31 मई 2023
नगर या बृजनगर भरतपुर जिले का पश्चिमी किनारा होगा। यहाँ भी प्रेमसागर को खण्डेलवाल समाज की धर्मशाला में जगह मिल गयी। सस्ते में। तीस-इकतीस मई की रात वहां गुजारी। आज सवेरे जल्दी निकलना नहीं हो पाया। खण्डेलवाल धर्मशाला का मेन गेट छ बजे खुलता है।



नगर से निकलते ही मोर, ऊंटगाड़ी, भिटोरा (उपड़ऊर – उपले का ढेर) दिखे।
आगे मुख्य मार्ग से अलग चले प्रेमसागर। नगर से निकलते ही मोर, ऊंटगाड़ी, भिटोरा (उपड़ऊर – उपले का ढेर) दिखे। भिटोरा उत्तरप्रदेश के डोम के आकार का नहीं, चौकोर होता है और उसपर गोबर के लेप में सुंदर चित्रकारी भी दीखती है। यह बनाने का काम महिलायें ही करती होंगी। बहुत कलात्मक हाथ होंगे उनके। उपले रखने की साधारण सी जगह को भी सुंदर बनाना यहां उत्तरप्रदेश की महिलाओं को नहीं आता।

ग्रामीण इलाका गुर्जर बहुल है। लोगों ने प्रेमसागर का वेश देख कर और यह जान कर कि वे लम्बी पदयात्रा पर निकले हैं; उनका अच्छा स्वागत सत्कार किया। तख्त और फर्श पर बैठे ग्रामीण, हुक्का बारी बारी से गुड़गुड़ाते हुये। प्रेमसागर को हुक्के की दरकार तो नहीं होगी, पर उन्हें जलपान अच्छे से कराया ही होगा। जहां भी स्वागत सत्कार होता है, वहां के चित्र बड़ी उदारता से मेरे पास भेजा करते हैं प्रेमसागर। ध्यान से देखने पर ग्रामीण जीवन की विविधता नजर आती है। एक व्यक्ति तिलक लगाये है। एक पगड़ी पहने। जिन्होने पगड़ी नहीं रखी उनके कांधे पर गमछा है। शायद गमछा ही पगड़ी बन जाता हो।
एक ही हुक्के से बारीबारी गुड़गुड़ाते लोग। क्या बात कर रहे होंगे? स्थानीय राजनीति की? गर्त में जाती नई पीढ़ी की? या प्रेमसागर की यात्रा की। चित्र के अलावा बहुत इनपुट नहीं मिलते। प्रेमसागर जितनी सरलता से फोटो भेजते हैं, उतनी कलात्मकता से उसका विवरण नहीं देते। उन्हें मैंने इत्मीनान से ऑडियो मैसेज देने को कहा है। पर कोई काम का सम्प्रेषण नहीं लगता। केवल कुछ शब्द, जो लिखे जाने थे, वे ऑडियो रूप में बोले जाते हैं।



जगह का नाम बताया – बाजाहेड़ा। नक्शे में वह बजहेड़ा लिखा है। गूगल मैप हिंदी से अंगरेजी नहीं बनाता। अंगरेजी से हिंदी बनाता है। प्रेमसागर भी कुछ कुछ गूगल जैसे हैं। शब्दों के हिज्जे और ध्वनि को सही सही री-प्रोड्यूस नहीं करते।
आगे दोपहर होते समय एक अन्य गांव में फूल सिंह जी उन्हे भोजन कराते हैं। गांव का नाम भेजा है सिकाहेरा। पता नहीं वह सिकाहेरा है या कुछ और। गूगल मैप में लगभग उसी जगह पर गांव दिखता है – सिताहरा – Sitahara. फूल सिंह जी सम्पन्न ग्रामीण नजर आते हैं। पैण्ट कमीज पहने हैं। घर में सोफा है। प्रेमसागर को स्टील की थाली, कटोरी में भोजन और ग्लास तथा पीतल के लोटे में जल रख कर जिमाया गया है।


सिताहरा में फूल सिंह जी के यहां भोजन
मैं गुर्जर लोगों को रुक्ष और अभद्र टाइप मानता था। वह जाति जो कायदे कानून अपने हिसाब से बनाती मानती हो। पर प्रेमसागर जी की इस यात्रा में उनके स्नेह और आतिथ्य ने मेरी धारणा बिल्कुल बदल दी है। बजहेड़ा और सिताहरा और उस जैसे अन्य गुर्जर गांवों की जय हो!
भोजन के बाद प्रेमसागर कठूमर-लक्ष्मणगढ़ मार्ग पर चले। वहां भी वैसे ही मेजबानी के चित्र हैं। एक जगह लोग उन्हें ठण्डई जैसा कोई पेय पिलाते दीख रहे हैं। रास्ते भर राजस्थान की गर्मी में पीने के पानी का इंतजाम है। पानी का कण्डाल और मटके। पानी की टंकी आदि। वनस्पति बदल रही है। रेगिस्तानी; मोटे तने में पानी अपने में जमा करने वाली केक्टस वेराइटी की वनस्पति नजर आती है। राजस्थान अपना रंग दिखा रहा है। शायद सीकर जिला है। शेखावाटी इलाका।

