7-8 मार्च 23
सेमरी/माल्याबाग के आगे किसी लॉज में रुके थे प्रेमसागर। तबियत कुछ ठीक नहीं थी। पर लगता है वह जगह ज्यादा जमी नहीं। सवेरे सवा पांच बजे उठ कर चल दिये। लगभग पंद्रह किलोमीटर चल कर बिक्रमगंज पंहुच गये। मुझे फोन किया तो सवेरे के सवा आठ बजे थे। बीमार होने के बावजूद भी तेज ही चले होंगे। अजीब मनई है यह प्रेमसागर। हरारत या बुखार होने पर मैं तो कमरे के साथ अटैच्ड बाथरूम जाने के पहले सोचता हूं। ये सज्जन पंद्रह किमी चल लिये।
उनकी सांस भारी थी। तबियत वास्तव में खराब ही होगी। अकेला पदयात्री। अनजान जगह और टेंट में मुद्रा भी सीमित। मैं होता तो यात्रा को इतिश्री कह घर लौटने की सोचता। वैसा कुछ प्रेमसागर के मन में आया ही नहीं होगा।

“भईया, रस्ता में कुछ फोटो खींचे हैं। आपको भेज दिये हैं। यहां ठीक होटल मिल गया है। पांच सौ किराया है। आज दिन भर आराम करूंगा और कल छ बजे निकलूंगा आगे के लिये।” – प्रेमसागर आगे की यात्रा की बात कर रहे हैं। तबियत ठीक नहीं है। होली का मौसम है। लोग रास्ते भर हुड़दंग करने वाले होंगे ही। पर उनको तो चलना है। चरैवेति, चरैवेति!
मैंने दिन भर कोई सम्पर्क नहीं किया उनसे। आराम मिलना चाहिये। शाम सात बजे से आधा आधा घण्टे पर तीन फोन किये पर कोई जवाब नहीं मिला। घण्टी पूरी बज कर बंद हो गयी। मुझे फिक्र लगी – तबियत ज्यादा न बिगड़ गयी हो।
उनकी सांस भारी थी। तबियत वास्तव में खराब ही होगी। अकेला पदयात्री। अनजान जगह और टेंट में मुद्रा भी सीमित। मैं होता तो यात्रा को इतिश्री कह घर लौटने की सोचता। वैसा कुछ प्रेमसागर के मन में आया ही नहीं होगा।
अगले दिन, आज 8 मार्च को, सवेरे आठ बजे फोन आया प्रेमसागर का – “कल नींद में थे भईया। दवाई ले कर सोये थे। रात में इग्यारह बजे देखा कि आपकी मिस कॉल हैं। उस समय फोन करना ठीक नहीं समझा। आज तबियत बेहतर है पर गला अकड़ गया है। दूसरे आज बारिश भी हो रही है। होटल के मालिक को मैंने बोल दिया है कि एक दिन और रुकना होगा।”
मैंने उन्हें कहा कि अगर सम्भव हो तो बिक्रमगंज चौक का एक फोटो खींच लें। प्रेमसागर ने बताया कि उनका होटल चौक के ही पास है। आधे घण्टे में चौक के चित्र भेज दिये। चित्र से अंदाज लग गया कि अभी सवेरे होलीमय नहीं है वातावरण। बारिश से सड़क गीली है। लोकल नेताओं के नव वर्ष, ईद, मकर संक्रांति और होली की बधाई के पोस्टर लगे हैं। चहल पहल है। पर बहुत चेंचामेची नहीं है। जो जानकारी नेट पर है, उसके अनुसार यह चौक बिहार के इस हिस्से – रोहतास जिले के पश्चिमी भाग का बड़ा रूरर्बन केंद्र है। इसी लिये मैंने इसका चित्र लेने को कहा था प्रेमसागर को।

