कल शाम हम छ लोग मिले बेंगळुरू में। तीन दम्पति। प्रवीण पाण्डेय और उनकी पत्नी श्रद्धा ने हमें रात्रि भोजन पर आमंत्रित किया था। हम यानि श्रीमती आशा मिश्र और उनके पति श्री देवेन्द्र दत्त मिश्र तथा मेरी पत्नीजी और मैं।

प्रवीण पाण्डेय का सफल ब्लॉग है न दैन्यम न पलायनम। देवेन्द्र दत्त मिश्र का भी संस्कृतनिष्ठ नाम वाला ब्लॉग है – शिवमेवम् सकलम् जगत। श्रद्धा पाण्डेय और आशा मिश्र फेसबुक पर सक्रिय हैं। मेरी पत्नीजी (रीता पाण्डेय) की मेरे ब्लॉग पर सक्रिय भागीदारी रही ही है। इस आधार पर हम सभी इण्टरनेट पर हिन्दी भाषियों के क्रियाकलाप पर चर्चा में सक्षम थे।
सभी यह मानते थे कि हिन्दी में और हिन्दी भाषियों की सोशल मीडिया में सक्रियता बढ़ी है। फेसबुक पर यह छोटी छोटी बातों और चित्रों को शेयर करने के स्तर पर है और ब्लॉग में उससे ज्यादा गहरे उतरने वाली है।

देवेन्द्र दत्त मिश्र बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल विद्युत अभियंता हैं। वे एक घण्टा आने जाने में अपने कम्यूटिंग के समय में अपनी ब्लॉग-पोस्ट लिख डालते हैं। चूंकि उन्होने लिखना अभी ताजा ताजा ही प्रारम्भ किया है, उनके पास विचार भी हैं, विविधता भी और उत्साह भी। वे हिन्दी ब्लॉगिंग को ले कर संतुष्ट नजर आते हैं। अपने ब्लॉग पर पूरी मनमौजियत से लिखते भी नजर आते हैं।
आशा मिश्र के फेसबुक प्रोफाइल पन्ने पर पर्याप्त सक्रियता नजर आती है। वहां हिन्दी भाषा की पर्याप्र स्प्रिंकलिंग है। वे उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के उन भागों से जुड़ी हैं, जहां अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है।
प्रवीण हिन्दी ब्लॉगरी में अर्से से सक्रिय हैं और अन्य लोगों की पोस्टें पढ़ने/प्रतिक्रिया देने में इस समय शायद लाला समीरलाल पर बीस ही पड़ते होंगे (पक्का नहीं कह सकता! :lol: )। प्रवीण ने विचार व्यक्त किया कि बहुत प्रतिभाशाली लोग भी जुड़े हैं हिन्दी ब्लॉगिंग से। लोग विविध विषयों पर लिख रहे हैं और उनका कण्टेण्ट बहुत रिच है।

मेरा कहना था कि काफी अर्से से व्यापक तौर पर ब्लॉग्स न पढ़ पाने के कारण अथॉरिटेटिव टिप्पणी तो नहीं कर सकता, पर मुझे यह जरूर लगता है कि हिन्दी ब्लॉगरी में प्रयोगधर्मिता की (पर्याप्त) कमी है। लोग इसे कागज पर लेखन का ऑफशूट मानते हैं। जबकि इस विधा में चित्र, वीडियो, स्माइली, लिंक, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी की अपार सम्भावनायें हैं, जिनका पर्याप्त प्रयोग ब्लॉगर लोग करते ही नहीं। लिहाजा, जितनी विविधता या जितनी सम्भावना ब्लॉग से निचोड़ी जानी चाहियें, वह अंश मात्र भी पूरी नहीं होती।
हमने श्रद्धा पाण्डेय का वेस्ट मैनेजमेण्ट पर उनके घर-परिवेश में किया जाने वाला (अत्यंत सफल) प्रयोग देखा। उन्होने बहुत उत्साह से वह सब हमें बताया भी। रात हो गयी थी, सो हम पौधों और उपकरणों को सूक्ष्मता से नहीं देख पाये, पर इतना तो समझ ही पाये कि जिस स्तर पर वे यह सब कर रही हैं, उस पर एक नियमित ब्लॉग लिखा जा सकता है, जिसमें हिन्दी भाषी मध्यवर्ग की व्यापक रुचि होगी। … पर ऐसा ब्लॉग प्रयोग मेरे संज्ञान में नहीं आया। मुझे बताया गया कि श्री अरविन्द मिश्र ने इसपर एक पोस्ट में चर्चा की थी। वह देखने का यत्न करूंगा। पर यह गतिविधि एक नियमित ब्लॉग मांगती है – जिसमें चित्रों और वीडियो का पर्याप्त प्रयोग हो।
तो, ब्लॉगिंग/सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की कलम और सोच की ब्रिलियेंस एक तरफ; मुझे जो जरूरत नजर आती है, वह है इसके टूल्स का प्रयोग कर नयी विधायें विकसित करने की। और उस प्रॉसेस में भाषा के साथ प्रयोग हों/ परिवर्तन हों तो उससे न लजाना चाहिये, न भाषाविदों की चौधराहट की सुननी चाहिये!

