थोक कट-पेस्टीय लेखन


कुछ ब्लॉगर, जिनसे ओरीजिनल* नया अपेक्षित है, थोक कट-पेस्टीय ठेलते पाये गये हैं। ऐसा नहीं कि वह पढ़ना खराब लगा है। बहुधा वे जो प्रस्तुत करते हैं वह पहले नहीं पढ़ा होता और वह स्तरीय भी होता है। पर वह उनके ब्लॉग पर पढ़ना खराब लगता है।

सतत लिख पाना कठिन कार्य है। और अपने ब्लॉग पर कुछ नया पब्लिश देखने का लालच भी बहुत होता है। पर यह शॉर्टकट फायदेमन्द नहीं होता। आप अपने खेत में उगाने की बजाय मार्केट से ले कर या किसी और के खेत से उखाड़ कर प्रस्तुत करने लगें तो देर तक चलेगा नहीं। भले ही आप साभार में उस सोर्स को उद्धृत करते हों; पर अगर आप लॉक-स्टॉक-बैरल कट-पेस्टिया ठेलते हैं, तो बहुत समय तक ठेल नहीं पायेंगे।

Anup Shuklaलोग मौलिक लिखें। अपने ब्लॉग पर यातायात बढ़ाने के लिये अपने ब्लॉग से कुछ ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर अच्छी टिप्पणियां करें। उनपर गेस्ट पोस्ट लिखने का यत्न करें। अपना नेटवर्क बढ़ायें। यह तो करना होगा ही। किसी अन्य क्षेत्र में वे सेलिब्रिटी हैं तो दूसरी बात है; अन्यथा ब्लॉगरी का कोई शॉर्टकट है – ऐसा नहीं लगता। कोई ओवरनाइट अनूप शुक्ल बन कर दिखाये!


* – वैसे ओरीजिनल लेखन अपने आप में कोई खास मायने नहीं रखता। आप सोचते हैं – उसमें आपका पठन-पाठन और आपके सामाजिक इण्टरेक्शन आदि के रूप में बहुत कुछ औरों का योगदान होता है। पर उसमें आपकी सोच और शैली मिलकर एक फ्लेवर देती है। कट-पेस्टीय लेखन में वह फ्लेवर गायब हो जाता है। आपकी विभिन्न पोस्टों में वह जायका गायब होने पर आपके ब्लॉग की अलग पहचान (यू.एस.पी.) नहीं बन पाती। कई लोग इस फ्लेवर/जायके को महत्व नहीं देते। पर इसे महत्व दिये बिना पार भी नहीं पाया जा सकता पाठकीय बैरियर को! 

विषयान्तर: अनूप शुक्ल की यू.एस.पी. (Unique Selling Proposition) है: हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै? और यह अब यू.एस.पी. लगता ही नहीं। असल में हम बहुत से लोग जबरी लिखने वाले हो गये हैं। मसलन हमारी यू.एस.पी. हो सकती है: के रोके हमार जबरी ठेलन!   
नोवाऊ (Nouveau – टटके) लोगों की च** टोली है यह ब्लॉगरी और स्थापित साहित्य-स्तम्भ वाले लोग केवल हाथ ही मल सकते हैं ब्लॉगरों के जबरियत्व पर! अन्यथा उन्हें आना, रहना और जीतना होगा यह स्पेस, इस स्पेस की शर्तों पर।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

53 thoughts on “थोक कट-पेस्टीय लेखन

  1. आपका लाया हुआ मुद्दा विचारणीय है मगर उस पर टिप्पणियाँ पढने में वाकई आनंद आया. जब अंगद और हनुमान जैसे महाबली विशालकाय पत्थर दाल रहे हों तो बेचारी नन्हीं गिलहरी को थोड़ी सी रेत भी डालने देना चाहिए. उस गिलहरी की पीठ पर भगवान् राम ने भी स्नेह से हाथ फेरा था. मैं चोरी के माल की तरफदारी नहीं कर रहा मगर व्यक्ति अपनी सीमाओं के भीतर ही कुछ करता है और धीरे-धीरे बेहतर होता जाता है गाँवों में चिट-फंड चलाने वाले जहाजों के मालिक हो जाते हैं. उठाईगीरे “भाई” हो जाते हैं. जेबकतरे मुजाहिद बन जाते हैं, डाकू सांसद बन जाते हैं. आप देखेंगे कि इसी परम्परा को आगे चलाते हुए सारे कटपेस्टकर लोग भी एक दिन इतने बड़े साहित्यकार बनेंगे कि उनकी किताबें विश्वविद्यालय के कोर्स में पढाई जायेंगी (अन्दर की बात – कईयों की तो पहले से ही कोर्स में लगी हुई हैं)