चौक कस्बाई बिजनेस सेण्टर जैसा दीखता है। कोई नेता जी हैं घनश्याम कुमार। उनके बड़े बड़े पोस्टर हैं। एक डाक्टर साहब के आरोग्यम ईएनटी अस्पताल का पोस्टर है। कोचिंग क्लासेस वाले के पर्चे खम्भे पर चिपके हैं। चौक के बीचोंबीच कोई नेता जी नहीं, कोई मॉर्डन आर्ट का स्कल्प्चर है। बिक्रमगंज का रूरर्बिया, रूरल कम अर्बन ज्यादा बनने का प्रयास कर रहा है।
मैं यह सोच रहा हूं कि यात्रा किसकी है – प्रेमसागर की या मेरी? प्रेमसागर का तो कहना है कि उन्हें नींद आ गयी तो कोई चार लाठी भी मारे तो नींद नहीं खुलती। मेरी मनस्थिति दूसरी है। रात लघुशंका के लिये नींद खुलती है; और उम्र के साथ ज्यादा ही खुलती है; तो प्रेमसागर के यात्रा विवरण के शब्द गढ़ने का भाव बना रहता है। इस तरह की डिजिटल यात्रा किसी ने की है – इस तरह के घर के कमरे में रहते हुये यात्रा कथा लिखने के प्रयोग। मुझे यह अलग तरीके की चीज लगती है और इसके लिये भी एक शब्द गढ़ता हूं मैं – डियाक (डिजिटल यात्रा कथा)।
डियाक लेखन में मूल तत्व प्रेमसागर के फोन पर दिये इनपुट्स और ह्वाट्सएप्प/टेलीग्राम पर भेजे चित्र हैं। उनके अलावा गूगल मैप, विकिपेडिया और गूगल सर्च द्वारा खंगाली जानकारी बैकग्राउण्ड को गाढ़ापन देती है। कभी कभी मुझे कुछ पुस्तकें भी खरीदनी पड़ती हैं। पर वह खरीद भी डिजिटल माध्यम – किण्डल पर ही होती है। कागज का प्रयोग तो शायद ही होता हो। इसलिये इसे डिजिटल यात्रा कथा लेखन या डियाक लेखन कहा जा सकता है। डियाक में अभी मैंने कभी भी फिक्शन का प्रयोग नहीं किया। पर कभी कभी लगता है विभिन्न स्थानों के बारे में इण्टरनेट पर इतनी जानकारी, इतने चित्र बिखरे हैं कि एक फिक्शनल यात्री गढ़ कर पॉल थरू की टक्कर का ट्रेवलॉग – डियाक ठेला जा सकता है। कोई न कोई कर देगा। या ऊर्जा बनी रही तो कभी मैं ही डियाकी में नये प्रयोग कर गुजरूं! 😆
फिलहाल, इस डियाक लेखन ने बहुत कुछ होल्ड पर डाल दिया है। बहुत कुछ लिखना है। सुरेश पटेल दो बार मिलने आ चुके हैं। उनके सब्जियों की खेती और विपणन के प्रयोग में बहुत कुछ है जिसपर लिखा जाना चाहिये। मेरे नाती, विवस्वान के जनेऊ संस्कार पर बहुत कुछ सोचा है। कुछ नोट्स भी हैं और ढेरों चित्र भी। मेरी बिटिया बोलती नहीं, पर उसे भी लगता होगा कि बाहर के चिड़िया कौव्वा दीखते हैं, पर विवस्वान पर लिखना नहीं सूझता। विवेक ने साइकिल चलाना शुरू किया है और स्वास्थ्य पर नये प्रयोग कर रहे हैं। राजकुमार उपाध्याय और उनका परिवार एक अलग तरीके से मुझे प्रभावित कर चुका/रहा है। … बहुत कुछ है, जिसपर लिखा-कहा जाना है। पर वह सब नहीं हो रहा। डियाक चल रही है। डिजिटल यात्रा कथा!
मैं बिक्रमगंज को बारीकी से देखता हूं। यहां रेलवे स्टेशन है। एक नहर भी दीखती है। चौक से सड़कें जाती हैं बक्सर, सासाराम, पटना और डेहरी को। बढ़िया कनेक्शन है बिहार के बाकी हिस्सों से। बिहार में, अगर रिहायश बनानी ही हो (और वह बड़ा अगर है – बिहारी भी बिहार छोड़ देस परदेस जा रहे हैं 😦 ) तो बिक्रमगंज बढ़िया जगह हो सकती है। फिलहाल तो यह डियाकी सोच है। 😆
मैं प्रेमसागर पर लौटता हूं। मेरा सोचना है कि अस्वस्थ प्रेमसागर को मदद की जरूरत है। यात्रा कितनी भी फ्रूगल क्यों न हो, उसके लिये कुछ न कुछ आर्थिक सहयोग तो चाहिये। जिसका भी फोन मेरे पास आता है उन्हें घुमा-फिरा कर प्रेमसागर को सहायता करने की बात कहता हूं। मेरे ख्याल से पाठकगण भी वैसा कुछ कर सकते हैं। थोड़ा बहुत अंशदान उनके एक दिन लॉज का किराया या भोजन का खर्चा अदा कर सकता है। पता नहीं, प्रेमसागर को मेरा यह कहना कैसा लगेगा, पर प्रेमसागर को आर्थिक योगदान करना पुण्य का काम है।


बिक्रमगंज का होटल और 500रुपये रोज का कमरा।
आज बिक्रमगंज में एक दिन और रुकने के बाद (आशा है) कल प्रेमसागर दाऊद नगर के लिये निकलेंगे। वह सोन नदी पर जगह है। तीस किमी आगे। दाऊद नगर से गया है 70 किमी दूर। गया में मंगलागौरी शक्तिपीठ है। प्रेमसागर का अगला महाशक्तिपीठ।
आज होली है। रंगों का त्यौहार मंगलमय हों!
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |

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