मेरे मन मे एक टीस पैदा हो गयी है कि इस आनंद भरी दुनिया में अपने को सक्रिय क्यों नहीं रख पा रहा हूँ? आलस्य को कबतक दोष देता रहूँगा? बहुत सी बातें पढ़ने को छूट गयी हैं और बहुत कुछ लिखने को बाकी रह गया है। फिरभी इधर समय न देना पाना मन को साल रहा है। इन नयी विभूतियों से अबतक न जुड़ पाने का मलाल है।
आपका यह वाक्य पूरी पोस्ट में नगीने की तरह जड़ा हुआ लगा – “वे उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के उन भागों से जुड़ी हैं, जहां अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है।” एक तो आपकी भाषा में यह चमत्कारिक उभार जैसा लगा और दूसरा कि मैं भी पूर्वांचल की उसी धरती में जन्मा हूँ जहाँ की आप ने इतनी सुन्दर प्रशंसा की।
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खूब कहा आपने…
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is nayi dunia me main apne aap ko sahaj mahsoos nahi kae paa rahaa hoo.. isliye aap sab se mansik aur atmic samarthan maangata hoo.. kyoki usase mujhme oorja ka jo pravah hoga wo aap se lambe samay tak jude rahne me bahut sahayak hogaaa…
Dhanyawad…aadarniyaa…
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स्वागत मुकुल जी। आपका मार्ग प्रशस्त हो। शुभकामनायें!
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हम आपकी अगली पोस्ट में विश्वनाथजी पर लिखे लेख का इंतेज़ार करेंगे…. क्योंकि हम साठ पार कर चुके हैं :)
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यह सच है कि कम्प्यूटर-ज्ञान के माले में अनेक (‘अनेक’ के स्थान पर ‘अधिकांश’ लिखने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ) ब्लॉग लेखक ‘साक्षर’ से अधिक नहीं है। इसलिए भी ब्लॉग विधा में तकनीक का वैसा और उतना उपयोग नहीं हो पा रहा है जैसा आपने चाहा है।
कठिनाई यह भी है कि जब भी कोई ‘जानकार’, तकनीक की जानकारी देता है तो यह मानकर लिखता है मानो पढनेवाले सारे के सारे उसके जितना ही तकनीकी ज्ञान रखते हैं।
मैं मई 2007 से इस क्षेत्र में हूँ किन्तु मेरा कम्प्यूटर ज्ञान अभी भी ‘साक्षर स्तर’ तक नहीं पहुँच पाया है।
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आप पते की बात कह रहे हैं, कम्प्यूटर साक्षरता के कोण को तो मैने सोचा नहीं। कई लोगों के साथ वह हैण्डीकैप हो सकता है। पर उत्तरोत्तर ब्लॉगिंग/सोशल मीडिया इतना सुगम होता जा रहा है कि बहुत ज्यादा ज्ञान की आवश्यकता नहीं।
फिर भी यह तो है कि आप जितना गुड़ (प्रयत्न) डालेंगे उतना मीठा होगा!
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pandey ji main aapki baat kaa samarthan kartaa hoo… beshak ye bahut hi umda jawab hai jitna gud daloge utna hi meetha hoga….
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आपकी पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियाँ और भी अधिक आनंद देती हैं.
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हम आ रहे हैं जी, अभी, इसी वक्त, आपसे मिलने।
जी विश्वनाथ
(बेंगळूरु निवासी)
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आप दम्पति, जितना विलक्षण मैने समझा था, उससे अधिक निकले, मिलने पर!
और आप दोनों से मिलने के बाद मेरे मन में भविष्य के प्रति आशावाद बढ़ गया है।
धन्यवाद।
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एक खुलासा कीजिये सर, विश्वनाथ दंपत्ति के पहुँचने के बाद सम्मिलित प्रतिनिधियों की संख्या आठ हुई या नहीं? इस पोस्ट का पार्ट-टू (बतर्जे धूम-टू) भी बनता है कि नहीं?
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जी, हां। विश्वनाथ दम्पति से मिलने का पोस्ट तो मुझे अपनी लौटानी यात्रा के दौरान लिखना है। और वह वाकई बहुत रोचक है।
लोग जब 60 की उम्र पार कर जायें तो आदर्श रूप में कैसे रहें, व्यवहार करें, वह विश्वनाथ जी से पता चलता है!