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  2. अनूप शुक्‍ल यदि कोई और बनने में लग जाते तो अनूप शुक्‍ल नहीं बन पाते। जाहिर है, आदमी को अपने काम से काम रखना चाहिए।जरूरी नहीं कि प्रतिदिन लिखा ही जाए। यह भी जस्‍री नहीं कि प्रतिदिन लिखने के लिए कोई विषय हो ही। ऐसे में केवल टिप्‍पणी करना कम आनन्‍ददायी नहीं होता।ब्‍लाग लेखन हमारी अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम बने-व्‍यसन नहीं। किसी चिकित्‍सक ने नहीं कहा कि प्रतिदिन लिखे बगैर स्‍वस्‍थ नहीं रह पाएंगे।और हर कोई अनूप शुक्‍ल बन गया तो अनूप शुक्‍ल की ‘वेल्‍यू’ क्‍या रह जाएगी? :)ब्‍लाग विधा पर नहीं और खुद पर भी नही तो कम से कम अनूप शुक्‍ल पर तो दया की ही जानी चाहिए। वर्ना लोग कहेंगे-कैसे कैसे लोग अनूप शुक्‍ल बन गए?

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  3. बात तो सच्ची कह रहे हैं भईया…कहीं आपका इशारा हमारी और तो नहीं…चोर की दाडी में तिनका…आज कल हम भी पुस्तकों की समीक्षा दे रहे हैं लेकिन उसमें कट पेस्ट वाला काम नहीं है…नहीं है ना?नीरज

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  4. लोग मौलिक लिखें……..अच्छी टिप्पणियां करें। उनपर गेस्ट पोस्ट लिखने का यत्न करें। -सबकुछ कि‍तना मुश्‍कि‍ल है, सच में:)

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  5. सबेरे-सबेरे पोस्ट पढ़ी। दिन भर इसका मतलब समझने का प्रयास करते रहे। मतलब से मुलाकात शाम को हुई। सब मिलकर हमें मामू बनाने में लगे हैं। यह तो अच्छा हुआ हम शाम तक सोच लिये वर्ना गये थे काम से।ऐसा हमेशा से होता आया है। करोड़ों का स्टैम्प घोटाला होता है, पकड़ा बेचारा तेलगी जाता है। सरकार, सिस्टम, बैंक ,एकाउंटेंट के गठबंधन से सत्यम घोटाला होता है पकड़ा अकेला राजू जाता है। ज्ञानजी को कट-पेस्ट करने वालों को हड़काना था सो कन्धा हमारा इस्तेमाल कर लिया।सरकारी दफ़्तरों में यह आम बात है। हमारे बास हमको रोज किसी न किसी बहाने हड़काते थे कि ऐसे काम करना चाहिये, वैसे काम करना चाहिये। एक दिन किसी और को हड़काने का मन किया तो उसको हड़काते हुये बोले- आओ देखो शुक्ला साहब दफ़्तर में बैठे होंगे उनसे पूछ के आओ। तुम्हारे जैसे वो शाम होते ही घर भागने के लिये बेताब नहीं होते। उनके एक तीर से पटापट कई शिकार हो गये।देखा जाये तो ज्ञानजी ने हमारे बारे में लिखते हुये यह कहीं नहीं कहा कि अनूप शुक्ल मौलिक लेखन करते हैं या फ़िर बहुत अच्छा लिखते हैं। उन्होंने सिर्फ़ यही कहा – कोई ओवरनाइट अनूप शुक्ल बन कर दिखाये! इसका मतलब यह भी या कहें यह ही हो सकता है कि कोई अनूप शुक्ल जैसा चौपट लेखन करके दिखाये। आदमी सोने में ही इत्ता मशगूल रहता है कि स्तर चौपट करने की सोच ही नहीं सकता।साथियों ने अपने हिसाब से ज्ञानजी के लिखे का मतलब निकाला और प्रतिक्रियायें दीं। हम उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। सच तो यह है कि हमें अपने लिखे में ऐसा कुछ नहीं लगता कि यह भ्रम पालें कि हमारे जैसा कोई नहीं। इस बारे में काफ़ी पहले आलोक पुराणिक कह चुके हैं लेखन का हिसाब-किताब और स्तर तो सालों बाद तय होता है। अभी तो लिखते रहना चाहिये।स्थापित साहित्य वाले नियमित ब्लागिंग में बहुत नखरे के साथ आयेंगे। सच तो यह है कि वे लेखन में अपने रिसाइकिल्ड मैटेरियल को पेश करते हैं। जो पहले छप चुका उसे अपने प्रचार और ताकि सनद रहे के रूप में पोस्ट करते हैं। लेकिन यह सच है कि रोज हिंदी में दस-पन्द्रह ब्लाग जुड़ रहे हैं। उनमें से कुछ ऐसे हीं जिनको पढ़कर लगता है कि क्या धांसू लिखा है।बाकी हरेक का अपना कहने का अंदाज होता है। और यह मैं बदले की भावना से नहीं कह रहा लेकिन सच है कि बहुत लोग ऐसा लिखना वाले हैं जैसा प्रिंट मीडिया में बहुत कम लिखते हैं। आने वाला समय हिंदी ब्लागिंग की दशा-दिशा करेगा लेकिन यह सच है कि अभी जितने भी ब्लागर हैं वे आगे आने वालों के लिये जमीन की जुताई-गुडाई कर रहे हैं ताकि महान और स्थापित लोग आयें और छा जायें।वैसे एक बात सीरियसली यह भी सोच रहे हैं कि जब अनूप शुक्ल इत्ता धांसू च फ़ांसू लिखते हैं तो अभी तक साहित्य-फ़ाहित्य अकादमी वगैरह अभी तक कोई इनाम-उनाम काहे नहीं दिये। क्या सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी जा सकती है। क्या नोबेल प्राइज वालों पर मान-हानि का दावा ठोका जा सकता है। :)

