बिक्रमगंज से दाऊदनगर

9 मार्च 23

तबीयत का क्या हाल है? पूछने पर कल रात और आज सवेरे एक ही जवाब था प्रेमसागर का – निन्यानबे परसेण्ट ठीक है भईया। बहुत कुछ वैसा जैसा डेटोल के विज्ञापन में सफाई हो जाती है पर एक कीटाणु बचा दिखाया जाता है।

बहरहाल दो रात बिक्रमपुर चौक के होटल में बिता कर आज सवेरे रवाना हुये। आज आठ बजे जब बात हुई तो सात किमी चल चुके थे। उन्होने जो पहला चित्र भेजा वह काव नदी का है, जिसपर एक पुल पर बड़ा ट्रक पास हो रहा है।

बिक्रमगंज के पास काव नदी

सासाराम के पास पहाड़ी स्थान से निकली काव नदी बिक्रमगंज के आसपास कई बार पार करती है। यह नदी गंगाजी में अंतत: मिलती है। इसके उद्गम स्थल जानने की तलाश में मैंने सासाराम जिले के धुआँ कुण्ड और उसके किनारे बने ताराचण्डी मंदिर की डिजिटल यात्रा की। उस डियाक (डिजिटल यात्रा – नेट पर जानकारी छानने की कवायद) में पता चला कि ताराचण्डी मंदिर काव नदी के उद्गम धुआँ कुण्ड के पास है और यह शक्तिपीठ माना जाता है। कहा जाता है कि यहां सती की दांयी आंख गिरी थी।

ताराचण्डी माँ की प्रतिमा। सासाराम। KUMAR AMIT – अपना काम, CC BY-SA 4.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=93282044 द्वारा

शक्तिपीठों की सूची का कोई मानक नहीं है। चार, अठारह, इक्यावन, बावन, चौंसठ और एक सौ आठ पीठों की अलग अलग सूचियाँ हैं। कई बार इसपर भी विवाद है कि माई का अमुक अंग किस जगह गिरा था। इसलिये प्रेमसागर आदिशंकर के अष्टादश महाशक्तिपीठ श्लोक के आधार पर चल रहे हैं। उस आधार पर चलते जितने भी शक्तिपीठ दर्शन हो जाये, वह उनका ध्येय है। ताराचण्डी शक्तिपीठ अलका पाण्डे की ‘शक्ति’ पुस्तक के 51 शक्तिपीठों में भी नहीं है। सो वाराणसी से गया जाते हुये सासाराम जाना नहीं हो पाया। अन्यथा, वे बिक्रमगंज की बजाय धुआँ कुण्ड पर काव नदी को देखते।

नेट छानने में मुझे मुझे यह भी पता चला कि इस नदी के किनारे आदिमानव के रहने के प्रमाण मिले हैं। पर मैं किसी पुरातत्व खोज का कोई लिंक नहीं तलाश पाया। वह अगर मिल पाता तो यह डिजिटल यात्रा कथा (डियाक) और रोचक बन पाती। :-)

काव नदी सामान्य आकार की है – पतली और 200 किमी लंबी। यह इलाके की सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। बरसात के मौसम में इलाके की अन्य नदियों की तरह यह भी विकराल रूप धारण कर लेती है। इसलिये, बरसात के मौसम के पहले ही प्रेमसागर को बिहार, बंगाल और असम की अपनी शक्तिपीठ यात्रा पूरी कर किसी और इलाके में प्रवेश ले लेना है।

यात्रा पर निकलते ही एक जगह एक छोटा मंदिर दिखा प्रेमसागर को।

सवेरे यात्रा पर निकलते ही एक जगह एक छोटा मंदिर दिखा प्रेमसागर को। नया ही बना है। लोगों ने बताया कि वहां कोई यज्ञ कर मंदिर स्थापित हुआ था। मंदिर में झांकी नुमा प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमायें हैं। एक बाबाजी की भी मूर्ति बनी है। वे ही शायद मंदिर के मुख्य गुरू रहे होंगे।

बिक्रमगंज रेलवे स्टेशन भी है। आरा से सासाराम की इकहरी लाइन को स्टेशन के पास पार किया प्रेमसागर ने। आरा और सासाराम के बीच निश्चय ही माल यातायात नगण्य होगा। बिहार के औद्योगिक विकास की कोई कहानी अभी शुरू ही नहीं हुई है। सो, इकहरी लाइन के दोहरा करने की तो जरूरत ही नहीं होगी। हां यह देख अच्छा लगा कि ट्रैक का विद्युतीकरण हो गया है।

बिक्रमगंज रेलवे क्रॉसिंग से लिया चित्र।

रेल लाइन देख कर मुझे नोश्टाल्जिया होता है, पर सन 2023 में इकहरी लाइन देखने में अच्छा भी नहीं लगता। यह रेल लाइन अपने ऊपर के खर्चे के बराबर कमाई नहीं देती होगी रेलवे को। बिहार दस प्रतिशत सालाना जीएसडीपी वृद्धि करे तो शायद एक दो दशक में इस लाइन के दिन फिरें। वर्ना इस प्रांत ने कई रेल मंत्री दिये हैं जो सिर्फ बिहार से बम्बई-दिल्ली की सवारी गाड़ियों को चला कर ही वाहावाही लूटते रहे। उसके अलावा उन्होने लूटा कुछ और भी! :-(

