कुछ ब्लॉगर, जिनसे ओरीजिनल* नया अपेक्षित है, थोक कट-पेस्टीय ठेलते पाये गये हैं। ऐसा नहीं कि वह पढ़ना खराब लगा है। बहुधा वे जो प्रस्तुत करते हैं वह पहले नहीं पढ़ा होता और वह स्तरीय भी होता है। पर वह उनके ब्लॉग पर पढ़ना खराब लगता है।
सतत लिख पाना कठिन कार्य है। और अपने ब्लॉग पर कुछ नया पब्लिश देखने का लालच भी बहुत होता है। पर यह शॉर्टकट फायदेमन्द नहीं होता। आप अपने खेत में उगाने की बजाय मार्केट से ले कर या किसी और के खेत से उखाड़ कर प्रस्तुत करने लगें तो देर तक चलेगा नहीं। भले ही आप साभार में उस सोर्स को उद्धृत करते हों; पर अगर आप लॉक-स्टॉक-बैरल कट-पेस्टिया ठेलते हैं, तो बहुत समय तक ठेल नहीं पायेंगे।
लोग मौलिक लिखें। अपने ब्लॉग पर यातायात बढ़ाने के लिये अपने ब्लॉग से कुछ ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर अच्छी टिप्पणियां करें। उनपर गेस्ट पोस्ट लिखने का यत्न करें। अपना नेटवर्क बढ़ायें। यह तो करना होगा ही। किसी अन्य क्षेत्र में वे सेलिब्रिटी हैं तो दूसरी बात है; अन्यथा ब्लॉगरी का कोई शॉर्टकट है – ऐसा नहीं लगता। कोई ओवरनाइट अनूप शुक्ल बन कर दिखाये!
* – वैसे ओरीजिनल लेखन अपने आप में कोई खास मायने नहीं रखता। आप सोचते हैं – उसमें आपका पठन-पाठन और आपके सामाजिक इण्टरेक्शन आदि के रूप में बहुत कुछ औरों का योगदान होता है। पर उसमें आपकी सोच और शैली मिलकर एक फ्लेवर देती है। कट-पेस्टीय लेखन में वह फ्लेवर गायब हो जाता है। आपकी विभिन्न पोस्टों में वह जायका गायब होने पर आपके ब्लॉग की अलग पहचान (यू.एस.पी.) नहीं बन पाती। कई लोग इस फ्लेवर/जायके को महत्व नहीं देते। पर इसे महत्व दिये बिना पार भी नहीं पाया जा सकता पाठकीय बैरियर को!
विषयान्तर: अनूप शुक्ल की यू.एस.पी. (Unique Selling Proposition) है: हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै? और यह अब यू.एस.पी. लगता ही नहीं। असल में हम बहुत से लोग जबरी लिखने वाले हो गये हैं। मसलन हमारी यू.एस.पी. हो सकती है: के रोके हमार जबरी ठेलन!
नोवाऊ (Nouveau – टटके) लोगों की च** टोली है यह ब्लॉगरी और स्थापित साहित्य-स्तम्भ वाले लोग केवल हाथ ही मल सकते हैं ब्लॉगरों के जबरियत्व पर! अन्यथा उन्हें आना, रहना और जीतना होगा यह स्पेस, इस स्पेस की शर्तों पर।

अटको मत। चलते चलो।।अटको मत। चलते चलो।। के नाम से जो आपने चित्र लगा रखा है, दरअसल वह सारी बात कह देता है। कुछ लोग मौलिक पोस्ट का भ्रम पाले रखते हैं पर मौलिकता के नाम पर क्या होता है …………….केसर hindi.peoplesnewsnetwork.org
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अजी ओवरनआइट तो छोड़ो, कई नाइटों में भी कोई अनूप शुक्लजी बनकर दिखाये। वैसे ये नाइट का मामला आप अनूपजी से क्यों जोड़ रहे हैं। कानपुर में नाइट गतिविधियां भौत डेंजरस हैं, उठाईगिरी से लेकर मर्डर तक कुछ भी हो सकता है। अनूपजी भले आदमी हैं, उनको कानपुर की नाइट गतिविधियों में आप ना घसीटें।
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sir aaj to ekdam sahi aur satik bat likh dali hai. good morning and good day
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आपका कहना बिल्कुल सही है….हां , ज़रूरत पढ़ने पर लिंक अवश्य दी जानी चाहिए।
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आपका का कहना एकदम सही है.
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अनूप भाई की शैली तो हम सदा से कहते आये हैँ “पेटन्ट ” करवा लेँ -आप किन पोस्टोँ के बारे मेँ “कट -पेस्टीय” कह रहे हैँ वो नहीँ समझी –लावण्या
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मुझे भी थोक कट-पेस्ट पसन्द नहीं।ज़रूरत पढ़ने पर लिंक (कडी) दी जा सकती है।
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अनूप जी वाली बात सही है। औरिजिनल होना आसान नहीं है।
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आपकी इस प्रविष्टि से बहुत बल मिला. मैं तो जल्दी ही विचलन का शिकार होने वाला था. इस पोस्ट से सहारा मिलेगा. मौलिक लिखना ब्लोग और ब्लोगर दोनों की बेहतरी है.
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ब्लॉगरी का कोई शॉर्टकट है – ऐसा नहीं लगता। कोई ओवरनाइट अनूप शुक्ल बन कर दिखाये! -बिल्कुल सही कहा. हम तो यह चैलेन्ज नहीं स्वीकार सकते. हमारे बस का नहीं.
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