घूमने निकल पड़े हैं वे दोनो

वाणी-विवेक। मेरी बिटिया और मेरे दामाद। उनका बेटा विवस्वान अब दसवीं क्लास में गया है। अकेले रहने सोने की आदत डाल रहा है। यह सोच रहा है कि क्या बनेगा? व्यवसायी, अर्थशास्त्री या वैज्ञानिक। वह अब माता पिता के अटैचमेंट की बजाय मित्र मंडली के साथ घूमने जायेगा।

सो, इस साल गर्मियों में उन सब ने तय किया कै कि एक सप्ताह के लिये पहले माता-पिता (वाणी-विवेक) घूम आयें, तब वह स्कूल के मित्रों के साथ जायेगा।

इस योजना के आधार पर आज विवेक-वाणी निकले हैं। सड़क मार्ग से रांची और रांची से वायुमार्ग से दिल्ली/अमृतसर। उसके बाद कहां जाना होगा, वे ही बतायेंगे (अपडेट – उन्होने बताया – डलहौजी और धर्मशाला)। या फिर उनके द्वारा भेजी गयी ह्वाट्सएप्प की फोटो बतायेंगी।

आज सवेरे पौने सात बजे एक झरने के पास खड़े हो कर खिंचाई उनकी कुछ फोटो मुझे मिली। रांची के आसपास कई प्रपात हैं जो साल भर कल कल बहते-गिरते हैं। उन्हीं में से कोई है।

वाणी ने संदेश में बताया – सिकिदारी पावर प्रॉजेक्ट के पास का दृश्य है। झरना किसी नदी का हिस्सा हो सकता है। मैं अंतरजाल पर टटोलता हूं तो लगता है शायद यह सुवर्णरेखा नदी के उद्गम का कोई प्रपात होगा। मैने प्रेमसागर की ओडीशा यात्रा के दौरान सुवर्णरेखा के समुद्र के समीप विशाल जलराशि देखी है। यहां उद्गम की पतली धारा देख रहा हूं। घर बैठे किसी नदी का यह अनुभव लेना रोमांचक है।

विवेक-वाणी सिकिदारी घाटी के किसी प्रपात के समीप

सिकिदारी घाटी बोकारो से रांची हवाई अड्डे के मार्ग में ही पड़ती है। चास-बोकारो से पचहत्तर किमी दूर। घर से भोर में ही निकल लिये होंगे वे रांची हवाई अड्डे के लिये। उसके बाद शाम के समय वाणी के भेजे दो चित्र मिलते हैं। एक अमृतसर हवाई अड्डे का है। दूसरा एक विशालकाय तिरंगे झण्डे का। उनके वाहन चालक, शिवजी बताते हैं कि झण्डा रणजीत एवेंन्यू में है। रणजीत एवेन्यू सम्भवत: अमृतसर के पॉश इलाके को कहा जाता है।

अमृतसर हवाई अड्डे पर विवा

मैने वाणी को वाहन चालक के बारे में पूछा। वे शिवजी हैं। उनके वाहन चालक भी हैं और गाइड भी। वे इस दम्पति (विवेक-वाणी – सक्षेप में विवा) को डलहौजी और धर्मशाला घुमा कर वापस अमृतसर लायेंगे। शिवजी केदारनाथ धाम के मूल निवासी हैं। उत्तराखण्डी। आखिर केदारनाथ धाम में शिवजी ही तो रहते है! :lol:

रणजीत एवेन्यू में तिरंगा ध्वज

विवा को आनंद आ रहा है पर्यटन का, डलहौजी और धर्मशाला की यात्रा के औत्सुक्य का। पर वह सनसनी मुझे भी कम नहीं है। उनके माध्यम से मुझे भी यात्रा का अवसर मिल रहा है। घर बैठे!

अगले दो चार दिन तो मुझे लिखने को कुछ सामग्री मिल जायेगी! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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