गांव में गुर्जर और मेव हैं। कस्बों, बड़े गांवों में बनिया और बाभन। हो सकता है राजपूत और जाट भी हों। जातिगत बदलाव पर प्रेमसागर के बहुत इनपुट्स नहीं हैं। मेव तो उनके लिये मुसलमान ही हैं। उनके इतिहास और वर्तमान से अछूती रहती है प्रेमसागर की यात्रा। आगे कई गांव दिखते हैं जहां मुस्लिम आबादी है। लक्ष्मणगढ़ के पास एक मेव मस्जिद भी नजर आती है। मेव आबादी हरियाणा, भरतपुर, सीकर और अलवर में है। इनका इतिहास राजपूतों द्वारा 1200-1700 के बीच इस्लाम स्वीकार करने का है। इनमें कई रस्म रिवाज अभी भी सवर्ण हिंदुओं के हैं। मसलन एक ही गोत्र में विवाह नहीं होना और नाम में भी हिंदू प्रतीकों का प्रयोग – रामचंद्र खान जैसे नाम। अब हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य के कारण धार्मिक जड़ता शायद आई हो। पर प्रेमसागर की इस यात्रा में उनसे सम्पर्क नहीं होता है। प्रेमसागर की वेशभूषा भी ऐसी है कि कोई अन्यधर्मी शायद ही उनके पास फटके!

मुझे लगता था कि लक्ष्मणगढ़ बड़ी जगह है। यहां प्रेमसागर को रात गुजारने की जगह मिल जायेगी। पर वैसा हुआ नहीं। खण्डेलवाल धर्मशाला में व्यवस्था अच्छी नहीं थी। शौचालय में दुर्गंध का साम्राज्य था। एक दो मंदिरों ने ठहरने की जगह होने से इंकार कर दिया। “भईया, वह मंदिर कैसा जहां साधू या पदयात्री को रुकने की जगह न हो? भगवान वहां नहीं रहते होंगे।” – प्रेमसागर ने कहा। राजस्थान के सामान्य आतिथ्य को देख कर प्रेमसागर की अपेक्षायें बढ़ गयी हैं शायद। अन्यथा देश के बहुत हिस्सों में मंदिरों में और शक्तिपीठों में भी उन्हें टके सेर जवाब मिल चुका है। ईश्वर या माता वहां भी नहीं होंगे?

अंत में लक्ष्मणगढ़ के चार किमी आगे एक हनुमान मंदिर (नकटे हनुमान मंदिर) में उन्हें रहने को जगह मिली। पुजारी जी ने उनके भोजन का भी इंतजाम किया। जब प्रेमसागर मंदिर में पंहुच कर अपना परिचय पुजारी जी को दे रहे थे, तभी मैंने प्रेमसागर को फोन किया था। फोन का बटन उन्होने ऑन कर दिया या गलती से हो गया होगा। मैं उनकी पुजारी जी से बातचीत सुन पाया। रात गुजारने की जगह तलाशते पदयात्री के तर्क बहुत रोचक थे।
प्रेमसागर कह रहे थे – “आप मंदिल के पुजारी जी हैं? पुजारी जी हम बारह ज्योतिर्लिंग, चार धाम की पदयात्रा करने के बाद इक्यावन शक्तिपीठों की पदयात्रा पर हैं। अब तक तेईस शक्तिपीठ जा चुके हैं। आगे की यात्रा में एक रात गुजारने के लिये हमने सोचा कि जब हनुमान जी यहां हैं तो किसी और मंदिर की क्या जरूरत। हनुमान जी तो अस्थान देंगे ही। … आप मेरा आधार नम्बर नोट कर सकते हैं। और मेरे बारे में ज्यादा जानकारी के लिये गूगल सर्च कर सकते हैं। शक्तिपीठ पदयात्रा के नाम से सर्च करने पर मेरे बारे में पूरी यात्रा का विवरण मिल जायेगा।…”


नकटे हनुमान मंदिर में प्रेमसागर
पांव ठोंक कर, आवाज में आत्मविश्वास दिखाते हुये बात कर रहे थे प्रेमसागर। गूगल सर्च, ब्लॉग के ट्रेवलॉग, आधार नम्बर आदि की जहमत नहीं उठाई पुजारी जी ने। आसानी से रात गुजारने की जगह मिल गयी प्रेमसागर को।
… और तब मुझे समझ आया कि अपनी यात्रा को सुगम बनाने के लिये किस तरह उपयोग करते हैं मेरे डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन का! कई जगह परिचय देने में ब्लॉग का प्रयोग कर उनकी झांकी जमी होगी। कितनी जगह सरलता से बिना पैसे या कंसेशन पर उन्हें सुविधायें मिली होंगी! पदयात्रा का महत यत्न तो उनका ही है, पर रुपया में दो-चार आना क्रेडिट ब्लॉग को भी मिल सकता है! :lol:
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
| प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
| दिन – 103 कुल किलोमीटर – 3121 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल। |
