मेरी पत्नी जी की सरकारी नौकरी विषयक पोस्ट पर डा. मनोज मिश्र जी ने महाकवि चच्चा जी की अस्सी साल पुरानी पंक्तियां प्रस्तुत कीं टिप्पणी में –
देश बरे की बुताय पिया – हरषाय हिया तुम होहु दरोगा। (नायिका कहती है; देश जल कर राख हो जाये या बुझे; मेरा हृदय तो प्रियतम तब हर्षित होगा, जब तुम दरोगा बनोगे!)
हाय! क्या मारक पंक्तियां हैं! ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी!
मैने मनोज जी से चिरौरी की है कि महाकवि चच्चा से विस्तृत परिचय करायें। वह अगले जन्म के लिये हमारे दरोगाई-संकल्प को पुष्ट करेगा।

आज आपने एक ऐसे जल्वेदार विषय पर लेखनी चलाई है कि मज़ा आ गया .सरकारें चाहें जिसकी हों -रहें लेकिन दरोगाओं के जलवे सदा कायम रहेंगे .आप के आदेशानुसार महाकवि चच्चा के बारे में पूरी तहकीकात शुरू कर दियां हूँ जैसे ही विस्तृत बिवरण मिला तुंरत बताऊंगा . दरोगा -पुलिस पर चलते -चलतें पूरी रचना नहीं केवल दो लाइन ”राजेंद्र स्मृतिग्रन्थ ”से -नगर बधू मद उद्यमी ,तस्कर पाकेटमार ,सब में प्रभु तू रम रहे ,तुम सम कौन उदार |
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अंग्रेजी में The Rogue से शायद दारोगा बना होगा ! पर आप बनें तो प्रेमचंद के नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर(नाम पक्का याद नहीं) की तरह बनना !
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आपकी यह इच्छा देखकर तो दरोगाई से चिढ़ होने लगी है । चिढ़ तो पहले भी थी पर कारण दूसरा था, अब कारण दूसरा है । धन्यवाद ।
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शायद इसीलिए कहा गया है सैय्या भय कोतवाल तो अब डर काहे का
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मोह में कौनो कमी दिख रही है क्या जो इन पंक्तियों से आकर्षित हो डोल गये आप.खैर, विस्तृत परिचय तो प्राप्त होना ही चाहिये.
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Ye bhee bata dijiye Gyan bhai sahab, agle janam “Daroga ” ban gaye tub kin logon ko jail bhijvane ka irada hai ?
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बहुत बढिया … इंतजार रहेगा मनोज जी की पोस्ट का।
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एक दरोगा के क्या जलवे क्या होते हैं यह हरिशंकर परसाईजी ने लिखा है इंस्पेक्स्टर मातादीन चांद पर में। देखिये: http://www.bijhar.org.sg/index.php?option=com_content&view=article&catid=30%3A2008-07-27-18-02-34&id=58%3A%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8&Itemid=59
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चलिए, आप और मिसिरजी कहते-सुनते रहें, हमें भी ज्ञान-प्रसाद प्राप्त होगा।
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सच है, हर जगह इस महाबली से सामना हो जाता है.
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