूर्ण्ता से ही स्वीकार किया जाता है/किया जान चाहिये।रचनाजी कुछ अनर्गल कह गया होऊँ तो क्षमा कीजिएगा और क्रोध तो जरा भी नहीं,क्योंकी मैं सरस्वती का उपासक हूँ काली मुझे जरा भी नहीं सुहाती।( ज्ञानदत्त भाई टिप्पड़ी तो लेख बन गयी।सम्पादन करनें से लेकर न छापनें तक का निर्णय लेनें के लिए आप पूर्णतया स्वतंत्र हैं,बिना हिचक-सुमंत मिश्र)

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  4. पता नहीं, पत्नी को कौन पीटता है? मेरे आस-पास ज़्यादातर वैसे ही लोग हैं, जो पत्नी की पिटाई से बचने का रास्ता ढूंढ़ते हैं। (just kidding)

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  5. नारी पर लांछन लगाया ? जबाब को कुतर्क कहा ?नीचा दिखाया ? शिव शिव शिव . अब तो ईमानदार समाज की व्यवस्था में कुछ न किया जा सकेगा . अफसोस :)

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  6. सिदार्थ शंकर त्रिपाठी जी जो मैने कहा हैं वही आप को आज एक और ब्लॉग पर भी मिल जाएगा पढ़ लीजिएगा । आप श्याद ये भूल जाते हैं की बात और डिस्कशन “नोर्मल” चीजों पर नहीं होता हैं । यहाँ बात एक अपवाद से आए कमेन्ट पर हो रही थी और आप ने उसको मेरे ऊपर एक पर्सनल लांछन की तरह दिया हैं की मैने क्या देखा हैं और क्या नहीं देखा हैं । अब आप मे और इस पोस्ट को जिस टिपण्णी की वजह से शुरू किया गया उसमे क्या फरक हैं आप ख़ुद बताये । पति पत्नी का कर्तव्य ही साथ रहना होता हैं इस मे क्या सही और ग़लत होगा और इस पर क्या डिस्कशन करना होगा । आप अपने ब्लॉग के अलावा शास्त्री जी के ब्लॉग पर भी यही बाते मेरे बारे मे लिखते रहे हैं । और अगर आप को जवाब दिया गया हैं तो आप उसको कुतर्क कहते । बजाये ये देखने के रचना को नीचा कैसे दिखाया जाए अगर सार्थक बहस करे की समाज मे परिवारों ग़लत क्या क्या हो रहा हैं तो हो सकता हैं हम एक ईमानदार समाज की व्यवस्था मे कुछ कर सके

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  7. यह मनुष्य का सहज स्वभाव रहा है कि जब स्थितियाँ विपरीत होतीं हैं तो उसे क्रोध आता है, और उसे बल प्रयोग का विचार आता ही है . उस स्थिति में यदि बल प्रयोग करना सुरक्षित है तो वह करता ही है . अब यह अलग बात है कि यह सुरक्षा की भावना अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग होती है . उदाहरण के लिए देखा जाए तो गरीब लोग ही पत्नी पर हाथ उठाते ज्यादा देखे जाते हैं . मेरे विचार से ऐसा इसलिए कि उनको अपने घर की इज़्ज़त उछलने का डर अपेक्षाकृत कम रहता है . पत्नी को पीटने की बात बाहर लोग जानेंगे भी तो क्या हुआ . बहुत ज्यादा बदनामी होने वाली नहीं है . यह लगभग ऐसा ही है कि सडक पर होने वाले झगडों में जो पक्ष अपेक्षाकृत संख्याबल में कम होता है वह बात को रफा दफा करने की कोशिश में रहता है और बहुमत वाले लोग झगडा करने पर उतारू होते हैं . अब अगर अल्पमत वालों का एक और दल वहाँ पहुँच जाता है तो स्थितियाँ बदले देर नहीं लगती . यह मेरा अभी एक हफ्ते पहले का ही अनुभव है . अगर किसी को लगता है कि सिर्फ पति ही हाथ उठाता है तो ऐसा नहीं है कुछ मामलों में पत्नी भी हाथ उठाती देखीं जातीं हैं . उसकी चर्चा क्यों नहीं . क्या इसलिए कि वे मामले बेचारे अल्पमत में हैं ? :)

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  8. आपकी इस पोस्ट ने तो हमें चकनाचूर (shatter) ही कर दिया. हमें भी विश्वनाथ जी से पूर्ण सहमति है और इन दूसरे ज्ञान (या उसका पूर्ण अभाव) के विचारों से से हैरान हैं!

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  9. पूरी चर्चा में यह आम सहमति दिख रही है कि पत्नी पर हाथ उठाना घोर दुष्कृत्य और अधमता का कार्य है। इससे तो केवल सहमत ही हुआ जा सकता है। इस ब्लॉग पर पिछले दिनों ‘खरी-खरी’ जी के बाद अब ये ‘(अ)ज्ञान’ जी ने कुछ बेतुकी बात छेड़ दी है। इसे एब्नॉर्मल बेसुरा राग मान कर उपेक्षित ही किया जाना चाहिए।वैसे इस चर्चा में रचना जी ने पति-पत्नी सम्बन्धों का जो चित्रांकन किया है, उससे यही लगता है कि इन्होंने अपने आस-पास आपसी प्रेमभाव, समदृष्टि व सुख-सन्तोष से रहने वाले वैवाहिक जोड़ों को कम ही देखा है, या शायद कहीं देखा ही नही है। …इनके वर्णन जैसे अधम उदाहरण जरूर होते होंगे, लेकिन सर्वत्र ऐसी ही दुर्दशा है ऐसा देखने वाली दृष्टि ठीक नहीं लगती। इस दुनिया में अच्छे और बुरे दोनो प्रकार के स्त्री और पुरुष मिल जाएंगे। यह ब्लॉग जगत भी एक सैम्‍पल हो सकता है। ‘व्यक्तिगत प्रश्न का दायरा’ जरूर सोचने पर मजबूर करता है। लेकिन इसकी वजह यह है कि इन प्रश्नों को यदि समाज के स्वयंभू ठेकेदारों के हाथ में दे दिया जाय तो स्थिति और भयावह हो जाएगी। अवान्छित हस्तक्षेप होने का खतरा बढ़ जाएगा। ‘परिवार’ नामक संस्था की गरिमा और संप्रभुता को तोड़ने वाली शक्तियाँ प्रभावी होकर इस अमूल्य निधि को समाप्त कर देंगी। निरन्तर अराजक होते समाज में अभी परिवार को अक्षुण्ण बनाये रखने का प्रयास हो तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

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  10. संस्कार और माहौल वाली बात है. समाज को सुधरने में अभी समय लगेगा. परिवर्तन आ रहा है मगर मंद गति से.हमारी श्रीमती जी ने तो जैव्लिन थ्रो और शॉट पुट की अच्छी खिलाड़िन रह चुकी हैं सो हम तो सारे झगड़े टंटे शांति से सुलझाने में ही परम श्रद्धा रखते हैं. :-)

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