मॉडर्न भौतिकी और सुंघनी

mdern physics वे जवान और गम्भीर प्रकृति के छात्र हैं। विज्ञान के छात्र। मॉडर्न भौतिकी पढ़ते हैं और उसी की टमिनॉलॉजी में बात करते दीखते हैं। अधिकांशत: ऐसे मुद्दों पर बात करते हैं, जो मुझे और मेरी पत्नीजी को; हमारी सैर के दौरान समझ में नहीं आते। हम ज्यादातर समझने का यत्न भी नहीं करते – हमें तो उनकी गम्भीर मुख मुद्रायें ही पसन्द आती हैं।

शिवकुटी है तो मात्र जवान लड़के दिखाई देते हैं। परदेश होता तो उनकी गोल में एक-आध जवान लड़की भी होती – एक फिल्म की संकल्पना को साकार करती हुई। अभी ज्यादातर के पैरों में हवाई चप्पल या सस्ते जूते होते हैं; परदेश में कुछ ट्रेण्डी कपड़े होते।

उस खाली प्लॉट के पास वे ज्यादा देर तक रुक कर चर्चा करते हैं।

Gyan771-001 Gyan769-001 कभी-कभी उनके द्वारा चर्चित मुद्दे हमारी पकड़ में आ जाते हैं। एक बार वे नमकीन की पन्नी हाथ में लिये नमकीन सेंव बनाने की प्रकिया को मॉडर्न फीजिक्स की टर्मिनॉलॉजी में डिस्कस कर रहे थे। एक दूसरे समय में वे नाइक्विस्ट थ्यॉरम की चर्चा सुंघनी व्यवसाय के सन्दर्भ में कर रहे थे। सहसों वाले प्रसिद्ध सुंघनी व्यवसाई भोलाराम जायसवाल ने कभी नाइक्विस्ट थ्यॉरम के बारे में सुना भी होगा – मुझे भयंकर संदेह है। संदेह ही नहीं, भयंकर विश्वास भी है कि उसे मालूम न होगा!

पर हमारे उन जवान विद्यर्थियों की सीरियसता पर हमें पूरा विश्वास है।

वे यहां रह कर कम्पीटीटिव परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होंगे। पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार के छात्रगण। भारत की प्रीमियर सिविल सेवाओं में उनमें से कुछ तर जायेंगे। उसके बाद उन्हें मॉडर्न फीजिक्स/नमकीन/नाइक्विस्ट प्रमेय/सुंघनी याद नहीं आयेगी। तब वे समस्याओं के हल अपनी प्रोफॉउण्ड कॉमन सेंस (profound common senase) से सुलझाने लगेंगे। वह – जो शायद उनमें है, शायद नहीं भी है!

लेकिन, और यह बहुत सही लेकिन है, अगर भारत समृद्ध होता और उन्हें सिविल सेवाओं की चाहत के लिये विवश न करता तो भारत को कई प्रीमियर वैज्ञानिक मिलते – कोई शक नहीं। पर उसे मिलेंगे सेकेण्ड-ग्रेड दारोगा, तहसीलदार, अध्यापक और कुछ प्रशासनिक सेवाओं के लोग।

मैं यह कह रहा हूं, चूंकि मैं उस चक्की से गुजर चुका हूं।     


[यह पोस्ट ड्राफ्ट में महीनों ने पड़ी थी। इससे पहले कि भुला दी जाती, पब्लिश कर दे रहा हूं। सुंघनी की डिबिया का चित्र भरत लाल के सौजन्य से।

मुझे खेद है कि टिप्पणी प्रबन्धन अभी भी न हो पाने के कारण टिप्पणियां आमन्त्रित नहीं हैं।]


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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