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ब्लॉगर्स से मुलाकात अच्छी रही,सुखद अनुभूति।
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आपसे सहमत हूँ पूरी तरीके से …देखिये कितना ब्लागर बंधू अपने को उन रोगों से अपने को मुक्त रख पाते है जिनसे प्रिंट माध्यम या अन्य माध्यमो के लोग ग्रसित है…आदमी अगर वोही है तो ये समझना मुश्किल है कि कैसे ब्लागिंग को ऊपर रख पायेंगे उन्ही प्रवित्तियो से!!!
-Arvind K.Pandey
http://indowaves.wordpress.com/
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माध्यम बहुत सशक्त हैं। सोशल मीडिया कई राष्ट्रों में क्रांति का जनक है। यह लोगों की मेधा और क्रियेटिविटी में विस्फोट का भी जनक हो सकता है।
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आपकी पोस्ट सुबह मोबाइल पर पढ़ी! जबलपुर से कानपुर आते हुये पतारा के पास! :)
आपकी पोस्ट में जब यह वाक्य पढ़ा- अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हवा में परागकणों की तरह बिखरी रहती है। तो आपकी भाषा के बारे में अपनी कही/लिखी बात याद आई:
आपकी हिंदी सोती सुंदरी की तरह है जिसे सालॊं बाद जगाने के लिये कोई राजकुमार झाड़-झंखाड़ काटते हुये, रास्ता बनाते हुये उसके पास तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है।
यह बात हम साढ़े चार साल पहिले कहे थे। अब देखकर अच्छा लगता है कि आपके लेखन में लालित्य बढ़ता जा रहा। पढ़ना अच्छा लगता है! :)
अरविंद मिश्र जी के लेखन को आप कब्भी चुनौती नहीं दे सकते। उनके जैसे विद्वता पूर्ण / गंठीली भाषा लिखना उनके ही बस की बात है! :)
प्रवीण पाण्डेय जी बहुत मेहनत करते टिप्पणी करने में। ढेर सारे ब्लॉग पढ़कर उनसे आनन्द उठाकर टिप्पणी करना उनका ब्लॉगिंग के प्रति लगाव दर्शाता है। यह अलग बात है कि कभी-कभी क्या अक्सर ही उनकी टिप्पणी और ब्लॉगपोस्ट का तारतम्य खोजने में बहुत मेहनत लगती है। लेकिन ब्लॉगरों का उत्साह बढ़ाने का काम वे बखूबी करते रहते हैं। समीरलाल जी आजकल व्यस्त टाइप हो गये हैं। इसलिये उनका और प्रवीण जी की तुलना क्या करना!
आप गंगा किनारे चूंकि एक निश्चित जगह के आसपास घूमते रहते हैं इसलिये आपको ले-देकर जवाहर आदि ही मिलते हैं। अभी मैंने अमृतलाल बेगड़ जी की नर्मदा परिक्रमा करने के बाद लिखी किताब पढ़ी । कैसे-कैसे चरित्र हैं। आप सब काम छोड़कर उनकी किताब बांचिये। क्या अद्भुत भाषा और अंदाज है। आप अपनी गंगा किनारे की यात्रा वाला कार्यक्रम करने की फ़िर से सोचिये। मजा आयेगा। उन्होंने नर्मदा की दूसरी परिक्रमा 75 साल की उमर के बाद की। सपत्नीक जैसे आप रीता भाभी के साथ गंगा भ्रमण करते हैं। आज वे 84 साल के हैं और एकदम चुस्त/चैतन्य।
देवेंद्रजी का ब्लॉग देखा ! अच्छा लगा। अब पढ़ा भी जायेगा। आशा जी को फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजेंगे लेकिन जरा आराम से! :)
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वेगड़ जी तो मेरे रोल मॉडल हैं। उनका 5-10% भी बन पायें तो…! आप उनसे मिले, आपसे ईर्ष्या है!
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ईर्ष्या न करें! जबलपुर मात्र कुछ घंटे की दूरी पर है। ढेर गाड़ियां चलती हैं इलाहाबाद से जबलपुर के लिये! लिये सैलून चल आयें! खूब मुलाकात कीजिये। आनन्द आयेगा। :)
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अनूप जी ,लाचार हूँ -विद्वता और मूर्खता जन्मजात होती है ..सिम्पली कांट हेल्प इट….आपके कतिपय प्रेक्षण मर्मस्पर्शी बन जाते हैं ,आपकी गहरी दृष्टि का परिचायक बनते हैं और आपके बारे में बार बार पुनर्मूल्यांकन को आमंत्रित करते हैं!
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आपने भी प्रवीण जी की अन्तः प्रेरणात्मक, सहजबोधी टिप्पणियों पर क्या मजेदार बात कही है …समीर जी से आगे बढ़ जाना ऐसे ही तो नहीं :)
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