गजा पट्टी की जो भी तस्वीर आती है, उसमें या तो मलबा है या कॉक्रीट जंगल। उसे विश्व का सबसे बड़ा खुला जेल कहा जाता है। मन में जो इमेज बनती है वह बम्बई के धारावी जैसी है। मानो लोग एक दूसरे पर लदे पड़े हों। मानव के लिये मूलभूत सुविधाओं के लिये भी जहां जगह न हो।
पर क्या गजा पट्टी वैसी ही है? क्या उत्तरी गजा से दक्षिणी इलाके में ठेले जाने वाले लोगों के लिये कोई जगह नहीं है?

मैंने गूगल मैप पर गजा पट्टी तलाशी। उसके पांच सात जगहों को टटोला। हर जगह के एक दो दर्जन चित्र निहारे। वीडियो भी देखे जहां यूट्यूबर बिरादरी वहां के पर्यटन स्थलों और समुद्र तट का बखान कर आमंत्रित कर रही थी।
और मुझे लग गया कि हालत उतनी खराब नहीं जितनी उन मलबों और कॉक्रीट जंगलों को देख लगती है जो मीडिया परोस रहा है।
गजा पट्टी में आबादी का घनत्व ज्यादा है। करीब छ हजार व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर। पर भारत के चारों मेट्रो शहरों – बम्बई, कलकत्ता, मद्रास और दिल्ली में इससे कई गुना ज्यादा घनत्व है। अब गजा पट्टी एक मेट्रो शहर की बजाय हमासिया सुरंगों का इलाका बन गया तो उसमें उसकी अपनी इच्छा है।

गजा पट्टी के पास बहुत सशक्त भौगोलिक अवसर हैं। सबसे बड़ा लाभ तो भूमध्य सागर का चालीस किलोमीटर लम्बा समुद्रतट है। मेडिटरेनियन के किनारे होना धरती की बहुत कम आबादी को मिलता है।
ज्यादा जनसंख्या घनत्व और समान भौगोलिक अवसरों के साथ सिंगापुर सिंगापुर है और गजा एक भौगोलिक कोढ़। कोढ़ में खाज।
हम तुलना के लिये गजा पट्टी और सिंगापुर को लें। इनके क्षेत्रफल क्रमश: 365 और 730 वर्ग किमी हैं। पर आबादी का घनत्व क्रमश: 6000 और 9000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। सिंगापुर के पास भी सिंगापुर की खाड़ी है जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर की संधि पर है। ज्यादा जनसंख्या घनत्व और समान भौगोलिक अवसरों के साथ सिंगापुर सिंगापुर है और गजा एक भौगोलिक कोढ़। कोढ़ में खाज।
इज्राइल ने जब सितम्बर 2005 में गजापट्टी को खाली किया था और सभी जगहों की कुंजी फिलिस्तीनी लोगों को दे दी थी, तब फिलिस्तीनियों के पास अवसर था कि वे गजा पट्टी को सिंगापुर बना सकते थे। दुनिया भर से पैसा उनके पास आया। पर पैसा गजा की आर्थिक उन्नति में नहीं लगा। पैसा गया भ्रष्ट हमासिया लीडर्स की जेब में। उनके लीडर गजा में नहीं रहते। उन लीडर्स के बच्चे पश्चिमी देशों में रहते और शिक्षा पाते हैं। इसके अलावा पैसा जो गजा में लगा भी तो वह जिहादी उपक्रमों को पोषित करता रहा। बिल्कुल वैसा ही जैसा हमारे कश्मीर के अलगाववादी नेता लोग करते हैं। वे भी वैसे ही भ्रष्ट हैं और उनके बच्चे अमरीका में पढ़ते हैं। कश्मीर की जनता को वे जिहादी झुनझुना थमाये हुये हैं।

फिलिस्तीनियों के पास अवसर था कि वे अपनी आर्थिक उन्नति कर तेल अवीव की टक्कर में खड़े होते। पर उन्होने अवसर गंवा दिया। और अब जो हमासियों ने किया है, उससे तो आगे कई कई दशकों तक खड़े नहीं हो पायेंगे।
दु:खद है यह!