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  6. ज्ञान जी, आपने इस लेख में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है. जो लोग चाहते हैं कि गमले जमाकर "बगिया" बनाई जाये उनको यह समझ लेना चाहिये कि वहां का बचा खाना खाने के लिये सिर्फ काकराज और परिवार ही पधारेंगे.सस्नेह — शास्त्री==================================पुनश्चर: टांग खिचाई तो रह गई. ये लीजिये हाजिर है."शिव कुमार मिश्र> मतलब ये कि कट-पेस्ट लेखन ज्यादा दिन तक नहीं चल सकता?अब मेरा क्या होगा?———–मैने ऊपर कट-पेस्ट लेखन की बात की है। डायरी-पार लेखन की नहीं। उसे सहर्ष जारी रखा जाये! :)"ओहो! अब समझ में आया कि शिव भईया गजब के आलेख कहां से "खींचते" है.

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  7. कट और पेस्ट ये दो चीजें एसी है जिनका इस्तेमाल कंप्यूटर पर ज्यादा होता है । लेकिन हिन्दी ब्लोगो मे भी होता है यह कोइ नयी बात नही है । एक समय था जब हिन्दी का कोइ शब्द गुगल पर सर्च किया जाता था तो दो ही लिन्क ज्यादा मिलते थे एक धडा धड महाराज का और दूसरा आपके इस ब्लोग का लेकिन अब आने वाला समय हिन्दी ब्लोगो के विस्तृत होने का है इसलिये यह कट पेस्ट तो चलने ही वाली है । जब सीमा मे रहेगी तो पता नही चलेगा लेकिन सीमा से बाहर होने लगेगी तो पता ल ही जायेगा ।

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  8. गुरुदेव, ये कट-पेस्ट से ब्लॉग-पोस्ट कैसे तैयार होती है? मैं समझ नहीं पाया। यह एक उदाहरण से समझाते तो अनजाने ही डोपिंग में धरे जाने का खतरा नहीं रहता। लिखते समय जो शब्द या विचार मन में आते हैं, उनका कु्छ अंश (या अधिकांश ही) तो मस्तिष्क में इनपुट के रूप में बाहर से ही आया रहता है। रचनात्मक प्रतिभा अधिक न हो तो भी दिमाग इस कट-पेस्ट के व्यापार में लग जाता है।ओरिजिनलिटी और नकलनवीसी का फ़र्क करना सबके वश की बात नहीं। अकलमन्द नकलची ओरिजिनल का बाप बन जाता है। लेकिन दूसरी ओर मौलिक प्रतिभा का धनी भी यदि लापरवाह हुआ तो दूसरों का खजाना भरता है।

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