थरूर, टाइगर वुड्स, क्लिंटन, तमिल अभिनेत्री के साथ स्वामी, चर्च के स्कैन्डल पर पोप, सत्यम, इनरॉन, रोमन राज्य। कड़ी लम्बी है पर सब में एक छोटी सी बात विद्यमान है। सब के सब ऊँचाई से गिरे हैं। सभी को गहरी चोट लगी, कोई बताये या छिपाये। हम कभी ऊँचाई पर पहुँचे नहीं इसलिये उनके दुख का वर्णन नहीं कर सकते हैं पर संवेदना पूरी है क्योंकि उन्हें चोट लगी है। पर कोई कभी मिल गया तो एक प्रश्न अवश्य पूँछना है।
भाई एक तो परिश्रम कर के आप इतना ऊपर पहुँचे। इतनी बाधाओं को पार किया। कितने प्रलोभनों का दमन किया। तब क्या शीघ्रता थी हवा में टाँग बढ़ा देने की? वहीं पर खूँटा गाड़ कर बैठे रहते, तूफान निकल जाने देते और फिर बिखेरते एक चॉकलेटी स्माइल।
क्या कहा? आपका बस नहीं चलता। किस पर ? हूँ..हूँ… अच्छा।
उत्तर मिल गया है। आकर्षण के 6 गुण (सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग) यदि किसी से पीडित हैं तो वे हैं 6 दोष।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर (ईर्ष्या)
अब गोलियाँ भी 6 और आदमी भी 6। अब आयेगा मजा। तेरा क्या होगा कालिया?
आप पर निर्भर करता है कि महान बनने की दौड़ में हम उन दोषों को अपने साथ न ले जायें जो हमें नीचे गिरने को विवश कर दें। नौकरशाही, राजनीति, बाहुबल सब पर ये 6 दोष भारी पड़ते हैं। आप बहुत ज्ञानी हैं पर आपको दूसरे से ईर्ष्या है। आप त्यागी और बड़े साधु हैं पर आप धन एकत्रीकरण में लगे हैं।
इन ऊपर ले जाने वाले गुणों में व नीचे खीचने वाले दोषों में एक होड़ सी लगी रहती है। हर समय आपके सामने प्रलोभन पड़े हैं। झुक गये तो लुढ़क गये। जो ऊँचाई पर या शक्तिशाली होता है उसके लिये इन दोषों में डूब जाना और भी सरल होता है, उसे सब प्राप्त है। गरीब ईर्ष्या करे तो किससे, मद करे तो किसका?
अमेरिका कितना ही खुला क्यों न हो पर किसी राष्ट्रपति का नाम किसी इन्टर्न महिला के साथ उछलता है तो वह भी जनता की दृष्टि में गिर जाता है।
महानता की ऊँचाई पर हम अकेले हैं, सबकी पैनी दृष्टि है हम पर, यह जीवन और कठिन बना देती है। बहुत लोग इस स्थिति को पचा नहीं पाते हैं और सामान्य जीवन जीने गिर पड़ते हैं। महानता पाना कठिन है और सहेज कर रख पाना उससे भी कठिन।
राम का चरित्र अब समझ आता है। ईसा मसीह की पीड़ा का अब भान होता है। धर्म का अंकुश लगा हो, जीवन जी कर उदाहरण देना हो, पारदर्शी जीवनचर्या रखनी पड़े तो लोग ऊँचाई में भी टूटने लगते हैं।
वाह्य के साथ साथ अन्तः भी सुदृढ़ रखना पड़ेगा, तब सृजित होंगे महानता के मानक।
प्रवीण पाण्डेय एक कठिन परिश्रम करने वाले अतिथि ब्लॉगर हैं। उन्होने उक्त पोस्ट के साथ एक पुछल्ला यह जमाया है कि पाठकों से पूछा जाए कि फलाने महान में वे क्या मुख्य गुण और क्या मुख्य दोष (अवगुण) पाते हैं। उदाहरण के लिये, प्रवीण के अनुसार रावण में शक्ति और काम है। टाइगर वुड्स में यश और काम है। दुर्वासा में त्याग के साथ क्रोध है। हिटलर में शक्ति के साथ मद है।
आप इस लिंक पर जा कर दी गयी प्रश्नावली भर कर प्रविष्टि सबमिट कर सकते हैं। आप किसी महान विभूति को चुनें – आप किसी महान टाइप ब्लॉगर को भी चुन सकते हैं! :)
प्रश्नावली पर आपके उत्तर की स्प्रेड शीट मैं प्रवीण को दे दूंगा। फिर दखें वे क्या करते हैं उसका!

देर से आये …..ज्ञान रूपी प्रसाद ग्रहण कर लिया |
आभार !
