मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में रह कर ग्रामीण जीवन जानने का प्रयास कर रहा हूँ। रेलवे के विभागाध्यक्ष के पद से रिटायर रेलवे अफसर।
कभी कभी यह गांव, पूर्वांचल और प्रांत बहुत निराश करता है. 😳
ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स में भारत 110 वें नंबर पर है. अगर उत्तर प्रदेश एक अलग देश होता तो उसका स्थान 110 से कहीं नीचे होता.
शायद पाकिस्तान (रेंक 140) से भी नीचे. 🙁
सामंतवादी समाज, रंगदारी, लचर पुलिस और प्रशासन तथा उदासीन सी जनता – कभी कभी लगता है कि कहीं और बसना चाहिए था.
—
रेलवे की नौकरी का एक नफा है. व्यक्ति और परिवार लोकल झिक झिक से असंपृक्त aloof बना रह सकता है. उसकी अधिकांश जरूरतें रेल परिवार में पूरी हो जाती हैं.
पर, रिटायर होने पर, समाज और प्रांत देश की कमियां उजागर होने लगती हैं. उन्हे देख व्यक्ति, बावजूद इसके कि वह इसी समाज से निकला है, कभी कभी बहुत स्तब्ध, खिन्न और हताश होता है.
कभी कभी यह गांव, पूर्वांचल और प्रांत बहुत निराश करता है. 😳
CATO Human Freedom Index की 2018 की पुस्तिका का मुख पृष्ठ
लगभग 15 लोगों को रोजगार मिलता है इस दो कमरे की फैक्ट्री में.
सड़क के किनारे दो कमरे वाली आइस्क्रीम फैक्ट्री में सवेरे सवेरे बहुत गहमागहमी थी. आइस्क्रीम के ठेले – साइकिल ठेले ले कर फेरी वाले निकल रहे थे. फैक्ट्री के कर्मचारी आईस्क्रीम की बार पैक करने में लगे थे.
आईस्क्रीम रखने का फ्रीजर
मोटे तौर पर देखने पर लगता था कि इस दो कमरे के उद्यम से 10फेरी वालों और चार पांच फैक्ट्री कर्मियों को रोजगार मिला हुआ है. लगभग 14-15 लोग 10-12 हजार महीना कमाई कर ले रहे हैं इससे.
रघुबीर बिन्द जैसे लोग, जो गांव देहात में भी रोजगार के उभरते प्रकार को खोज-तलाश रहे हैं, भविष्य की आशा हैं।
रघुबीर बिन्द मुझे गिर्दबड़गांव की सड़क
के किनारे दिखे। वे कच्चे गोबर की सतह पर पानी का छिड़काव कर रहे थे। साथ में एक और
व्यक्ति था। आसपास के गेंहूं,सरसों के खेतों और ईंट भट्ठा की गतिविधि से अलग तरह
का काम दिखा मुझे। मैने साइकिल रोक ली।
गोबर के बेड पर पानी का छिड़काव करते रघुबीर बिंद (कमीज पहने)
उन सज्जन (बाद में परिचय दिया कि रघुबीर
बिन्द हैं) ने बताया कि महीना भर पहले उन्होने वर्मीकल्चर की तीन महीने के
ट्रेनिंग पूरी की है। उसके बाद इस प्लाण्ट को लगाने में जुट गये। करीब एक लाख का खर्च
किया है। गोबर कुछ अपना उनका है और कुछ 2200रुपये प्रति ट्रेक्टर-ट्रॉली दाम पर खरीदा
है। अभी केचुये के लिये 25-30 हजार का खर्चा और होगा। ढाई महीने का केचुये की खाद
बनने का साइकल है। तीन महीने बाद जो खाद तैयार होगी वह मार्किट में 600रुपया बोरी
के भाव से जा रही है। एक बोरी में चालीस किलो खाद होगी।
रघुबीर ने मुझे पूरी प्रक्रिया बतायी जैविक खाद की। अभी गोबर के बेड को वे नम कर ठण्डा कर रहे हैं। नमी में लगभग 7-10 दिन गोबर पड़ा रहेगा। उसके बाद उसे ईंटों की बनी 16 पिट्स में केचुये के बीज मिला कर छोड़ देंगे। लगभग पचास दिन में केचुओं की गतिविधि से जैविक खाद तैयार होगी।
रघुबीर बिंद के वर्मीकल्चर के पिट
जैविक खाद की मांग के प्रति वे आश्वस्त दिखे। पास के बाजारों – कछवां, गोपीगंज आदि में खपत हो जायेगी। उनका अन्दाज है कि साल भर में 5-6 साइकल (पारी) खाद वे बना लेंगे। एक पिट में प्रति साइकल करीब 20-25 बोरी खाद बनेगी।
मैं मोटा अनुमान लगाता हूं तो साल में लगभग 10-12 लाख का टर्नओवर होगा उनके उद्यम से। लगभग तीस पैंतीस हजार रुपया महीना की अमदनी तो हो जानी चाहिये (संकोचपूर्ण – conservative अनुमान के आधार पर)। इस पूरे उद्यम में अनेक इफ़ एण्ड बट्स हैं। पर इफ़-एण्ड-बट्स के आधार पर सपने नहीं बोये जाते और कोई उद्यम नहीं खड़ा किया जाता।
रघुबीर बिन्द आशा और उत्साह से लबालब
दिखे। उन्होने अपना मोबाइल नम्बर भी (उनके अपने इनिशियेटिव पर) मुझे दिया कि अगर भविष्य
में कुछ और पूछना चाहूं तो पूछ सकूं।
लोग रोजगार की विषम दशा की बात करते हैं। इस बार का पूरा चुनाव उसी “काल्पनिक” मुद्दे पर ठेला जाने का जोर है। रघुबीर बिन्द जैसे लोग, जो गांव देहात में भी रोजगार के उभरते प्रकार को खोज-तलाश रहे हैं, भविष्य की आशा हैं।
सवेरे का साइकिल भ्रमण मुझे अनायास प्रसन्न कर गया। जय हो गांव-देहात की नई पीढ़ी की उद्यमिता!
बनवासी (मुसहरों) का भोजन
[…]उनके पास कोई अलमारी-मेज जैसी चीज तो थी नहीं। आसपास के जीव जन्तुओं और कुत्तों से बचाने के लिये लकड़ी के डण्डे जमीन में गाड़ कर उसके दूसरे सिरे पर भोजन की बटुली-बरतन लटका रखे थे उन्होने।[…]
उनके पास आवास नहीं हैं। प्रधानमन्त्री आवास योजना में उनका नम्बर नहीं लगा है। गांव में जिस जमीन के टुकड़े पर वे रहते हैं वह ग्रामसभा की है। बन्जर जमीन के रूप में दर्ज। आठ परिवार हैं। गांव उन्हें लम्बे अर्से से रहने दे रहा है, उससे स्पष्ट है कि वे जरायम पेशा वाले नहीं हैं। गांव की अर्थव्यवस्था में उनका योगदान है। सस्ता श्रम उपलब्ध कराते होंगे वे।