बिक्रमगंज से आगे सड़क ठीक है। एक दो जगह डायवर्शन है। काम हो रहा है। यह हाईवे नम्बर 120 है। काम करते लोगों ने बताया कि वे कलकत्ता से आये हैं। ठेकेदार के आदमी हैं। काम जल्दी करने का उनपर दबाव है। प्रेमसागर ने जब यह बताया तो अच्छा लगा। वैसे मैंने बनारस-शेरघाटी के बीच ग्राण्ड ट्रंक रोड के काम की दुर्दशा देखी है। जगह जगह पर डायवर्शन हैं और सालों से कोई काम होते नहीं दीखता। कई कई जगह तो अर्थवर्क पर बड़ी बड़ी झाड़ियां उग आयी हैं जो एनएचएआई की अकुशलता दर्शाती हैं।

बिक्रमगंज के आगे सड़क

दाऊदनगर के पहले शोणभद्र (सोन नदी) का पाट काफी चौड़ा है। करीब आठ मिनट लगे प्रेमसागर को पैदल पार करने में। नदी में पानी कम है। अच्छा है – पानी नदी की बजाय सोन की नहरों से डेढ़ सौ साल से सिंचाई के काम आ रहा है। डेढ़ सौ साल के इस सिंचाई चमत्कार से बिहार को गुजरात से आर्थिक रूप से एक सदी पहले ही आगे हो जाना चाहिये था, पर आज वह बीमारू प्रांतों में भी फिसड्डी है। यह एक बड़ा आश्चर्य है। यक्ष प्रश्न। कौन युधिष्ठिर बतायेंगे इस आर्थिक जर्जरता का कारण। बिहार ने बाहरी दुनियाँ को उत्तमोत्तम दिमाग दिये हैं और घटिया से घटिया अर्थव्यवस्था। :-(

सोन नदी के किनारे दाऊदनगर

दाऊद नगर ठीकठाक विकसित शहर नजर आया। नेट पर यह भी पता भी चला कि यहां के विद्यार्थी मैरिट लिस्ट में काफी आगे रहते हैं। दाऊद नगर के बारे में जानकारी छानने पर पता लगा कि दाऊद खान कुरैशी औरंगजेब का सेना अधिकारी था। सोन के पूर्व का यह इलाका पलामू के राजा से 1664 में जीतने की खुशी में औरंगजेब ने उसे जागीर दी थी और उसने अपने नाम को स्थाई करने के लिये यह नगर बसाया। वह मूलत: हरियाणा के हिसार फौजा का शेखजादा था।

फ्रांसिस बुखानेन का बिहार का सर्वे जर्नल – सन 1811-12

दाऊद नगर का इतिहास जानने में एक और नाम आता है फ्रांसिस बुखानेन (1762-1829) का। ये सज्जन पेशे से डाक्टर थे। लॉर्ड वेलेसली के सर्जन। पर इनकी रुचि जगहों को देखने और उनका दस्तावेजीकरण में थी। वे अठारहवीं सदी के शुरुआत में भारत आये। उन्होने मैसूर और बंगाल/बिहार की जैव विविधता, समाज और आर्थिक दशा का सर्वे जर्नल लिखा था जिसे सन 1930 में एशियाटिक सोसाइटी ने छापा। इस जर्नल की प्रति इण्टरनेट आर्काइव पर दिखती है। दस साल पहले बिहार सरकार ने इसे पुन: छापा है। सन 1800 के आसपास बिहार के पटना, शाहाबाद, भागलपुर, गया और पूर्णिया इलाके कैसे थे जानने के लिये यह जर्नल बड़ा रिसर्च जखीरा है।

मैंने इस जर्नल का टेक्स्ट नेट पर खोल कर उसमें दाऊदनगर को सर्च किया। कुल 29 बार दाऊदनगर का नाम आया है उस जर्नल में। और उससे पता चलता है कि 3 सदी पहले यहां शेर और बघेरे तो नहीं थे, पर भेड़िये जरूर थे। अफीम, बर्तन और कपड़े का उद्योग था। यहां के आढ़तियों का व्यवसाय बनारस तक चलता था और उनकी हुण्डी की बनारस में अहमियत थी। लोग ‘खुशहाल’ थे।

आप यह टेक्स्ट डॉक्यूमेण्ट यहां देख सकते हैं। थोड़ी मेहनत कर पूरे पीडीएफ डॉक्यूमेण्ट को जो लगभग 130MB का है, डाउनलोड भी कर सकते हैं – अगर आप शोध करने में रुचि रखते हैं। वैसे, यह शायद अमेजन पर भी मिल जाए।

फ्रांसिस बुखानेन की इस पुस्तक पर दो तीन घण्टा डियाकी करने के बाद असल पदयात्रा करने वाले प्रेमसागर भले दाऊदनगर को भूल जायें, मैं डिजिटल मशक्कत के बाद नहीं भूल सकता। इस डियाकी में बहुत हल्के से टिप पर भांति भांति से खोजना और गूगल मैप पर उपलब्ध चित्रों के सहारे इलाके की दशा का आकलन करना शामिल है।

अब आप मान सकते हैं कि मैं केवल प्रेमसागर का कहा लिखने भर की कवायद नहीं कर रहा; मैं खुद इस डियाकी में भी एक प्रकार की यात्रा कर रहा हूं। अपने घर बैठे रोज 25-30 किमी की यात्रा! और मुझ पर उसे लेखन में उतारने का दबाव भी है। :-)

प्रेमसागर दाऊदनगर से थोड़ा आगे जा कर रुके हैं। वहां आज भी होली खेली जा रही है। एक कमरा किसी लॉज में उन्हें मिल गया है। अब यहां से गया करीब 70 किमी दूर है। दो दिन में पंहुच ही जायेंगे।

आप उन्हें आर्थिक सहयोग उनके यूपीआई पते पर देने की सोचें! धन्यवाद।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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