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गुरु जी, आप यहाँ आये, हमारे लिये यही प्रसाद है । आभार आपका भी ।
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महानता को सहेज कर रख पाना मुश्किल है…
पर क्या ये सच नहीं है कि जिन्हें हम तथाकथित महान मान लेते हैं उनसे अपेक्षाएं इतनी ज्यादा बढ़ा लेते हैं कि उनकी छोटी इंसानी गलतियों को भी पचा नहीं पाते. कई बार इसलिए भी लोग महानता से गिर पड़ते हैं !
छः गुणों के प्रति लोभ भी तो महानता की तरफ ले जा सकता है? ज्ञान का लोभ? कई कम्बीनेशन दिमाग में आ रहे हैं.
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अभिषेक जी, आप सात्विक लोभ परिभाषित कर लोभ को महिमामंडित कर रहे हैं । भगवान करे यदि ऐसा ही लोभ होना हो तो सबको हो ।
मुझे दो घटनायें याद आ रही हैं,
1. गुजरात में एक साहेब थे, नीली आँखों वाले । उन्होने वहाँ बसने वाली जनजाति की सैकड़ों महिलाओं को, नीली आँखों की सन्तति का प्रलोभन दे, दुष्कृत्य किया । यह था Blue eyed Burden का सात्विक काम ।
2. साक्षात्कारों में एक प्रश्न पूछा जाता है कि आप अपनी कोई एक कमजोरी बतायें । चतुर उत्तर है कि मुझे बड़ा ही क्रोध आता है जब भी मैं किसी के प्रति अन्याय होते देखता हूँ । देखिये उत्तर भी हो गया और प्वाइंट भी स्कोर हो गये । यह है सात्विक काम ।
कुछ और कॉम्बिनेशन आपको याद आयें तो बताईयेगा ।
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और इच्छाशक्ति.. वो भी तो महान बनाती है.. स्टीफ़न हाकिग ज्ञानी तो है ही पर उनकी इच्छाशक्ति ने ही उन्हे समकालीन महान लोगो मे शामिल किया है.. गान्धी उन्हे भी तो हमे स्ट्राग इच्छाशक्ति वाली जमात मे ही शामिल करना चाहिये..
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सपने महान भी दिखाते हैं और धूर्त भी । धूर्त को अपना स्वार्थ दिखता है पर महान स्वयं निष्ठापूर्वक लगकर उन सपनों को साकार कराता है । आपके बताये 27 लोग महान हैं । उन्होने छोटा या बड़ा जैसा भी स्वप्न लिया, उसे साकार किया । ऐसे स्वप्नदृष्टा ही समाज में आशा के संचारक हैं, मानवता के वाहक हैं ।
उनसे जुड़े लोगों के लिये वे महान हैं । रही बात प्रसिद्धि की, वह भी देर सबेर आ जायेगी । जब जनता के मनसपटल पर महानता के मानकों के प्रति एक जागृति आयेगी, हमारे कर्तव्यपरायण Heroes of Hope हमारे देश का नेतृत्व करेंगे । मीडिया जिसे शोएब-सानिया जैसे प्रकरणों से रस निचोड़ने की आदत है, Heroes of Hope के कार्यों को बखान कर जनमानस में आशान्वित चेतना का संचार करेंगे ।
कर्तव्यपराणयता व इच्छाशक्ति हमें हमारे पथ से न डिगने में सहायता करती है । हर मोड़ पर एक ऐसा रास्ता मिलता है जो हमें आसान जीवन की ओर ले जाता है । महान व सामान्य का विभाजन वही मोड़ करता है ।
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जब जनता के मनसपटल पर महानता के मानकों के प्रति एक जागृति आयेगी, हमारे कर्तव्यपरायण Heroes of Hope हमारे देश का नेतृत्व करेंगे । मीडिया जिसे शोएब-सानिया जैसे प्रकरणों से रस निचोड़ने की आदत है, Heroes of Hope के कार्यों को बखान कर जनमानस में आशान्वित चेतना का संचार करेंगे ।
Amen… वो दिन जल्द आये..
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Crisis! एक बड़ी क्राइसिस की जरूरत होगी उसके लिये मित्र! जागृति खरामा खरामा आईपीएल देखते नहीं आती! और वह शायद बहुत दूर न हो!
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महानता के सारे पहलू समझ आते है.. फ़िर भी नही समझ पाता कि कौन महान है..
