एक पुरनिया आदमी, जिसका पुस्तकों से साथ रहा हो; जो शब्दों को ओढ़ता बिछाता रहा हो वह अपने अनुभवों की अहमियत अच्छे से जान और उन्हे व्यक्त कर सकता है। बयानबे साल की उम्र के समग्र अनुभव कोई कम नहीं होते!
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
एक पुरनिया आदमी, जिसका पुस्तकों से साथ रहा हो; जो शब्दों को ओढ़ता बिछाता रहा हो वह अपने अनुभवों की अहमियत अच्छे से जान और उन्हे व्यक्त कर सकता है। बयानबे साल की उम्र के समग्र अनुभव कोई कम नहीं होते!