रीता पाण्डेय ने यह चार पेज का अपनी हैण्डराइटिंग में लिखा किसी नोटबुक के बीच का पुल-आउट पोस्ट बनाने के लिये दिया। वह मैं यथावत प्रस्तुत कर रहा हूं।
सिंगमण्ड फ्रॉयड ने कभी कहा था कि स्त्रियां क्या चाहती हैं, यह बहुत बड़ा प्रश्न है और “मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता”।
यह एक बड़ी सच्चाई है कि पुरुष या पति यह जानता ही नहीं कि स्त्री (या उसकी पत्नी) उससे किस प्रकार के सहयोग, स्नेह या सम्मान की अपेक्षा करती है। पर यही सच्चाई स्त्रियों के सामने भी प्रश्न चिन्ह के रूप में खड़ी है कि क्या उन्हें पता है कि उन्हें अपने पति से किस तरह का सहयोग चाहिये? हमें पहले अपने आप में यह स्पष्ट होना चाहिये कि हम अपने पति से क्या अपेक्षा रखते हैं।
बहुत गहराई में झांक कर देखें तो स्त्रियां भी वह सब पाना चाहती हैं जो पुरुष पाना चाहते हैं – सफलता, शक्ति, धन, हैसियत, प्यार, विवाह, खुशी और संतुष्टि। पुरुष प्रधान समाज में यह सब पाने का अवसर पुरुष को कई बार दिया जाता है, वहीं स्त्रियों के लिये एक या दो अवसर के बाद रास्ते बन्द हो जाते हैं। कहीं कहीं तो अवसर मिलता ही नहीं।
नारी अंतर्मन की यह पीड़ा और कुछ हासिल कर लेने की अपेक्षा उन्हें एक अनबूझ पहेली के रूप में सामने लाती है। मेरे विचार से अगर हमें यह स्पष्ट हो कि हमें क्या चाहिये तो हमें अपने पति से भी स्पष्ट रूप से कह देना चाहिये कि हम उनसे क्या चाहते हैं –
- हम पति से निश्छल प्रेम का व्यक्तिगत प्रदर्शन चाहते हैं। हमें किसी कीमती उपहार की बजाय उनका हमारी हंसी में हिस्सेदार बनना ही बहुत बड़ा उपहार होगा।
- प्रशंसा एक बहुत बड़ा उपहार है। पत्नी अपनी प्रशंसा सुनना चाहती है। आप घुमा-फिरा कर प्रशंसा करने की बजाय सटीक प्रशंसा कीजिये। प्रशंसा से तो कितनी ही समस्याओं का समाधान हो जाता है।
- औरत अपने काम के प्रति गम्भीर होती है। चाहे गृहस्थी का काम हो या गृहस्थी के साथ साथ बाहर का काम हो। कोई भी कार्य पुरुषों को हैसियत और उनकी पहचान देता है। औरतें भी यही चाहती हैं कि उनके काम को उतना ही महत्व मिले जितना पुरुष अपने काम को देते हैं। कमसे कम पुरुषों को स्त्रियों के काम में रुचि अवश्य दिखानी चाहिये।
- स्त्रियों को सहानुभूति की आवश्यकता होती है। पुरुषों के लिये बातचीत समस्या बताने, व्याख्या करने और समाधान निकालने का औजार है। पर स्त्रियों के लिये बातचीत अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ बांटने और दिल हल्का करने का तरीका है। भावनाओं को कुरेदकर लम्बे संवाद सुनने की अपेक्षा पति से करती है पत्नी – यदि पति में थोड़ा धैर्य हो।
- स्त्रियां समस्याओं का समाधान बहुत अच्छा करना जानती हैं। स्त्रियां और पुरुष अलग अलग ढ़ंग से समस्यायें सुलझाते हैं। पुरुष समस्या पर सीधा वार करता है। सीधा रास्ता चुन कर उसपर चलने का प्रयास करता है। परंतु स्त्रियों के साथ भावनाओं का जाल बहुत घना होता है। वे अपनी समस्याओं को ले कर अड़ नहीं जातीं। समस्याओं को सुलझाने में अपने परिवार को अस्त-व्यस्त नहीं करना चाहतीं। वे अपने समस्या सुलझाने के प्रकार का समर्थन और सम्मान चाहती हैं पुरुष से। वे चाहती हैं कि पुरुष उन्हें कमजोर न समझें।
- घर में रहने वाली गृहणी शायद ही अपने पति से घर का कार्य करवाना चाहेगी। पर दिन भर के काम से थकी पत्नी को पति का स्नेह और सहानुभूति भरा स्पर्श ही ऊर्जा प्रदान कर देगा। और आप रसोईघर में साथ खड़े भर हो जायें आप देखेंगे कि सामान्य सा खाना लजीज व्यंजन में बदल जायेगा। हां, जो स्त्रियां बाहर भी काम करती हैं वे जरूर चाहेंगी कि पति गृहकार्य में बराबर का हिस्सेदार हो। स्त्री को इस बारे में आक्रामक रुख अख्तियार करने की बजाय स्नेह पूर्वक कहना चाहिये।
- स्त्रियां अपने जीवन साथी को सचमुच अपने बराबर का देखना चाहती हैं। ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उनकी भावनाओं का सम्मान करे। संवेदना, सहानुभूति और सुरक्षा का आश्वासन दे।

Yesss ! That’s like my ‘Guruvar ‘!अब तक की घृष्टाओं के लिये क्षमा चाहूँगा, गुरुवर ।मेरा आपकी विद्वता का कायल होना ही, दर असल मेरे क्षोभ का भी कारण रहा है ।आज यह पोस्ट पढ़ कर मन आह्लादित है ।यदि ज्ञानदत्त पांडेय नाम का मनुष्य ऎसी सारगर्भित पोस्ट लिखने में सक्षम है, तो फिर आलू टमाटर या महज़ चर्चित होने के लिये पोस्ट के स्तर से समझौता क्यों ? परस्पर चुहल अपवाद हैं, पर ब्लागिंग क्या बुद्धिजीवियों की हा हा ठी ठी का मंच मात्र है ?