वो ’आनन्द जी’ जो बन्दूको के तले गरीबो को आईआईटी के सपने दिखाते है.. या वो एक इन्जीनियर जिसके बारे मे कभी ’द वीक’ मे पढा था.. (उसने आस-पास के गावो मे कुछ छोटे छोटे ब्रिज बनाये थे.. उसकी डेली मार्निग वाक का रूट उन सारे ब्रिजेस से होकर जाना था.. कुछ टूटने-फ़ूटने की अवस्था मे वो उसे वही ठीक करते थे.. )
कुछ दिन पहले ’heroes of hope’ करके क्रेस्ट का एक विशेषान्क पढा था.. 25 लोग थे जिन्हे कोई शायद जानता भी नही था फ़िर भी वो जमीनी स्तर पर अपने ही लोगो के लिये काम कर रहे थे.. वो ’महान’ है.. इसलिये कि उनमे ’त्याग’ है.. लेकिन किस चीज का त्याग वो तो बस कर्तव्य का पालन कर रहे है.. जिन कर्तव्यो को हम रोजमर्रा की ज़िन्दगी मे भूल चुके है… फ़िर कर्तव्यपरायणता भी महानता की एक मेट्रिक होनी चाहिये?
http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?skin=pastissues2&enter=LowLevel&AW=1272137186156
2nd Jan – 2010 print..
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बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनमें ज्ञान है, त्याग है, वे महान् हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं जानता…वे निरन्तर अपना कार्य किये जा रहे हैं…अपना पूरा जीवन जनसामान्य के लिये समर्पित करके. वे प्रकाश में इसलिये नहीं आना चाहते कि उन्हें इसका कोई चाव नहीं है…न कि इसलिये कि प्रसिद्ध होने पर ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है और स्वतन्त्रता घट जाती है. लेकिन फिर भी मैं गिरिजेश जी की बात से सहमत हूँ, “‘यश’ का ‘त्याग’ कीजिए और मस्त रहिए।”
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यश अपने आप में एक गुण है जो लोगों को आकृष्ट करता है । यश आपको कुछ विशेष करने पर मिलता है । समाचार पत्र व जनता के बीच चर्चा से यह बढ़ता है । त्याग और ज्ञान के भी प्रति लोग आकर्षित होते हैं और चर्चा करते हैं जिससे यश फैलता है । यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और समय लेती है । जनसम्पर्क में क्रैश कोर्स किये हुये लोग इस प्रक्रिया को तेज करने का प्रयास करते हैं । योग्यता यदि न हो महानता धारण करने की और महान बना दिया जाये तो अस्थायी स्थिति होगी । एक रात में महान बने लोग अगली रात अपने वास्तविक धरातल में होंगे । अर्श से फर्श पर ।
बिना किसी प्रसिद्धि की चाह के अपने कार्य में लगे रहना तो निर्मल माणिकों की श्रेणी में आता है । उन्हे निष्काम योगी की संज्ञा दी जा सकती है । यश की चाह न होना और यश का त्याग करना दो भिन्न अवस्थायें हैं । यश को त्याग करने वाला तो और भी यशस्वी हो जायेगा ।
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प्रवीण!
बधाई, इतने स्तुत्य लेखन के लिए। मंथन से कुछ निकला है, कुछ निकलने को है। अभी तक सारी टिप्पणियाँ पढ़ीं, ज़ाहिर है पोस्ट के तीनों भाग के बाद। बहुत कहने को नहीं है इस अंतहीन चर्चा में, बस इतना ही जोड़ना है कि-
1)
यद्यदारति श्रेष्ठ:, तत्तदेवेतरो जन:
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते
श्रीमद्भगवद्गीता से सीधे यह संदर्भ लिया जा सकता है, महानता के एक स्थायी और शाश्वत पैमाने के रूप में।
2)
रावण में ‘शक्ति’ के गुण के साथ अवगुण के रूप में सदा ‘मद’ का नाम लिया गया है। हमारा अपना मूल्यांकन भिन्न होने की दशा में उसके पर्याप्त कारण भी देने पड़ेंगे। काम ही नहीं, अन्य अवगुण भी उसी तरह प्रकटते हैं व्यक्ति में किसी एक अवगुण के तीव्र मात्रा में होने पर, जैसे किसी एक सद्गुण के उत्कर्ष से अन्य सद्गुणों का भी सहज आविर्भाव तय है। मगर रावण के पतन का प्रमुख कारण ‘मद’ ही था, ऐसा मुझे भी लगता है।
3)
महानता से और अन्यथा भी, किस प्रकार कोई नाश को प्राप्त होता है, यह प्रोसेस भली भाँति श्रीमुख से गीता में बताया गया है। उस प्रोसेस को कहीं भी, किसी भी कड़ी को तोड़ सकें, वहीं नाश की ओर उन्मुख गति को विराम मिल जाएगा। इस गति का आरंभिक चरण ‘क्रोध’ ही बताया गया है और ‘याद-दाश्त का ख़राब हो जाना’ भी एक प्रमुख संघटक है इस प्रक्रिया में। मेरा यह मानना है कि भले ही यह प्रक्रिया महानता के संदर्भ में सीधे और पूरी तरह आरोपित न भी करना चाहें आप, तो भी महानता से च्युत होने में ‘क्रोध’ से बड़ा उत्प्रेरक दूसरा नहीं दिखता मुझे।
4)
और अन्त में, श्रमसाध्य परन्तु विचारोत्तेजक और सफल व उत्कृष्ट इस सृजन के लिए बधाई, T.L.B.S.
