12 जुलाई 2023
प्रेमसागर का शाक्त पहनावा अजीब तो है। लाल लबादा। बच्चे डर सकते हैं। मुझे अपना बचपन याद आता है। मुझे साधू और पुलीस के वेश से डर लगता था। घर में एक डोम आता था गांव में। वह डाक हरकारा था। खूब तेज चलता था और हाथ में एक बल्लम लिये रहता था। साधू, पुलीस, होमगार्ड या उस डोम को देख मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। मैं अपनी अम्मा की साड़ी में छिप जाता था।
पर मेरे भय को देख कर कभी किसी घरवाले ने साधू, दरवेश, पुलीस, होमगार्ड या डोम को गलत नहीं ठहराया। उल्टे मेरी अम्मा ने मुझे ही बताने की कोशिश की कि वे लोग अपना काम करते हैं।
हरी चादर लिये वे दरवेश मेरे ननिहाल में बहुधा आया करते थे। बगल में ही जुलाहों की बस्ती थी। वहां मांगते थे तो नानी के घर से भी सीधा-पिसान पा जाते थे। दरवेशों और साधुओं – दोनों को बराबर ट्रीट किया जाता था।
अब पता नहीं क्या हो गया है। प्रेमसागर कुंचील की मियां बस्ती से गुजर रहे थे। दो औरतें उन्हें कहने लगीं कि यहां से क्यों जा रहे हो? हमारे बच्चे डर रहे हैं। औरतों के कहने के साथ लोगों की भीड़ भी जुटने लगी। बाद में प्रेमसागर ने बताया – “पचीस तीस लोग जमा हो गये। और भी बढ़ते। वह तो, भला हो, दो लोग जो पहले मुझे जाते देखे थे, आ कर मुझे वहां से निकाल कर ले गये। भईया, बहुत खराब बोल रहे थे वे भीड़ वाले लोग। बोले ये सड़क तुम्हारा है क्या जो चले आ रहे हो? सड़क मोदी या मोदी के बाप का है क्या? हम तो भईया कोई जवाब नहीं दिये। जवाब देते तो बात बढ़ता ही। हमने तो बस यही कहा कि हम पदयात्री हैं और पुष्कर जा रहे हैं।”

“वो दोने सहायता करने वाले लोग हमें वहां से निकाल कर अपने इलाके में एक जगह बिठाये। फिर वहां से मैं रवाना हुआ आगे के लिये। करीब चार किमी चला था कि पीछे से उन दोनों में से एक सज्जन – रामस्वरूप गुर्जर – मोटर साइकिल से आये और मुझे बिठा कर करीब दस किलोमीटर आगे छोड़ दिये। वो बोले कि “बाबा यहां से आगे चले जाइये, यहां से सब सेफ है। हमारे गांव कुंचील में पचास घर गुर्जरों के हैं बाकी 2000 घर मिंया बस्ती है। पर हम पचास ही उनपर भारी हैं। आज हम वापस जा कर फैसला करते हैं। ज्यादा करेंगे तो काट डालेंगे हम। उनकी धौंस नहीं चलती हम लोगों पर।””
साम्भर झील के बगल से प्रेमसागर 11 जुलाई को निकले थे। रूपनगढ़ पार कर सलेमाबाद में निम्बार्काचाय के मठ में 11-12 जुलाई की रात गुजारी। वहां से आज निकल कर कुंचील से गुजर रहे थे कि यह काण्ड हो गया। वह यात्रा विवरण अलग से लिखूंगा। निम्बार्काचार्य का मठ बहुत सुंदर है। उसके बारे में कुछ जानकारी जुटानी है। वह पोस्ट एक दो दिन में होगी।
फिलहाल तो यह बखेड़ा लिखना था।

प्रेमसागर को गूगल नक्शे के रास्ते ने गलत जगह घुसा दिया उनको। गूगल यह भेद नहीं करता कि कहां हिंदू हैं और कहां मुसलमान। कहां लोग उदग्र हैं और कहां शान्तिप्रिय। इस आशय का फीडबैक भी गूगल मैप को लेना चाहिये और उस हिसाब से रास्ता सुझाना चाहिये।
बहरहाल, प्रेमसागर सुरक्षित और स्वस्थ हैं। शाम को वे बूढ़ा पुष्कर घूम लिये। कल 13 जुलाई को मणिबंध शक्तिपीठ और पुष्कर के आसपास के अन्य मंदिरों के दर्शन करेंगे।
यही आशा की जाती है कि आगे कोई विधर्मी बच्चे प्रेमसागर से न डरें और डरें भी तो उनके माई-बाप उसे ले कर धार्मिक वैमनस्य न बोयें। इस देश में सब भय से मुक्त रहें और निर्बाध आ जा सकें। सड़क किसी के बाप की न हो!
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
| प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
| दिन – 103 कुल किलोमीटर – 3121 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल। |

desh ki halat kya ho gayi.. apne hi desh me aadmi paidal nahi nikal sakta..
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जी यह वास्तव में दुःखद है. और यह खाई बढ़ ही रही है. 😒
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Bahut hi galat baat h jo ye log aise bolte h lekin pata nahi ye bemashy in logo m bhara kisne ye sochne ka subject h . Bhole baba yatra sakushal sampann karayen yahi prarthana h
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