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बढ़िया । सुन्दर। अब आप देखिये समीरलाल को खुद के पालन करने की पोस्ट है और उसे वो भाभीजी को पढ़वा के छुट्टी पा लेना चाहते हैं! वैसे जैसा आलोक पुराणिक ने लिखा थोड़ी बहुत झूठी तारीफ़ भी जरूरी है! है न!
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इस लेख का पूर्वार्द्ध हो या अन्त सत्य से भरा हुआ है। यह लेख पुरुष वर्ग के लिये उपयोगी टिप्स है चाहे तो अपने घर में आजमा कर देख लें। फिर घर की बात बाहर नही जायेगी।
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@ विष्णु वैरागी: यह समूची पोस्ट ‘पुरुष प्रधानता’ और ‘पुरुष कृपा पर जीवित स्त्री’ वाला भाव ही दर्शाती है। लानत है आपकी इस सोच पर वैरागी जी। जब तक आप जैसे विघ्नतोषी लोग कथित नारीवाद के नाम पर चाटुकारिता और वैमनस्य के विषभाव को एक साथ फैलाते रहेंगे, जबतक प्रकृति की आदर्श व्यवस्था के उलट स्त्री-पुरुष को परस्पर पूरक मानने के बजाय प्रतिद्वन्द्विता की पटरी पर दौड़ाते रहेंगे तबतक इनके बीच शान्तिपूर्ण सौहार्द के बजाय घमासान होता रहेगा, परिवार टूटते रहेंगे, एकल जीवन में सुखप्राप्ति की मृगतृष्णा के पीछे तथाकथित स्वतंत्र नर-नारी भागते हुए हलकान होते रहेंगे।कदाचित् आपको भी पति-पत्नी के बीच असीम प्रेम और समर्पण का चरम आनन्द भोगने का अवसर नहीं मिला है। आपने किसी पुरुष को अपनी पत्नी के लिए तपस्या और त्याग करते भी नहीं देखा होगा। शायद इस दिशा में आप सोच भी न पा रहे हों। इसीलिए यह माने बैठे हैं कि नारी केवल दया की पात्र हो सकती है। प्रेम की अधिकारिणी और परिवार की अधिष्ठात्री नहीं। ऐसा यदि सच है तो यह बहुत अफसोसजनक है।
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पूर्ण,सटीक,शब्दशः सही….कुछ और नहीं बचा या छूटा कहने से……एक आध अपवाद रह जायं तो बात और है,पर यह आलेख प्रत्येक पत्नी के मन की बात ,उसकी अपने पति से अपेक्षा है.बस इसी सोच के साथ और इस लीक पर यदि दंपत्ति चलें तो जीवन में शायद ही कभी ऐसा अवसर आएगा,जब टकराव की स्थिति बनेगी.बहुत बहुत सुन्दर इस आलेख हेतु कोटिशः आभार.आपसे निवेदन है कि लेखन में निरंतरता बनाये रखें…आपके सुलझे विचार बहुतों की उलझी जिन्दगी को सुलझाने में मददगार होंगे.
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Yah post kaise miss ho gayi?Reeta ji bahut bahut badhayee itna suljha hua likhne ke liye..aisa laga jaise, na jane kitne nari dilon ki baat aap ne kagaz par utar di hai.bahut sundar!
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अति सुंदर विचार काश सभी ऎसा सोचते/ सोचती तो सभी घर कितने सुखी होते.धन्यवादआपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
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यह समूची पोस्ट ‘पुरुष प्रधानता’ और ‘पुरुष कृपा पर जीवित स्त्री’ वाला भाव ही दर्शाती है। मानो, यह सब कर, पुरुष, स्त्री पर अतिरिक्त कृपा कर रहा हो।’स्त्री’ को एक ‘व्यक्ति’ के रूप में स्वीकारोक्ति और तदनुसार ही पहचान भी जिस दिन मिल जाएगी, उस दिन ऐसे विमर्श स्वत: ही अनावश्यक और अप्रासंगिक हो जाएंगे।
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सौ. रीता भाभी जी ,बहुत सुँदर सँदेश दिया आपने और्,महिला दिवस व होली पर्व की सपरिवार शुभकामनाएँ आपको स्नेह,- लावण्या
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बहुत सुन्दर और जानकारी पूर्ण लेख लिखा है…मेरी पत्नी रीता जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुई हैं….उन्हें और आपको हम दोनों की तरह से होली की शुभ कामनाएं …नीरज
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