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निःसन्देह, श्रेष्ठ जनों का अनुकरण महानता की ओर ले जायेगा पर जब श्रेष्ठता के मानक ही बदलने का कार्य हो तो ! खेल के नियम ही बदल दिये जायें ।
रावण में मद ही प्रमुख गुण था । आपका ही उत्तर डाला जायेगा ।
ये रहे आपके श्लोक ।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते | सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ||२-६२||
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः | स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ||२-६३||
इस प्रक्रिया की कड़ी तोड़नी पड़ेगी, तभी बाहर निकल पायेंगे इन दोषों से ।
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महान वही हो सकता है जिसे केवल अपने ही दोष का दर्शन होता है ।
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दोषों पर विजय पाने के लिये उन्हे जानना आवश्यक । दोष दूर करने के प्रयास में वे छटपटाते भी हैं, मन से लॉबीईंग भी करते हैं, आपको पीड़ा भी देते हैं । पर सब सहन करना होगा ।
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जो ऊपर चढ़े है वे ही गीर भी सकते है. इसलिए नीचे के व्यक्ति से ऊपर चढ़ा व्यक्ति ज्यादा नीचे गीरता है.
जिसके पास सत्ता और शक्ति नहीं वे जरूर ज्ञान बघार सकते है, मगर जब सामने पकवानों की थाली और जी को बस में करे वही महान होता है.
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संजय जी । पकवानों की थाली में तो जी मानता ही नहीं । क्या हम गये काम से ? :) :)
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महानता के बाद आपका जीवन आपका नहीं रहता, संभवतः इसीलिये वह सामान्य भी नहीं रहता ।……
Praveen ji , I agree with you here.
Negative publicity भी positive हो जाती है।………….
Girijesh ji, …When Mahaan people find it difficult to achieve something by right method, then they choose to flow against the current, just to be in limelight. It’s their greed for name, fame and money, that propels them to behave uncanny and weird.
Insensitive people become insensitive towards insults also. They lose the caliber to see the huge difference even between humanity and intellectual terrorism.
These so called ‘mahaan’ people very soon become buoyant. They need to be grounded.
Nature doesn’t spare anyone.
Till we stay connected with common man–we are Insaan. And till we have ‘Insaaniyat’ in ourselves– we are close to mahaanta.
Again i repeat,
After acquiring the above 6 virtues, a person will become Bhagvaan.
Mahaanta is nothing but a thin line between Insaan and Bhagwaan. Before anyone could touch that intangible line…The ‘ehsaas’ of his own ‘mahaanta’, brings him two notches lower.
The cycle goes on and History repeats itself.
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आपके अवलोकन से पूर्णतया सहमत । महान बनने के लिये बहुधा हमें अपनी प्रवृत्ति के विरुद्ध जाना पड़ता है । प्रयत्नों के पंख हैं, जब तक चलते रहेंगे, हम ऊपर रहेंगे ।
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What is being discussed is ‘role models’ which is getting mixed up with people in news . Role models necessarily have 3 attributes : zeal to succeed , humility , willingness to share their success and strength of will to adhere to their principles . To these we may add more qualities. Praveen has regularily come up with thought provking writes my congratulations to him
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हां, मनोज; महान निश्चय ही रोल मॉडल होते हैं। जब हम उनके बारे में चर्चा करते हैं तो उसमें भाव यही होता है कि कैसे हम अपने को बेहतर बना सकते हैं।
और जिन तीन एट्रीब्यूट्स – zeal to succeed , humility , willingness to share their success and strength of will to adhere to their principles की बात ाअपने कही है, उससे कोई मतभेद हो ही नहीं सकता।
काश हमारा कोई महान मेंटर हो सकता!!! या यूं कहें कि जब कृष्ण की बात हम करते हैं तो मन में भाव यह होता है कि वे हमें अपना अर्जुन बनालें!
और प्रवीण ने वास्तव में बहुत अच्छा लिखा है!
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मनोज जी । आपका बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिये । मंच, विषय, समय और उत्साह आदरणीय ज्ञानदत्त जी का प्रसाद है । मैं तो दोनों हाथ खोलकर जितना मिल रहा है, समेटने को तैयार बैठा हूँ । बादल और हथेली की क्षमताओं की क्या तुलना ?
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